क्‍यों निकाली जाती हैं जगन्नाथ रथ यात्रा जाने सम्‍पूर्ण जानकारी 2022…
जगन्नाथ रथ यात्रा क्‍यों निकाली जाती हैं, कब निकाली जाती हैं, महत्व, पौराणिक मान्‍यता और इतिहास सम्‍पूर्ण जानकारी...

क्‍यों निकाली जाती हैं जगन्नाथ रथ यात्रा जाने सम्‍पूर्ण जानकारी 2022…

जगन्नाथ रथ यात्रा क्‍यों निकाली जाती हैं, कब निकाली जाती हैं, महत्व, पौराणिक मान्‍यता और इतिहास सम्‍पूर्ण जानकारी…

क्‍यों निकाली जाती हैं जगन्नाथ रथ यात्रा (Why Jagannath Rath Yatra Is Taken Out)

रथ यात्रा

पद्म पुराण के अनुसार भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने के लिए कहां। तब जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने ले गये। इस दौरान वह पूरे नगर को दिखाते हुए अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर गए और वहां नौ दिन तक रूके थे। ऐसी मान्यता हैं कि तभी से यहां पर रथयात्रा निकालने की परंपरा हैं। इस रथ यात्रा के बारे में स्कन्द पुराण नारद पुराण में भी विस्तार से बताया गया हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा कब निकाली जाती हैं (When is Jagannath Rath Yatra taken out)

रथ यात्रा

जगन्नाथ रथ यात्रा प्रतिवर्ष अषाढ़ माह के जुलाई महीने के शुक्त पक्ष के दुसरे दिन निकाली जाती हैं। इस वर्ष रथ यात्रा 1 जुलाई 2022 दिन शुक्रवार को निकाली जाएगी। यह महोत्सव 10 दिन का होता हैं। जो शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन समाप्त होता हैं।

इस रथ यात्रा में शामिल होने से व्यक्ति के सारे कष्ट खत्म हो जाते हैं। कि इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए लोग दूर दूर से आते हैं। और इस महाआयोजन का हिस्सा बनते हैं। इस दिन भगवन कृष्ण और भाई बलराम व बहन सुभद्रा को रथों में बैठाकर गुंडीचा मंदिर ले जाया जाता हैं तीनों रथों को भव्य रूप से सजाया जाता हैं। जिसकी तैयारी महीनों पहले से शुरू कर दी जाती हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा कैसे निकाली जाती हैं (How Jagannath Rath Yatra Is Taken out)

रथ यात्रा

ऐसे तो रथ यात्रा पूरे भारत में निकाली जाती हैं। लेकिन उड़ीसा के पुरी जगन्नाथ मंदिर में इस पूजन का भव्य आयोजन किया जाता हैं। रथ यात्रा के शुरू होने के साथ ही कई सारे पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं। इस रथ यात्रा में तीन रथों से निकाली जाती हैं।

सोने की झाड़ू से होती हैं रास्‍ते की साफ-सफाई (The Road Is Cleaned With a Gold Broom)

रथ यात्रा

तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती हैं। इस पूजा अनुष्ठान को ‘छर पहनरा’ नाम से जाना जाता हैं। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं। और सोने की झाड़ू से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता हैं।

बलरामजी का रथ (Balaram’s chariot)

रथ यात्रा

इस यात्रा में सबसे आगे बलराम जी का रथ होता हैं। इस रथ को नीले-हरे रंग के कपड़े से सजाया जाता हैं। इस रथ में 14 पहिए लगे होते हैं। और इस रथ की उंचाई 43 फीट होती हैं। इसमें बलराम जी के साथ गणेश, कार्तिक, सर्वमंगला, शेषदेव, मुक्तेश्वर, नातंवारा, मृत्युंजय, हटायुध्य, प्रलांबारी विराजमान रहते हैं। इस रथ के लहराते झंडे को उनानी कहते हैं। इसे जिस मोटे-मोटे रस्सी से खींचा जाता हैं। उसे बासुकी नागा कहते हैं। बलराम जी के रथ का सारथी मताली होता हैं।

सुभद्रा जी का रथ (Subhadra’s chariot)

रथ यात्रा

बलराम जी के रथ पीदे सुभद्रा जी का रथ चलता हैं। सुभद्रा जी का रथ 12 पहिए का होता हैं। जिसकी उंचाई 42 फीट होती हैं। इस रथ को लाल-काले रंग के कपड़े से सजाया जाता हैं। सुभद्रा जी के रथ को अर्जुन चलाता हैं। इस रथ के ऊपर लहराते झंडे को नंदविक झंडा कहते हैं। इसे जिस रस्सी से खींचा जाता हैं  उसे स्वर्णाचुड़ा नागनी कहते हैं। इस रथ में सुभद्रा जी के साथ चंडी, चामुंडा, मंगला, श्यामकली, वाराही, शलिदुर्गा, वनदुर्गा, उग्रतारा विराजमान रहती हैं।

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जगन्नाथ जी के रथ (Jagannath’s chariot)

रथ यात्रा

यह रथ सबसे आखरी में चलता हैं इस रथ में 16 पहिए होते हैं। जिसकी उंचाई 45 फीट होती हैं। जगन्नाथ जी के रथ को लाल व पीले रंगों के कपड़े से सजाया जाता हैं। इस रथ का सारथी दारूका होता हैं। इस रथ के ऊपर लहराते झंडे को त्रैलोक्यमोहिनी कहते हैं। इसे जिस रस्सी से खींचते हैं। उसे शंखचुडा नागनी कहते हैं। इस रथ में जगन्नाथ जी के साथ वर्षा, गोवर्धन, नरसिंघा, राम, हनुमान, रुद्र, त्रिविक्रम, नारायण भी विराजमान रहते हैं।

