Editorial : संस्कृति : यहां पर्वों में आध्यात्म के पीछे छिपा है विज्ञान

Post by: Manju Thakur

– रोहित नागे :
भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां हर प्रदेश के अपने त्योहार हैं तो कुछ राष्ट्रीय त्योहार भी हैं। सभी त्योहार हमें कुछ न कुछ संदेश देते हैं और हमारे जीवन को प्रभावित करके हमें बेहतर जीवन जीने की ओर प्रेरित करते हैं। इन दिनों हम नवरात्रि पर्व मना रहे हैं, फिर दशहरा और उसके बाद देश का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली मनायेंगे।

ये त्योहार न सिर्फ आध्यात्म बल्कि विज्ञान की दृष्टि से भी मानव जीवन को बेहतरी की ओर जाने के लिए प्रेरित करते हैं। यह कहना लाजिमी होगा कि हमारे यहां पर्वों में आध्यात्म के पीछे विज्ञान छिपा हुआ होता है।
आश्विन माह में शारदीय नवरात्रि होती है। एक नवरात्रि चैत्र माह में आती है। ये दोनों पर्व आध्यात्म की दृष्टि से तो हिन्दू जीवन को प्रभावित करते ही हैं, इनका वैज्ञानिक महत्व है। हमारे ऋषि-मुनियों ने स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सामाजिक तानाबाना बुना है। दोनों नवरात्रि के पर्व मौसम के संधिकाल में आते हैं और सेहत की बेहतरी के लिए होते हैं। मानव शरीर एक मौसम से दूसरे मौसम में जाता है तो यकायक खुद को नये मौसम के लिए ढाल नहीं पाता है और बीमार होने लगता है। लगातार चार माह (एक मौसम चार माह का माना जाता है) तक एक मौसम के अनुकूल रहा शरीर दूसरा मौसम आते ही, अपने को उसके अनुकूल ढाल नहीं पाता है और रोगग्रस्त होने लगता है। इसी मौसम के संधिकाल में शारीरिक और मानसिक मजबूती के लिए हमारी ऋषि-मुनियों ने आध्यात्म को सीढ़ी बनायी है।
मुख्य रूप से भारत आध्यात्मिक राष्ट्र रहा है। यहां के लोगों में धार्मिकता कूट-कूटकर भरी है और यही एक ऐसा मार्ग है, जिसके सहारे मनुष्य को जहां चाहें, वहां चलाया जा सकता था। हमारे ऋषि-मुनियों ने मनुष्य की इसी प्रवृत्ति को जाना और इसी को ध्यान में रखते हुए ऐसे त्योहारों को जीवन में उतारा कि मनुष्य उनके सहारे खुद को शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत बनाता रहा है। ऋतु परिवर्तन का असर मानव जीवन पर पड़ा ही है। नवरात्रि उसी से बचने की एक बेहतर और सुनियोजित व्यवस्था है, जो आध्यात्म के सहारे जीवन को ेबेहतरी की ओर ले जाती है। इन नवरात्रि में मनुष्य को उपवार के सहारे खुद को तरोताजा करना होता है। उपवास हमारे शरीर को न सिर्फ स्वस्थ रखते हैं, बल्कि मानसिक तौर पर भी मजबूती प्रदान करते हैं। नवरात्रि में उपवास रखकर शरीर की भीतर से सफाई की जाती है। इस दौरान अन्न ग्रहण नहीं करके फलाहार करने का विधान बताया गया है। फल हमें ताकत प्रदान करते हैं और वह सारे प्रोटीन्स, विटमिन्स और मिनरल्स से भरपूर होते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है। उपवास में भूख लगने पर भी अन्न को नहीं खाना हमारे मन को मजबूती प्रदान करता है, जिससे हम भीतर से मजबूत होते हैं। यह हमारे धैर्य की परीक्षा भी होती है। उपवास में खानपान का संयम, आध्यात्मिक चिंतन हमें भीतर से और बाहर से भी मजबूत बनाता है। आध्यात्क मनोबल को मजबूत करता है तो उपवास शारीरिक मजबूती प्रदान करता है। इसे इसलिए शक्ति की आराधना का पर्व माना जाता है, क्योंकि यह शक्ति संचय करने का बेहतर अवसर प्रदान करता है।
आश्विन माह सेहत की दृष्टि से भी काफी मुफीद माना जाता है। दरअसल, यही वह समय होता है जब न तो अधिक ठंड पड़ती है और ना ही बहुत अधिक गर्मी। नवरात्रि में नियम-संयम से किये जाने वाले उपवास हमें भीतर से मजबूती प्रदान करते हैं तो इस दौरान हवन-पूजन मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का संचय करते हैं ताकि हम मनुष्य उर्जावान बनें। ऋतुओं के संधिकाल में शरीर में वात-पित्त और कफ का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता घटने लगी है। जब नौ दिन जप, उपवास, सफाई, शारीरिक शुद्धि, ध्यान, हवन से वातावरण शुद्ध होता है तो बीमारियों से रक्षा हो पाती है। दरअसल, हमारे मनीषियों ने अत्यंत सूक्ष्मता से इसके वैज्ञानिक महत्व को समझने का प्रयास किया और समाज को इससे जोड़ा है। वर्ष में दो बार मनुष्यों को तरोताजा करने के लिए हर छह माह में नवरात्र की परंपरा बनायी। हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने प्रतिदिन सफाई करते हैं, किन्तु भीतर के अंगों को स्वस्थ रखने के लिए भीतरी सफाई भी उतनी ही आवश्यक होती है। अत: वर्ष में दो बार भीतरी सफाई के लिए नवरात्र की व्यवस्था दी गई है। सात्विक आहार, उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है। साफ-सुथरे शरीर में उत्तम विचार बनते हैं और उत्तम विचार उत्तम कर्मों के लिए प्रेरित करते हैं। उत्तम कर्म से मनुष्य ईश्वर के निकट पहुंचता है, यानी ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करता है।
नवरात्र के दौरान रोग रूपी असुरी शक्तियों को समाप्त करने के लिए हमें हवन-पूजन से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करनी होती है।

