चुनावी चौपाल : रस्म अदायगी बन गयी कांग्रेस की घोषणा पत्र सेरेमनी

चुनावी चौपाल : रस्म अदायगी बन गयी कांग्रेस की घोषणा पत्र सेरेमनी

इटारसी। पहली जुलाई को पूर्व केन्द्रीय मंत्री और वर्तमान नगर पालिका चुनाव में टिकट वितरण में खास भूमिका निभाने वाले बताए जा रहे सुरेश पचौरी ने पार्टी के आला नेताओं और कुछ खबरनवीशों की मौजूदगी में बाकायदा कांग्रेस का घोषणा पत्र जारी किया गया था, जो अब बेकायदा लगने लगा है।दरअसल, वह घोषणा पत्र अब तक मतदाताओं के हाथ नहीं पहुंचा है। ऐसे अनेकानेक वार्ड हैं, जहां कांग्रेस के घोषणा पत्र से वोटर्स अनभिज्ञ हैं। जहां तक भारतीय जनता पार्टी की बात है, तो पार्टी ने कोई घोषणा पत्र जारी नहीं किया अलबत्ता मुख्यमंत्री की सभा कराके उनसे विकास का भरोसा दिला दिया और विधायक, सांसद और अन्य नेता वार्डों में घूम-घूमकर विकास का भरोसा दिला रहे हैं। कांग्रेस की ओर से कोई बड़ा नेता पूरे शहर में घूमकर मतदाताओं से रूबरू हुआ हो, ऐसा पूरे प्रचार के दौरान दिखाई नहीं दिया। सुरेश पचौरी आये, घोषणा पत्र जारी किया और कुछेक वार्ड में गये, फिर भोपाल चले गये। भाजपा के धुंधाधार प्रचार से लग रहा है कि पार्टी ने नगर पालिका के चुनावों को भी काफी गंभीरता से लिया है, उसके नेता संजीदगी से वोटर्स के सामने जा रहे हैं। कांग्रेस के प्रादेशिक नेताओं ने अपने स्थानीय नेताओं के भरोसे ही सारा चुनाव छोड़ रखा है। हो सकता है कि कांग्रेस का आलाकमान अपने स्थानीय नेताओं पर भरपूर भरोसा करता हो।

बात घोषणा पत्र की

कांग्रेस के दृष्टिपत्र में भी पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी का वर्चस्व दिखाई दे रहा है। इसके मुख्य पृष्ठ पर दो बार के मुख्यमंत्री रहे दिग्गज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का चित्र ही नदारद है। दिग्विजय सिंह का कांग्रेस को प्रदेश में पुन: सत्ता दिलाने में दिये अहम योगदान को तो जैसे फरामोश ही कर दिया गया। नर्मदा परिक्रमा के माध्यम से पार्टी कार्यकर्ताओं की जो लडिय़ां दिग्गी राजा ने जोड़ी थी, उसे दरकिनार कर दिया गया। कांग्रेस के दृष्टिपत्र में दिग्विजय सिंह पर दृष्टि ही नहीं डाली गयी। गांधी परिवार के तीन नेतृत्व के साथ प्रदेश से केवल कमलनाथ और सुरेश पचौरी का चित्र ही अंकित किया गया। दो स्थानीय नेता पूर्व मंत्री विजय दुबे काकूभाई और नगर कांग्रेस अध्यक्ष पंकज राठौर का चित्र भी शामिल किया है। जिन माणक अग्रवाल के बिना कभी नगर सरकार की कल्पना नहीं की जाती थी, वे भी इस बार तस्वीर और मैदान में दिखाई नहीं दे रहे हैं।

शुरुआत के बिन्दुओं पर सवाल

चुनावी चौपाल में जो चर्चा-ए-आम हैं, उनमें घोषणा पत्र की शुरुआत के बिन्दुओं पर ही सवाल उठाया गया है। पहले बिन्दु में रेस्ट हाउस की भूमि को वापस करने का प्रयास की बात कही है, जो नगर पालिका स्तर का मामला है ही नहीं। दूसरे बिन्दु में नगर पालिका को नगर निगम से बदलने का वादा है, जबकि नगर अभी एक लाख की जनसंख्या के नीचे की नगर पालिका में ही शामिल है, नगर निगम के मान से जनसंख्या कहां से लायी जाएगी, यह नहीं बताया गया है। यातायात व्यवस्था ट्रैफिक पुलिस के जिम्मे है और पुलिस नगर पालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती। शेष ज्यादातर बिन्दु नगर से संबंधित हैं, वास्तव में इन्हें ही शामिल किया जाना था।

समानांतर कांग्रेस भी चर्चा में

शहर में समानांतर कांग्रेस चर्चा में है। राजनीतिक चर्चाओं में शुमार है कि समानांतर कांग्रेस के बाबू ने अपने परिवार से तो पार्टी की टिकट पक्की कर ली। लेकिन, अन्य कई वार्डों में उनके मत को तबज्जो नहीं मिली तो निर्दलीयों को लड़ाया जा रहा है। ये निर्दलीय फिर नगर पालिका अध्यक्ष के लिए उनको (वोट)सपोर्ट करेंगे। सवाल यह है कि उतनी बड़ी संख्या में (जिन्हें पर्दे के पीछे से लड़ाया जा रहा है) निर्दलीय जीतकर भी आना चाहिए। सेवालाभ आखिर कौन नहीं चाहता, यदि इनकी मंशा पूरी होती है तो राजनीति का रुख ही बदल जाएगा और नगर सरकार सूरजगंज की जगह लाइन एरिया से ही संचालित होगी। बहरहाल, यह जितना आसान दिख रहा या समझा जा रहा है, उतना है नहीं।

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