देव प्रबोधनी एकादशी आज, होंगे तुलसी-सालिग्राम विवाह

Post by: Aakash Katare

देव प्रबोधनी एकादशी

इटारसी। आज देव प्रबोधनी एकादशी (Dev Prabodhani Ekadashi) है। इस दिन तुलसी विवाह के आयोजन भी किये जाते हैं। इसके लिए गन्ने का मंडप सजाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव प्रबोधिनी एकादशी मनायी जाती है और एकादशी का व्रत किया जाता है। इटारसी में गांधीनगर में सामूहिक आयोजन और नवग्रह मंदिर में मंदिर समिति द्वारा तुलसी सालिग्राम विवाह के आयोजन होते हैं।

वर्ष में अनेक एकादशी होती हैं, लेकिन यह एकादशी अन्य सभी एकादशियों में शुभ और अमोघ फलदायी मानी जाती है। देव प्रबोधिनी एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन से सारे धार्मिक कृत्य और विवाह संस्कार प्रारंभ हो जाते हैं।

इस दिन होता है अबूझ मुहुर्त

देव प्रबोधिनी एकादशी को अबुझ मुहूर्त का समय भी माना जाता है। यानी ऐसा समय का जिस पर आप कोई भी शुभ काम कर सकते हैं। सगाई, विवाह, गृह प्रवेश या किसी नए मांगलिक काम का आरंभ करना, पूजा पाठ जैसे अन्य सभी प्रकार के कार्य शुरु हो जाते हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को क्षीर सागर में शयन करते हैं और चार मासों के इस समय पर मांगलिक कार्य भी रुक जाते हैं। देवोत्थान एकादशी को भगवान जब नींद से जागते हैं तो सभी प्रकार के मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।

देव उठनी एकादशी का महत्व

मान्यता है कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवोत्थनी एकादशी के दिन भगवान जागते हैं। पौराणिक कथा में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीविष्णु ने भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को महापराक्रमी शंखासुर नामक राक्षस से युद्ध किया। उस युद्ध के बाद शंखासुर का अंत होता है और भगवान लंबे युद्ध के बाद समाप्त होने पर अपनी थकान मिटाने सो जाते हैं। यह चार मास का समय होता जब भगवान श्री विष्णु सो रहे होते हैं। चार मास पश्चात फिर जब वे उठे तो वह दिन देवोत्थनी एकादशी कहलाता है। इस दिन भगवान विष्णु का विधि विधान से पूजन करना चाहिए। इस दिन उपवास करने का विशेष महत्व है।

तुलसी विवाह की परंपरा

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। दीपावली के बाद आने वाली इस एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी भी कहते हैं। क्षीर सागर में सोए भगवान विष्णु जागने के लिए देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन मांगलिक आयोजन शुरू होते हैं।

देवउठनी एकादशी के साथ ही गृह प्रवेश, नींव मुहूर्त, यज्ञोपवीत, देव प्रतिष्ठा, विवाह आदि मांगलिक कार्य का शुभारंभ होता है। मंदिरों व घरों में भी आगामी चार दिनों तक तुलसी विवाह के आयोजन चलते रहते हैं। एकादशी को तुलसी पूजन का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि इस एकादशी के दिन जो भी व्यक्ति तुलसी का विवाह करता है उसके जन्मों के सब पाप नष्ट हो जाते हैं।

देवोत्थान एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान करने के पश्चात स्त्रियां कार्तिक शुक्ल एकादशी को शालिग्राम और तुलसी का विवाह रचाती हैं। इस दिन तुलसी विवाह को विधि-विधान से एक सुंदर मंडप बनाना चाहिए। उस स्थान पर विवाह कार्य संपन्न होता है। विवाह के समय स्त्रियां गीत तथा भजन गाती हैं। इटारसी में भी गांधी नगर में वर्षों से इस तरह का आयोजन हो रहा है। ऐसा ही आयोजन श्री नवग्रह दुर्गा मंदिर में भी होने लगा है।

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