- रोहित नागे :
नगर सरकार के लिए भारतीय जनता पार्टी को जनादेश प्राप्त हो गया है। ईवीएम से निकले जनादेश के बाद खुशियों का दौर चला, बधाई, आभार, अभिनंदन, सहयोगियों को धन्यवाद का दौर भी अब मंद पडऩे लगा है। अब नगर सरकार का मुखिया कौन होगा? पार्षदों की पसंद का होगा, पंसद न हो तो भी मजबूरी का होगा, चाहत भरा होगा, नेता के आदेश पर पार्षद की पसंद निर्भर करेगी या फिर संगठन से नाम चुनकर भेजा जाएगा? ये सारे सवाल राजनीतिक गलियारों में घूम रहे हैं और चुनावी चौपाल पर चर्चा का विषय बने हुए हैं।
जैसा, चुनावों के वक्त और वोटिंग के बाद माना जा रहा था, कि चुनावी नतीजे चौंकाने वाले होंगे, वैसा केवल वार्डों में हुआ है। ओवर आल तो मतदाताओं ने भाजपा को ही चुन लिया है। भारतीय जनता पार्टी को बहुमत तो मिल गया, लेकिन पिछली परिषद के मुकाबले उसकी ताकत थोड़ी कम हुई है। भाजपा को सीट कम मिली हैं, जबकि कांग्रेस ने अपनी ताकत दो गुना बढ़ा ली है। बिखरी कांग्रेस ने चुनाव लड़ा, टिकट घोषित होने के बाद कई दिग्गज घर बैठे रहे, कुछ जिन्हें शहर में अपने प्रत्याशियों को जिताने की जिम्मेदारी लेनी थी, वे स्वयं चुनाव मैदान में कूद गये, ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशियों ने केवल अपने बलबूते चुनाव लड़ा और दोगुनी संख्या में जीतकर परिषद में पहुंचे। इन चुनावों में कांग्रेस का संगठन पूरी तरह से नदारद ही रहा, जबकि भारतीय जनता पार्टी की चुनावी डोर पूरी तरह से विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा के हाथों में थी और संगठन को भी पार्टी ने पूरी तरह से चुनावी प्रत्याशा से दूर रखकर अपने प्रत्याशियों को जिताने का आदेश दे रखा था। यानी भाजपा ने चुनाव को जीतने के लिए पूरी तैयारी से मैदान में कदम रखा था।
मुखिया पर मंथन
भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से जो नाम बताया जा रहा था, जगदीश मालवीय का, वे चुनाव जीत नहीं सके। ऐसे में वार्ड 20 से बड़ी संख्या में वोटों से जीतकर आये और छह माह के अध्यक्षीय कार्यकाल के अनुभवी पंकज चौरे का नाम फिलहाल चर्चाओं में सबसे आगे चल रहा है। हालांकि भाजपा में कोई एक नेता ये नहीं कह सकता कि इनको अध्यक्ष बनाना है। पार्टी का अनुशासन ऐसा करने की इजाजत नहीं देता है। पार्षद किसे चुनेंगे, ऐसा उन पर निर्भर रहेगा, यह भी सौ फीसद सच नहीं है। संगठन सर्वोपरि वाली इस पार्टी में किसी भी प्रमुख पद पर पहुंचना आसान नहीं होता है। यदि वरिष्ठता को आधार माना जाएगा तो वार्ड क्रमांक चार से जीतकर आये शिवकिशोर रावत अहम दावेदार माने जाएंगे। हालांकि विधायक से कई वर्षों की दूरी के कारण उनके नाम की वजनदारी लोगों के गले नहीं उतर रही है, बावजूद इसके यदि संगठन ने उनका नाम तय करके भेज दिया तो पार्टी लाइन के अनुसार चलना ही पड़ेगा।
पार्टी चौंका भी सकती है
भारतीय जनता पार्टी को इस समय राजनीतिक रूप से चौंकाने वाली पार्टी कहा जा सकता है। राष्ट्रपति चुनाव, उपराष्ट्रपति चुनाव, विभिन्न प्रांतों में चौंकाने वाले निर्णय हम पिछले कई महीनों से देखते आ रहे हैं। ऐसे में नगर सरकार की कमान किसी महिला के हाथ में भी देकर पार्टी चौंका सकती है। यह महिला दो बार की पार्षद में से हो सकती है। सबसे बड़ी दावेदार रेखा मालवीय महज 25 वोट से चुनाव हारकर इस दौड़ से बाहर हो गयी हैं, एक अन्य महिला लक्ष्मी गालर भी चुनाव नहीं जीत सकी। चुनावी चौपाल पर चर्चा यह भी है, कि यदि कोई पुरुष अध्यक्ष होगा तो महिला को उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है, जैसा पूर्व में भाजपा कर चुकी है। एक और महिला पार्षद के लिए उसके परिजन फील्डिंग कर सकते हैं, जिनका प्रदेश आलाकमान से रिश्ते बहुत अच्छे हैं और वे इसका फायदा उठाने का प्रयास कर सकते हैं। हालांकि एकदम फ्रेश चेहरा और अनुभवहीन होने से उनके प्रयासों का धक्का लग सकता है।
बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी चौंकाने वाले निर्णयों के लिए जानी जाती है, कुछ चौंकाने वाले निर्णय सामने आएं तो भी आश्चर्य नहीं। फिलहाल जितने भी कयास और राजनीतिक गणित चल रहे हैं, उससे इतर भी फैसला आ सकता है या फिर इन नामों में से भी नगर सरकार का चेहरा सामने आ सकता है।
कांग्रेस पार्षद दल का नेता
पिछली परिषद में कांग्रेस ने जिन पार्षद को वरिष्ठता क्रम के अनुसार नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी थी, वे उस पर खरे नहीं उतरे और ज्यादातर मीटिंगों से ही उन्होंने दूरी बनाकर रखी थी, (अलबत्ता सत्ताधारी दल के कई पार्षदों ने कांग्रेस के नेताप्रतिपक्ष की कमी पूरी कर रखी थी।) इस मर्तबा कांग्रेस के पास पार्षदों का टोटा नहीं है और भाजपा को मजबूत विपक्ष मिलने वाला है। भाजपा के अध्यक्ष पद के दावेदार को परास्त करके आए अमित कापरे तेज-तर्रार, चतुर, चपल माने जाते हैं, हालांकि अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के आंखों की किरकिरी रहे अमित के लिए भी राह आसान नहीं है। धर्मदास मिहानी, सीमा भदौरिया, नारायण सिंह ठाकुर और तुलसा वर्मा जैसे अनुभवी नाम भी कांग्रेस के पास हैं। देखना है, कि कांग्रेस किसका नाम घोषित करती है। फिलहाल तो सबसे अधिक चर्चा नगर सरकार के मुखिया की है।