रथ यात्रा का समापन (Rath Yatra concludes)

रथ यात्रा

यह रथ यात्रा गुंदेचा मंदिर पहुंचकर पूरी होती है। इस मंदिर को भगवान की मौसी का घर कहा जाता हैं। इस जगह पर भगवान की प्रतिमा 9 दिन तक रखी जाती हैं। यहां भक्त भगवान की श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना करते हैं। आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की दशमी को भगवान जगन्नाथ जी की वापसी की रथ यात्रा शुरू होती हैं। इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता हैं।

मौसी के घर क्यों जाते हैं भगवान जगन्नाथ (Why Does Lord Jagannath Go To Aunt’s House)

रथ यात्रा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुरी स्थित गुंडिचा मंदिर को उनकी मौसी का घर माना जाता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि गुंडिचा मंदिर में ही भगवान जगन्नाथ जीका अवतरण हुआ था। रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को अलग-अलग रथों पर स्थापित करके नगर भ्रमण कराया जाता हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा के 10 दिनों का विवरण (Details of 10 days of Jagannath Rath Yatra)

रथ यात्रा

01 जुलाई 2022 शुक्रवाररथ यात्रा प्रारंभ
05 जुलाई, मंगलवारपांच दिन गुंडिचा मंदिर में वास करेंगे भगवान जगन्नाथ
08 जुलाई, शुक्रवारसंध्या दर्शन
09 जुलाई, शनिवारबहुदा यात्रा
10 जुलाई, रविवारसुनाबेसा इस दिन जगन्नाथ जी गुंडिचा मंदिर से बाहर आते हैं।
11 जुलाई, सोमवारआधार पना इस दिन दिव्य रथों पर एक विशेष पेय अर्पित किया जाता हैं।
12 जुलाई, मंगलवारनीलाद्री बीजे

जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास (History of Jagannath Rath Yatra)

रथ यात्रा

इस  रथ यात्रा के इस पर्व का इतिहास काफी प्राचीन हैं और इसकी शुरुआत गंगा राजवंश द्वारा सन् 1150 इस्वी में की गई थी। जो पूरे भारत भर में पुरी की रथयात्रा के नाम से काफी प्रसिद्ध हुआ। इसके साथ ही पाश्चात्य जगत में यह पहला भारतीय पर्व था। जिसके विषय में विदेशी लोगो को जानकारी प्राप्त हुई। इस त्योहार के विषय में मार्को पोलो जैसे प्रसिद्ध यात्रियों ने भी अपने वृत्तांतों में वर्णन किया हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व (Significance of Jagannath Rath Yatra)

रथ यात्रा

हिंदू धर्म में इस रथ यात्रा का विशेष महत्व हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए लोग सिर्फ देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आते हैं। हिंदू धर्म की मान्‍यता के अनुसार जगन्नाथ पुरी को मुक्ति का द्वार कहा जाता हैं। ऐसी मान्यता हैं कि जो भी इस यात्रा में शामिल होता हैं उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।

ऐसा भी कहा जाता हैं कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है उसे 100 यज्ञ करने जितना फल मिलता हैं। साथ ही इस यात्रा में शामिल होने वाले को मोक्ष प्राप्त होता हैं। पुराणों के अनुसार, आषाढ़ मास से पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन करने जितना पुण्य मिलता हैं।

जगन्नाथ रथ यात्रा पौराणिक मान्‍यता (Jagannath Rath Yatra Mythological Legend)

रथ यात्रा

इस यात्रा पर कई पौराणिक और ऐतहासिक मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार सहित नीलांचल सागर उडीसा के पास रहते थे। एक बार समुद्र में उन्हें एक बहुत बडी लकड़ी तैरती हुई दिखाई दी। तभी राजा ने उस लकड़ी को समुद्र से बाहार निकाला और उस लकड़ी की सुंदरता देखकर सोचा की इस लकड़ी से भगवान जगन्‍नाथ की प्रतिमा बनवाई जायें।

तभी वहां एक बूढ़े बढ़ई के रुप में देवों के शिल्पी विश्वकर्मा आ गयी। और भगवान जगन्‍नाथ की मूर्ति बनाने के लिए बढ़ई ने एक शर्त रखी कि मैं जब तक कमरे में मूर्ति बनाऊंगा तब तक उस कमरे मे कोई नहीं आना चाहिए। राजा ने उनकी इस शर्त को मान लिया। और बढ़ई मूर्ति निर्माण कार्य में लग गया।

राजा और उनके परिवार वालो को यह तो मालूम नही था कि यह स्वंय भगवान विश्वकर्मा हैं। कई दिन बीत जाने के पश्चात महारानी को ऐसा लगा कि कही वह बढ़ई अपने कमरे में कई दिनों तक भूखे रहने के कारण मर तो नही गया। अपनी इस शंका को महारानी ने राजा से भी बताया और जब महाराजा ने कमरे का दरवाजा खुलवाया तो वह बूढ़ा बढ़ई कही नही मिला।

लेकिन उसके द्वारा काष्ठ की अर्द्धनिर्मित श्री जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तिया वहां मौजूद मिली। इस घटना से राजा और रानी काफी दुखी हो उठे। लेकिन उसी समय चमात्कारित रुप से वहां आकाशवाणी हुई कि दु:खी मत हो, हम इसी रूप में रहना चाहते हैं। मूर्तियों को द्रव्य आदि से पवित्र कर स्थापित करवा दो। आज भी वही अर्धनिर्मित मूर्तियां जगन्नाथपुरी मंदिर में विराजमान हैं। जिनकी भक्त पुरी श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं और यही मूर्तियां रथ यात्रा में भी शामिल होती हैं।

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