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उपवास का वैज्ञानिक आधार

प्रत्येक उपवास का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार भी होता है। हालांकि उन्हें आध्यात्म से इसलिए जोड़ा है क्योंकि वे इसका वैज्ञानिक महत्व समझे बिना भी इसका भरपूर फायदा ले सकें। दरअसल, वैज्ञानिक आधार बताने से हो सकता था कि लोग समझें न। क्योंकि सदियों पूर्व लोग विज्ञान की अपेक्षा आध्यात्म को मानते थे। उपवास से पांच ज्ञानेंद्रियों और पांच कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण होता है। इसमें खानपान का संयम, के साथ ही मन को भी शांत रखकर उसमें कोई भी गंदे विचार नहीं लाये जा सकते हैं। मनीषियों की तरह जीवन जीने का मार्ग सात्विक विचारों से ही होकर गुजरता है। हम सभी सत्व, रजस और तमस के बीच झूलते रहते हैं। हमारा झुकाव राजसी और तामसी प्रवृत्तियों की ओर न होने पाए, इसके लिए जरूरी है कि हम खुद को संतुलित करना सीखें। इसका एक प्रभावी तरीका है उपवास। यह कार्य समर्पण और अनुशासन के बिना हो पाना असंभव है। नवरात्र में उपवास के साथ ही हवन-पूजन किये जाते हैं जिससे शरीर के भीतर के विषैले पदार्थों को समाप्त करके शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त की जाती है। इस दौरान सात्विक आहार, फलाहार आदि ही ग्रहण किये जाते हैं तो मानसिक शुद्धि के लिए जाप, ध्यान, सत्संग, दान-पुण्य आदि किये जाते हैं।

