इटारसी। गुरुकुल आश्रम जमानी में आज स्वामी दयानंद सरस्वती की 200 वी जयंती बड़े हर्षोल्लास से मनाई। इस अवसर पर गुरुकुल के व्यवस्थापक आचार्य सत्यप्रिय ने महर्षि के जीवन पर प्रकाश डाला और बताया कि उन्होंने सन्यास लेकर वेदों का अध्ययन किया और अपने गुरुजी को दक्षिणा स्वरूप वेदों का प्रचार करने की प्रतिज्ञा की और वेदों को जन-जन तक पहुंचाने का कठिन कार्य जीवन भर करते रहे।
गुरुकुल के सचिव बालकृष्ण मालवीय ने बताया कि यदि महर्षि दयानंद न होते तो देश हमेशा परतंत्रता की बेडिय़ों में जकड़ा रहता। सबसे पहले देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ झोंकने वाले क्रांतिकारियों को निर्मित करने वाले दयानंद थे। उनका कहना था कि यदि देश अंग्रेजों का गुलाम रहेगा, तो देश कभी वेदों की ओर नहीं लौट सकता, इसलिए उन्होंने सबसे पहले इस देश को स्वतंत्र करने के लिए क्रांतिकरियों को पैदा किया।
उनके जीवन काल में 1857 का युद्ध् भी हुआ और उन्होंने देश में कई कुरीतियां भी देखीं। जैसे बाल विवाह, विधवा विवाह, सती प्रथा और बालिका शिक्षित न होने देना आदि। उन्होंने इन कुरीतियों पर कार्य किया और इसे हटाने के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे। उनका जन्म टंकारा गुजरात में एक संभांत परिवार में हुआ था। उन्होंने वैराग्य बचपन में ही प्राप्त कर लिया था और सब कुछ छोड़कर ज्ञान प्राप्ति के लिये निकल पड़े। इस अवसर पर पर आचार्य राहुल ने सुंदर भजन की प्रस्तुति दी और ब्रह्मचारियों ने भी अपने गीत के माध्यम से दयानंद जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।