डोल ग्यारस : भगवान श्रीकृष्ण डोल में बैठ कर निकले

Post by: Manju Thakur

इटारसी। डोल ग्यारस पर्व भादो मास के शुक्ल पक्ष के 11वें दिन मनाया जाता है। कृष्ण जन्म के 11वें दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया है। इसी दिन को डोल ग्यारस के रूप में मनाया जाता है। जलवा पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरुआत होती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर तरह-तरह की झांकी के साथ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ जुलूस निकाला जाता है।
आज डोल ग्यारस के मौके पर श्री बूढी माता मंदिर में भी श्रीकृष्ण को डोल में बिठाकर डोल निकला गया। डोल को मंदिर की परिक्रमा कर विधिवत पूजन किया गया।

dol gyaras 1
अन्य मान्यता
डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे वामन ग्यारस भी कहा जाता है।डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख-सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है।
डोल ग्यारस के विषय में यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। इसके प्रभाव से सभी दु:खों का नाश होता है। इस दिन भगवान विष्णु एवं बालकृष्ण के रूप की पूजा की जाती है जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता है। जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं।

Leave a Comment

error: Content is protected !!