शीतला अष्टमी : जानें व्रत विधि और बासी पकवानों का महत्व 2022 …
शीतला अष्टमी कब और क्यों बनाई जाती हैं, शीतला अष्टमी व्रत में क्यों लगाया जाता है बासी पकवानों का भोग सम्पूर्ण जानकारी…
शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami)
माता शीतला का वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का महत्व होता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े मिट जाते हैं।
नीम के पत्ते से फोडों मे सड़न नहीं लगती। कलश का महत्व रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है गर्दभ को लीद के लेपने से चेचक के दाग मिट जाते हैं।
शीतला मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ के आसन पर ही देखा जाता है। ऐसा माना जाता है इस व्रत की शुरूआत भगवान शंकर के द्वारा की गई। शीतलाष्टक पर शीतला देवी की महिमा गान किया जाता है, और उनकी उपासना भक्तों को प्रेरित करती है।
कब मनाई जाती हैं शीतला अष्टमी
शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक त्योहार है जिसमें शीतला माता के व्रत और पूजन करते हैं। शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है शीतला की पूजा का प्राचीनकाल से होती आ रही है।
संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से विख्यात है बसौडा का अर्थ बासी खाने से हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है।
क्यों लगाया जाता है बासी पकवानों का भोग
शीतला अष्टमी व्रत में शीतला माता की पूजा के लिये बासी पकवानों का भोग लगाया जाता हैं क्योंकि शीतला माता को ठंडे और बासी पकवान ही प्रिय होते हैं। शीतला माता को भोग लगाने के लिए पकवान एक दिन पहले बनाकर रख लिए जाते हैं, ताकि अगले दिन भोग लगाया जा सके।
शीतला अष्टमी व्रत के दिन सुबह चूल्हा नहीं जलाते हैं। शीतला माता के भोग के लिए पुआ, पुड़ी, हलवा, गन्ने के रस और चावल से बनी खीर या गुड़ वाली खीर बनाई जाती है.
शीतला अष्टमी पूजन विधि
- व्रत करने वाले सुबह जल्दी उठकर नहा लें।
- इसके बाद हाथ में जल लेकर पूजा का संकल्प कर लें।
- संकल्प करने के बाद विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से शीतला माता की पूजा करें।
- इसके पश्चात एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) चीजों जैसे मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि का भोग लगाएं।
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कैसे करें माता की उपासना
- अगर आप अपने घर-परिवार की सुख-समृद्धि चाहते हैं। शीतला अष्टमी के दिन आप स्नान आदि करके शीतला मां का ध्यान करते हुए और शीतला माता के मंत्र ‘ऊँ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः का 108 बार जाप करें।
- अगर आप परेशान हैं, तो अपने मन की शांति के लिये आज आप एक छोटा-सा चांदी का टुकड़ा लें और माता शीतला के मंदिर जाकर माता को भेंट करे।
- आप जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो आपको शीतलामाता की वंदना करनी चाहिए और उनके इस मंत्र ‘वन्देऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्। मार्जनीकलशोपेतां सूर्प अलंकृत मस्तकाम्, का 11 बार जाप करना चाहिए।
- अगर आपको किसी भी प्रकार का भय, रोग बना रहता है तो इस सबसे छुटकारा पाने के लिये आज आपको शीतलाष्टक माता शीतला के इस मंत्र ‘वन्देऽहं शीतलां देवीं सर्व रोग भय अपहाम्। यामा साद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्, का 21 बार जाप करना चाहिए।
शीतला मंत्र
‘ऊँ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः।’
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
शीतला अष्टमी व्रत का महत्व
जिन लोगों को किसी प्रकार के त्वचा रोग होते हैं, वे विशेष तौर पर शीतला अष्टमी का व्रत रखते हैं। जो लोग शीतला अष्टमी का व्रत रख कर शीतला माता की पूजा करते हैं, उनके परिवार के सदस्य कभी रोगों का शिकार नहीं होते हैं।