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नवरात्र पर्व का उद्देश्य

दरअसल, हमारे ऋषि-मुनियों ने अनेक शोध, तप के बाद पर्वों को कुछ इस प्रकार से तैयार किया है कि वे मनुष्य जीवन को बेहद संयमित, स्वस्थ, सुसंस्कृत बना सकें। नवरात्र उसी व्यवस्था का एक पर्व है। इसके उद्देश्यों की बात करें तो यह जाहिर तौर पर धैर्यपूर्वक आध्यात्मिकता से शक्ति का संचय करना होता है। केवल आपके अंत:करण की शुद्धि का मूल उद्देश्य लेकर इसका तानाबाना बुना गया है। जब अंत:करण शुद्ध होगा तो शरीर रोगों से लडऩे की शक्ति का संचय कर लेगा। आंतरिक शुद्धता के लिए बाह्य शुद्धता का द्वार सबसे पहले खोलना होता है। यानी आप व्रत-उपवास करते हैं तो आपको पहले शरीर का साफ करना होता है। सदियों पूर्व बुना गया यह तानाबाना आज के जीवन में भी सर्वाधिक प्रासंगिक है। आज वातावरण में चारों तरफ विचारों का प्रदूषण है। ऐसे में नवरात्र आपको स्वस्थ रखने में काफी कारगर भूमिका निभाता है।
शारदीय और चैत्र नवरात्र की बात करें तो इन दिनों शरीर और मन को ऋतुओं के अनुसार ढालना होता है। व्रत उपवास शरीर के रोगों को भगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चैत्र नवरात्र में वसंत होता है, जब प्रकृति अत्यधिक प्रसन्नचित होती है, हर ओर अनमोल छंटा बिखरी होती है। इस वक्त वनस्पति भी नये पत्ते धारण करती और पुराने पत्तों को उतार फैंकती हैं। उसी प्रकार ऋतु बदलने के साथ ही हमें नये वातावरण में ढलने की प्रेरणा यह पर्व देता है। हमें भी पिछले छह माह के भीतर के विकारों को निकालकर नये विचार, मनोबल की मजबूती की प्रेरणा इस पर्व से मिलती है। यह आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलकर आत्मा की शुद्धि की तरफ जाने का इशारा करता है। नौ दिन का व्रत-उपवास प्राकृतिक उपचार होता है। इसके माध्यम से हमारे शरीर में नयी उर्जा का संचार होता है।
आयुर्वेद की तरह ही चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि पाचन क्रिया की खराबी से हमारे शरीर में अनेक प्रकार के रोग घर कर जाते हैं। हमारे शरीर में विषैले तत्व जाने से पाचन अंग कमजोर हो जाते हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करके उसे निर्बल बना देते हैं। व्रत-उपवास से पाचन क्रिया दुरुस्त होती है और इंद्रियों पर नियंत्रण होने से हम बेवजह की चीजें खाने से भी बच जाते हैं। उपवास हमें सकारात्मकता की ओर ले जाता है और इसका हमारे जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हम हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। चैत्र नवरात्र के समय वासंती वातावरण होता है। कुदरत नये रूप में अपने को ढालती है। वातावरण में नवीन आभा देखने को मिलती है। पतझड़ के बाद नवजीवन की शुरुआत, नई पत्तियां पेड़ों पर आती और हर ओर हरियाली होती है। बस हमारे जीवन में भी नवरात्र के दौरान किये उपवास नवीन उर्जा का संचार करते हैं। प्रकृति नये रूप में होती है तो हमें भी नयी उर्जा के साथ नवजीवन में प्रवेश करना होता है। नवरात्र के दौरान किये गये व्रतों में नियम और संयम, देवी आराधना से हमें इसमें काफी सहायता मिलती है क्योंकि हमारी संस्कृति में देवी का उर्जा का स्रोत माना गया है और अपने शरीर के भीतर उर्जा का संचार करना ही देवी उपासना का मुख्य उद्देश्य है।

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