देवउठनी एकादशी: इस मुहूर्त में करें भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी: इस मुहूर्त में करें भगवान शालिग्राम संग तुलसी विवाह

जानें, कैसे की जाए देव प्रबोधिनी एकादशी (Dev Prabodhini Ekadashi) का पूजन

इटारसी। बुधवार, 25 नवंबर को देव प्रबोधनी एकादशी (Dev Prabodhini Ekadashi) का पर्व है। माना जाता है कि इस दिन शयन के बाद श्री हरि चार महीने की निद्रा से जागते हैं। इसे देव उठनी एकादशी (Devuthani Ekadashi) भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से भगवान का पूजन किया जाए तो श्रीहरि की कृपा उपार रूप से बरसती है। धार्मिक विद्वान पं. विकास शर्मा के अनुसार विधि विधान से पूजा की जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है।

देव प्रबोधिनी पर इसी तरह करें पूजा
पंडित विकास शर्मा (Pandit Vikas Sharma) ने बताया कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने के लिए व्रत करने वाली महिलाएं स्नान से निवृत होकर पूजा स्थल को साफ-सुथरा करें और आंगन में चौक बनाकर श्री हरि के चरणों को अंकित करें। यदि आपके आंगन में धूप आती है तो श्री हरि के चरणों पर कोई पीले रंग का वस्त्र डालें। रात्रि के वक्त मंत्रोच्चार कर घंटा-शंख बजाकर श्री हरि को जगाएं।

रात्रि के समय मंत्र ‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।Ó पढ़ें। मंत्र की समाप्ति पर भगवान विणु को तिलक लगाएं। श्रीफल और नये वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद मिष्ठान का भोग लगाएं। फिर कथा सुनकर आरती करें और पुष्प अर्पित करें और यह मंत्र ‘इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता। त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थं शेषशायिना।। इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो। न्यूनं संपूर्णतां यातु त्वत्वप्रसादाज्जनार्दन।।Ó का जाप करें। इसके बाद प्रहलादजी, नारदजी, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास, अंबरीष, शुक, शौनक और भीष्म सहित अन्यभक्तों का स्मरण करके चरणामृत और प्रसाद का वितरण करें। सभी को प्रसाद वितरित करने के बाद स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

पंडित विकास शर्मा ने कहा कि ग्रंथों के अनुसार स्वर्ग में भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मीजी का जो महत्व है, वही धरती पर माता तुलसी का है। इसलिए जो भी भक्त भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करते हैं। उन्हें विशेष कृपा प्राप्त होती है। देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी की पूजा करने का विधान है। जिस गमले में या किसी भी स्थान पर तुलसी का पौधा लगाया हो उसे गेरु से सजाकर उसके चारों ओर मंडप बनाकर उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक लाल रंग की चुनरी को ओढ़ा दें। इसके बाद गमले को भी साड़ी में लपेट दें और उसका श्रृंगार करें। इसके बाद सिद्धिविनायक श्रीगणेश सहित सभी देवी-देवताओं और श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें। एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें और भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं। इसके बाद आरती करें। साथ ही अपनी मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करें।

एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) का पारण अगले दिन सूर्योदय के बाद किया जाता है। ध्यान रखें कि इस व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना जरूरी होता है। लेकिन अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए। कई बार ऐसा भी हुआ है कि एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है, ऐसे में गृहस्थ लोगों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। संन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूसरे दिन व्रत करना चाहिए।

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