शीतला अष्टमी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक गाँव के राजा का एक ही बेटा था। उसे चेचक (शीतला) बीमारी थी। उसी गॉव के एक गरीब परिवार के बेटे को भी चेचक शीतला बीमारी थी। वह परिवार मां शीतला की पूजा करता था।
उस परिवार ने चेचक के समय जिन भी नियमों का पालन किया जाता है। घर में बिना छौंक के सब्जी बनती थी, भुने या तले हुए खानों और नमक पर पाबंदी थी। घर के सभी लोग ठंडा खाना ही खाते थे ऐसा कुछ दिन तक चला और उस परिवार का बेटा स्वस्थ हो गया।
दूसरी ओर राजा के बेटे का रोग ठीक नहीं हो रहा था। राजा ने शतचंडी का पाठ शुरु कराया रोज गरम स्वादिष्ट भोजन बनते थे। भुने और तले हुए भोजन खाया जाता था। मांस भी बनाया जाता था। राजा का बेटा जो भी जिद करता था, वह पूरी कर दी जाती थी।
इनके सबके कारण राजा के बेटे के शरीर में फोड़े हो गए उसमें खुजली और जलन होने लगी। जो उपाय किया जाता, उसका कोई असर नहीं होता। शीतला का प्रकोप और बढ़ गया।
इन सबसे राजा परेशान हो गया वह सोचने लगा कि आखिर इतने उपाय करने के बाद भी शीतला का प्रकोप शांत क्यों नहीं हो रहा है।
राजा के गुप्तचरों ने उसे बताया कि राज्य में एक गरीब परिवार के बेटे को भी शीतला निकली थीं। लेकिन वह कुछ दिनों में ही स्वस्थ हो गया था। तब राजा ने सोचा कि वह तो माता की इतनी सेवा कर रहा है, फिर भी उनका प्रकोप कम क्यों नहीं हो रहा है।
राजा ये सब बातें सोचते-सोचते सो गया उसके स्वप्न में शीतला माता ने दर्शन दिया। राजा से कहा कि वह उसकी सेवा और पूजा से प्रसन्न हैं। लेकिन तुमने शीतला के नियमों को तोड़ा है, इस वजह से शीतला का प्रकोप शांत नहीं हो रहा है।
इसके लिए तुम खाने में नमक बंद कर दो, बिना छौंक के सब्जी बनाओ, खाने में तेल का प्रयोग न करो और सभी लोग ठंडा भोजन करें। बेटे के पास किसी को मत जाने दो। ऐसा करो, जल्द ही तुम्हारा बेटा स्वस्थ हो जाएगा। अगले दिन से राजा शीतला माता के बताए गए नियमों का पालन करने लगा। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में राजा का बेटा स्वस्थ हो गया।
माता शीतला की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता ।
आदि ज्योति महारानी,सब फल की दाता ॥
ॐ जय शीतला माता..॥
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भाता ।
ऋद्धि-सिद्धि चँवर ढुलावें,जगमग छवि छाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
विष्णु सेवत ठाढ़े,सेवें शिव धाता ।
वेद पुराण वरणत,पार नहीं पाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
इन्द्र मृदङ्ग बजावत,चन्द्र वीणा हाथा ।
सूरज ताल बजावै,नारद मुनि गाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
घण्टा शङ्ख शहनाई,बाजै मन भाता ।
करै भक्तजन आरती,लखि लखि हर्षाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
ब्रह्म रूप वरदानी,तुही तीन काल ज्ञाता ।
भक्तन को सुख देती,मातु पिता भ्राता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
जो जन ध्यान लगावे,प्रेम शक्ति पाता ।
सकल मनोरथ पावे,भवनिधि तर जाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
रोगों से जो पीड़ित कोई,शरण तेरी आता ।
कोढ़ी पावे निर्मल काया,अन्ध नेत्र पाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
बांझ पुत्र को पावे,दारिद्र कट जाता ।
ताको भजै जो नाहीं,सिर धुनि पछताता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
शीतल करती जननी,तू ही है जग त्राता ।
उत्पत्ति व्याधि बिनाशन,तू सब की घाता ॥
ॐ जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
दास विचित्र कर जोड़े,सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै,और न कुछ भाता ॥
जय शीतला माता,मैया जय शीतला माता ।
आदि ज्योति महारानी,सब फल की दाता ॥
ॐ जय शीतला माता..॥