भाई दूज, यम द्वितीया को भगवान चित्रगुप्त कलम-दवात की होगी पूजा
इटारसी। मां चामुण्डा दरबार भोपाल के पुजारी गुरु पंडित रामजीवन दुबे ने बताया की कार्तिक शुक्ल पक्ष भाई दूज शनिवार 6 नवंबर को दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का समापन भाई दूज (Bhai dooj 2021) या यम द्वितीया के दिन होता है। भाई दूज का पर्व दीपावली (Deepawali 2021) के दो दिन बाद मनाया जाता है। इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है, इस दिन मृत्यु के देवता यमराज और उनकी बहन यमुना के पूजन का विधान है। राखी की तरह ही ये त्योहार भी भाई बहन को समर्पित होता है। इस दिन भाई अपनी बहनों से मिलने उनके घर जाते हैं। बहनें भाई का तिलक और आरती कर उनकी नजर उतारती हैं। इस साल भाई दूज का त्योहार 06 नवंबर को पड़ रहा है। भाई के द्वारा बहन को तिलक लगवाने के बाद वस्त्र, मिठाई, दक्षिणा, देकर चरण स्पर्श करेंगे।
भाई दूज की तिथि और मुहूर्त
हिंदी पंचांगानुसार भाई दूज या यम द्वितीया का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल द्वितिया तिथि 05 नवंबर को रात्रि 11 बजकर 14 मिनट से लग कर, 06 नवंबर को शाम 07 बजकर 44 मिनट तक रहेगी। इस आधार पर द्वितीया तिथि 06 नवंबर को मानी जाएगी। इसलिए भाई दूज का त्योहार 06 नवंबर, दिन शनिवार को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन भाईयों को तिलक लगाने का शुभ मुहूर्त दिन में 01.10 से 03.21 बजे तक है।
भाई दूज की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार धर्मराज यम और यमुना भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संध्या की संतान थे। लेकिन संध्या देवी भगवान सूर्य के तेज को सहन न कर पाने के कारण अपनी संतानों को छोड़ कर मायके चली गईं। अपनी जगह अपनी प्रतिकृति छाया को भगवान सूर्य के पास छोड़ गई थी। यमराज और यमुना छाया की संतान न होने के कारण मां के प्यार से वंचित रहते थे, लेकिन दोनों ही भाई बहन में आपस में खूब प्यार था। शादी होने बाद धर्मराज यम, बहन के बुलाने पर यम द्वितीया के दिन उनके घर पहुंचे थे। जहां यमुना जी ने भाई की सत्कार कर, उनको तिलक लगा कर पूजन किया। तब से इस दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है।
महाराज चित्रगुप्त जी की जीवनी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने सूर्य देवता से कहा कि वह 11000 वर्षों के लिए समाधिस्थ होने जा रहे हैं। और वह इस वक्त सृष्टि की रक्षा करें। 11000 वर्षों के बाद जब उनकी समाधि टूटी तो उन्होंने देखा कि उनके समक्ष कोई दिव्य व्यक्ति कलम और दवात लिए खड़ा है। जब ब्रह्मा जी ने उनसे परिचय पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका जन्म आपकी काया से हुआ है। इसलिए मेरा नामकरण करने के आप योग्य हैं अत: मेरा नामकरण करें व मुझे कोई कार्य बताएं। तो इस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हारी उत्पत्ति मेरी काया से हुई है इसलिए तुम्हें कायस्थ नाम देता हूं, और तुम पृथ्वी पर चित्रगुप्त के नाम से विख्यात होंगे। तम्हारा कार्य धर्मराज यमराज के दरबार में मनुष्य के कर्मों का व उनके जीवन मृत्यु का लेखा-जोखा रखोगे। ब्रह्मा जी चित्रगुप्त को आशीर्वाद देते हुए अंतध्र्यान हो गए। बाद में भगवान चित्रगुप्त का विवाह एरावती व सुदक्षणा से हुआ। सुदक्षणा से उन्हें श्रीवास्तव, सूरजध्वज, निगम व कुलश्रेष्ठ नामक चार पुत्र प्राप्त हुए। जबकि एरावती से उन्हें आठ पुत्रों की प्राप्ति हुई जो इस प्रकार से हैं – माथुर, कर्ण, सक्सेना, गौड, अस्थाना, भटनागर, अंबष्ट और बाल्मीकि के नाम से धरती पर विख्यात हुए।