महाविद्यालय में केंचुआ खाद प्रशिक्षण का शुभारंभ
होशंगाबाद। मंगलवार को शासकीय गृह विज्ञान महाविद्यालय में केचुआ खाद का प्रशिक्षण का शुभारंभ किया। प्राचार्य डॉ कामिनी जैन ने बताया कि विगत 6 वर्षों से महाविद्यालय में वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जा रहा है। केंचुए के द्वारा बनाई जैविक खाद को वर्मी कंपोस्ट कहते हैं। केंचुए कृषकों के मित्र एवं भूमि की आंत भी कहलाते हैं। केंचुए प्राकृतिक रूप से भूमि की जुताई करते हैं, और प्रतिदिन भूमि में असंख्य छिद्र बनाते हैं यह छिद्र मृदा को भुरभुरा बनाने के साथ-साथ वायु संचार एवं मिट्टी की जल अवशोषण शक्ति में वृद्धि करते हैं। केंचुए जीवांश युक्त मृदा को खाकर भूमि की सतह पर उत्सर्जी पदार्थ के रूप में विसर्जित करते हैं जिसे वर्मी कॉस्टिंग कहा जाता है। इस विसर्जित पदार्थ (वर्मी कॉस्टिंग) में फसलों एवं पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, सल्फर आदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इस प्रशिक्षण से वनस्पति शास्त्र, जन्तु शास्त्र एवं जैवप्रौद्योगिकी विषय की छात्रायें इंटर्नशिप तथा स्वरोजगार के रूप अपनाकर लाभान्वित होंगी।
वनस्पति शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ रागिनी सिकरवार एवं डॉ मनीष चंद्र चौधरी ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट उत्पादन हेतु गोबर, काली मिट्टी, महाविद्यालय परिसर के पेड़ पौधों से गिरी हुई सूखी पत्तियां, फूलों एवं भोजन अपशिष्ट को कच्ची सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है। इनसेनिया फिटिडॉ नामक प्रजाति के केचुए जिन्हें सामान्यत: रेड बिंगलर अथवा रेडवर्म के नाम से भी जाना जाता है, को वर्मी कंपोस्टिंग हेतु उपयोग किया गया है। वर्मी कंपोस्टिंग हेतु 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान एवं 30 से 40: नमी आदर्श होती हैं, और वर्मी कंपोस्ट को तैयार होने में लगभग 3 से 4 माह का समय लगता है। इस अवसर पर डॉ रश्मि श्रीवास्तव, प्रीति ठाकुर, आशीष सौहगोरा एवं महाविद्यालय की विभिन्न विषयों की छात्राएं और कर्मचारी उपस्थित रहे।