इटारसी। आज उत्तर भारतीय समाज (North Indian society) के लोगों ने पथरोटा नहर (Pathrota canal) पर डूबते सूर्य (setting sun) को जल से अर्घ्य देकर छठ पर्व (Chhath festival) मनाया। सप्तमी को उगते सूर्य (rising sun) को कच्चे दूध से अर्घ्य देकर छठ व्रत और पर्व का समापन किया जाएगा। आज रातभर छठव्रती नहर किनारे बैठकर छठमैया के गुणगान और पूजन-अर्चन करेंगे।
आज छठ पूजा का शुभारंभ रविवार शाम अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर किया। पथरोटा नहर स्थित छठ पूजा घाट पर शाम को आस्था और उमंग का अनूठा संगम देखने को नजर आया। दीपावली(Deepawali) के चौथे दिन नहाय-खाय के साथ चार दिवसीय महापर्व शुरू हुआ। व्रतधारी सुबह स्नान-ध्यान के बाद अरवा चावल, चने की दाल और कद्दू की सब्जी का प्रसाद ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन को खरना पूजा में शाम में गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण किया, इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हुआ। आज रविवार शाम अस्ताचलगामी सूर्य को पानी में खड़े होकर जल से और सोमवार की सुबह उगते सूर्य को कच्चे दूध से अर्घ्य दिया जाता है।
यह है मान्यता
छठ पूजा की परंपरा पर अनेक पौराणिक और लोक कथाएं प्रचलित हैं।
मान्यता है कि पहला छठ सूर्यपुत्र कर्ण ने किया था। माता सीता तथा द्रोपदी के भी करने की बात कही जाती है। लोक परंपरा के मुताबिक सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ पर्व के अवसर पर सूर्य की आराधना की जाती है। कहा जाता है कि नि:संतान राजा प्रियवंद से महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराया तथा राजा की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मरा हुआ पैदा हुआ। राजा प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान चले गए और उसके वियोग में प्राण त्यागने लगे। कहते हैं कि श्मशान में भगवान की मानस पुत्री देवसेना ने प्रकट होकर राजा से कहा कि वे सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण षष्ठी कही जाती हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को इसके लिए प्रेरित करते हुए ऐसा करने वाले को मनोवांछित फल की प्राप्ति का वरदान दिया। इसके बाद राजा ने पुत्र की कामना से देवी षष्ठी का व्रत किया। उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं कि राजा ने ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को की थी। तभी से छठ पूजा इसी दिन की जाती है।
संपूर्ण भारत का पर्व
- यह पर्व बिहार, बंगला से प्रारंभ होकर मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के साथ संपूर्ण देश का पर्व बन गया है। यहां तक अमेरिका में भी इसे मनाया जाने लगा है। आज जल से सूर्य को अर्घ्य दिया है, कल सुबह कच्चे दूध से अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा।
रघुवंश पांडेय, अध्यक्ष भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक संगठन