कलेक्टर किस्सा गोई: राजवैद्य जी और साहब बहादुर की बग्गी

कलेक्टर किस्सा गोई: राजवैद्य जी और साहब बहादुर की बग्गी

झरोखा: पंकज पटेरिया। उन दिनों समूचे नर्मदा अंचल मे आवागमन के साधन नहीं थे, आम लोग पैदल आना जाना करते थे। सम्पन्न लोग अपनी निजी सवारी जिसे बग्गी कहते, उससे सफर करते थे। सुबह सबेरे का वक्त बाल सूर्य पूर्व की खिड़की से झाखने को थे। जाने माने राजवैद्य, सिद्ध ज्योतिषविद्य पंडित कुंज बिहारी लाल पटेरिया इटारसी स्थित अपने निवास से बग्गी पर सवार होकर किसी बेहद गंभीर मरीज को देखने होशंगाबाद के किसी गांव जा रहे थे, सड़के भी नहीं थी। धूल गर्द भरी पकडंडी भर होती थी। बहरहाल राजवैद्य जी जिन्हे लोग आदर पूर्वक दद्दा जी कहते थे, पवारखेड़ा, ब्यावरा के बीच संकरे रास्ते पर रपटे के बीचों बीच पहुंचे ही थे, तभी टन टन घंटी बजाती एक अंग्रेज साहब बहादुर सर मैं जर एमपी रिकेल्टस, उनकी पत्नी मैम साहब अपनी सजी धजी बग्गी मे सवार ठीक सामने आ धमकी, वे सुबह की सैर को निकली थी।

रास्ता इतना संकरा था, एक बार में एक वाहन ही निकल सकता था। पीछे लौटने की गुंजाइश नहीं थी। मेम की बग्गी का चालक दद्दा के बग्गी चालक से पीछी खसकने की जिद करते हुए अभद्रता करने लगा। जबकि बह बहुत आसानी से बग्गी पीछे ले सकता था। लेकिन लगातार बदसलूकी कर रहा था। जब गालियां बकने लगा, और मैम भी खामोश तो दद्दा जी ने उसे डांटते हुए दो बेंत रसीद कर दी। तभी अश्व सवार जंगल से शिकार करते लोटते कलेक्टर साहब आ गए। राजवैद्य पटेरिया जी ने निर्भीकता से उन्हें सारा घटना क्रम सुना दिया, उन्हे बताया कि वे गंभीर मरीज को देखने जा रहे है, थोड़ी सी भी जगह मेरी बग्गी को सरकने की नही, फिर भी बग्गी वान इस तरह सुलूक कर रहा था। सारी घटना सुनकर फिंरगी अफसर आग बबूला हो उठा।

उसने पहले दद्दाजी से हाथ जोड़ आई एम वेरी वेरी सारी जेंटलमैन कहकर माफी मांगी, और फिर कहा हम गॉड से प्रेयर करता आपका पेशेंट सलामत हो, बाद में साहब बहादुर ने अपनी मेम और बग्गी चालक को जमकर डांट फटकार लगाई। दद्दाजी इन पंक्तियों लेखक के परदादा थे। गदर के समय अपने भरे पूरे घर परिवार के साथ कंदेरी बुंदेलखंड की जमीन जायदाद छोड़ इटारसी मे अपना कारोबार देखने लगे थे। मुझे पिताजी स्व बाबू गणेश प्रसाद पटेरिया जी घर के सयाने लोगो के साथ कीर्ति शेष क्काजी केशरी चंद सराफ, लच्छी काका जी लक्ष्मी नारायण अग्रवाल नर्मदा ऑयल एंड फ्लोर मिल के मालिक ये दोनो मेरे पिता जी के सहपाठी और मित्र थे, अंग्रेज कलेक्टर के कई किस्से सुनाए थे, जो आज भी मेरी यादों मे चस्बा है।

उन्ही मे एक और दिलचस्प किस्सा उन्ही साहब की मेम साहब का है,उन्हे कोई गंभीर रोग था, साहब कई जगह दिखा चुके थे, लेकिन फायदा जरा भी नहीं था। दद्दा की ख्याति सुनकर साहब दुखी होकर दद्दा जी शरण में आए, दद्दाजी मेम साहब की नाड़ी देख जंगल से लाई खुद बनाई जड़ी बूटी से उनका इलाज शुरू कर दिया। और आश्वत किया कि वे बिल्कुल ठीक हो जाएगी। ईश्वर कृपा से वे भली चंगी हुई। कलेक्टर साहब ने दद्दा जी इनाम इकराम देने की जी भर कोशिश की, लेकिन दद्दा जी ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया। बाद में इन साहब की इंग्लैंड वापसी फरमान तो भी अग्रेंज दंपत्ति ने दद्दा से साथ चल ने अर्ज की, तब भी दद्दा जी ने शालीनता से अस्वीकार कर दिया। साहब और मेम ने नम आंखों से विदा ली। दद्दा जी ने भी मंगल कामनाएं देकर उन्हें विदाई दी।

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पंकज पटेरिया संपादक शब्द ध्वज
वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिष सलाहकार।
9893903004,9407505691

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