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पुस्तक समीक्षा : रोचक जानकारी से भरपूर, अक्षरों की मेरी दुनिया

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विपिन पवार घुमक्कड़ किस्म के व्यक्ति है, चरैवेति चरैवेति का अनुकरण करने वाले । उनके बंजारे मन और जिज्ञासु प्रवृति ने उनके पैरों को अनेक स्थलों का साक्षात्कार कराया है, जिसका संकलन अक्षरों की मेरी दुनिया में संकलित है। अनेक दिलचस्प व्यक्तियों और स्थलों का साक्षात्कार सुनने, करने और देखने की फलश्रुति है यह अनोखी लेकिन मनोरंजक कृति ।
विपिन पवार 1963 में जन्मे और साहित्य के विभिन्न पहलुओं का पर्यटन कर चुके हैं । बाल्यावस्था से उनकी रुचि वक्तृत्व में थी और मात्र 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक लंबी कविता की रचना कर अपनी साहित्यिक यात्रा आरंभ की। उनके लेख देश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में छपे हैं और वह स्वयं भी राजभाषा को समर्पित वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। उनका पड़ाव रेल विभाग राजभाषा के उप महाप्रबंधक के तौर पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। आप सम्प्रति उप महाप्रबंधक, राजभाषा मध्य रेल मुख्यालय में पदस्थ हैं और रेल मंत्रालय में निदेशक के रूप में राजभाषा विभाग का दायित्व भी निभा चुके हैं। नवभारत टाइम्स के वरिष्ठ सम्पादक विमल मिश्र अपनी भूमिका में लिखते हैं कि इस संग्रह में उनके कुछ लेख ज्ञानवर्धक, कुछ प्रेरक और कुछ जनोपयोगी लेख हैं, जो एक पारिवारिक पत्रिका का सा मनोरंजन प्रदान करते हैं। इसमें संग्रहित काशीनाथ बुवा की कहानी बहुत दिलचस्प है जो सुबह पुणे शहर में 75 किलोमीटर दौड़ते रहे हैं, वह भी नंगेपांव और 103 वर्ष नॉट आउट रहे हैं। 90 वर्ष की उम्र तक वह होकर रहे ओर लोनावला तक का चक्कर काटे मानसरोवर तक, कराची तक, साइकिल यात्राएँ की संगीत के ज्ञानी होने के नाते जद्दन बाई व बेगम आरा को संगीत सिखाया । आनंदी बाई जोशी का उनका लेख पराधीन भारत की पहली महिला डाक्टर की संघर्षमय कहानी है जिन्होंने अमेरिका में पढ़ाई की। 22 वर्ष की उम्र के जीवनकाल में उन्हें महिला डाक्टर होने का श्रेय दिया जाता है । बर्हिजी नाईक पर उनका लेख काफी रोमांचकारी है जो छत्रपति शिवाजी महाराज की तीसरी आँख कहे जाते रहे। महाराष्ट्र पर्यटन पर उनके लेख और ताडोबा अभयारण्य पर उनका लेख अनेक जानकारी देता है। सज्जनगड़ पर उनका लेख महाराष्ट्र के अतीत व स्वामी रामदास समर्थ की छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन में उनकी भूमिका पर प्रकाश डालता है। मुक्तिबोध पर उनका शोधपरक लेख भी इस संग्रह की अनुपम कृति हैं ।
प्रस्तुत समीक्ष्य संग्रह में 13 निबंध संग्रहित है पांच निबन्ध विशिष्ट व्यक्तियों पर चार निबंध पर्यटन पर है, एक परम आदरणीय संत तुकाराम व एक इन्द्रायणी इन्टरसिटी एक्सप्रेस पर है। एक निबंध राजभाषा पर भी है। पुस्तक पर प्रसिद्ध साहित्यकार सूरज प्रकाश की टिप्पणी उल्लेखनीय है ।
कुल मिलाकर विपिन पवार का यह संग्रह दिलचस्प और अनेक सूचनाओं से भरपूर है । ‘अपनी बात में विपिन पवार गजानन माधव मुक्तिबोध से अपनी दिलचस्पी व आकर्षण में उनकी कविता ब्रह्म राक्षस बतलाते हैं । विपिन पवार की सरल प्रवाहमयी भाषा और शैली उनकी कृति को पठनीयता प्रदान करती है ।


पुस्‍तक का नाम – अक्षरों की मेरी दुनिया (निबंध संग्रह)
लेखक – विपिन पवार
प्रकाशक – प्रलेक प्रकाश प्राइवेट लि.
वितरक – जेवीपी पब्लिकेशन प्राइवेट लि. 602/आई-3
ग्‍लोबल सिटी विरार (पश्चिम) – 401303
मूल्‍य – 300 /-
पुस्तक समीक्षा :
(स्‍व.) डा. सतीश शुक्ल, A/401.
पटेल हेरिटेज, सेक्टर 7,
खारघर – 410210 नवी मुंबई



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