होली : भद्रा रहित होलिका दहन रात्रि 3:00 से 4:30 शुभ एवं 4: 30 से 6 अमृत में

होली : भद्रा रहित होलिका दहन रात्रि 3:00 से 4:30 शुभ एवं 4: 30 से 6 अमृत में

– स्नान, दान, व्रत, पूर्णिमा गुरूवार 17 मार्च का मनाया जावेगा
इटारसी। मां चामुंडा दरबार भोपाल (Maa Chamunda Darbar Bhopal) के पुजारी पं. रामजीवन दुबे (, Pt. Ramjeevan Dubey,) ने बताया कि रंगों का उत्सव फाल्गुन शुक्ल मक्ष स्नान दान व्रत पूर्णिमा गुरूवार 17 मार्च को होलिका दहन के साथ यह पर्व मनाया जावेगा। भद्रा दिन में 1: 20 बजे से रात 1: 18 बजे तक भद्रा योग रहेगा। भद्रा को अशुभ माना जाता है। पर्व निर्णय सभा उत्तराखंड ने मत दिया है कि रात्रि 9: 04 बजे से 10: 14 बजे तक जब भद्रा का पुच्छकाल रहेगा, उस समय होलिका दहन किया जा सकता है।
पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री व शनिदेव की बहन हैं। भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टीकरण में स्थान दिया है। पंचांग के पांच प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र व करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है। ये चर-अचर में बांटे गए हैं। 11 करणों में 7 वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है। मान्यता है कि ये तीनों लोगों में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक आती हैं तो अनिष्ट करती हैं।
भद्रा रहित होलिका दहन रात्रि अंत 3 से 6 बजे तक शुभ रहेगा। रात्रि 3 से 4:30 तक शुभ, रात्रि 4: 30 से 6:00 बजे तक अमृत में होलिका दहन अति शुभ रहेगा।
मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है और ये तीन दिनों तक चलता है। पहले दिन रात में होलिका दहन होता है। इसके बाद अगले दिन होली खेली जाती है और उसके अगले दिन भाई दूज के साथ ये त्योहार खत्म हो जाता है। होली के बारे में कहा जाता है कि इस दिन आपसी बैर भुलाकर दुश्मन भी गले लग जाते हैं। ऐसे में चलिए जानते हैं आखिर क्यों मनाया जाता है रंगो का ये खास त्यौहार।

क्यों मनाई जाती है होली?

प्राचीन काल में एक असुर राजा था जिसका नाम हिरण्यकश्यप था, उसने कई वर्षों कर कठिन तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके। न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न घर से बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए। ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा और सभी से जबरन अपनी पूजा कराने के लिए अत्याचार करने लगा। हिरण्यकश्यप को कुछ समय बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम उसने प्रह्लाद रखा। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी।

हिरण्यकश्यप-प्रह्लाद की है कहानी

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की पूजा न करे। प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने का हर संभव प्रयास किया। उसे पहाड़ी से फेंका, विषैलें सांपो के साथ छोड़ दिया. लेकिन व प्रभु-कृपा से वह हर बार बचता रहा। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रहलाद को आग में जलाकर मारने की योजना बनाई। होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था। उसको वरदान में एक ऐसी चादर मिली हुई थी, जिसे ओढ़कर वह आग में नहीं जल सकती थी।

बुराई पर अच्छाई की विजय की कहानी

होलिका प्रह्लाद को गोद में उठा जलाकर मारने के उद्देश्य से वरदान वाली चादर ओढ़ धूं-धूं करती आग में जा बैठी। तभी भगवान की कृपा से बहुत तेज आंधी चली और वह चादर उड़कर बालक प्रह्लाद पर आ गई और होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई। इस प्रकार प्रह्लाद एक बार फिर बच गए। इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और खंभे से निकल कर गोधूली समय (सुबह और शाम के समय का संधिकाल) में दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को अपने नाखूनों से मार डाला। तभी से बुराई पर अच्छाई की विजय के लिए होली का त्योहार मनाया जाने लगा। होलिका दहन के दूसरे दिन 18 मार्च शुक्रवार को होलिका उत्सव चल समारोह के साथ मनाया जाएगा। 20 मार्च रविवार को भगवान चित्रगुप्त पूजा के साथ भाईदूज का त्योहार मनाया जाएगा। 22 मार्च मंगलवार को रंगपंचमी महोत्सव मनाया जाएगा। 24 मार्च गुरूवार को वसोरा के साथ शीतला सप्तमी एवं 25 मार्च को शीतला अष्टमी की पूजा के साथ होलिका दहन पर्व का समापन होगा। गूजे पपड़ीयां एवं अन्य पकवान बनाकर पूजा की जाती है। हर घर में मलरिया की होली जलती है।

CATEGORIES
Share This

AUTHORRohit

error: Content is protected !!