झरोखा: उफनती नर्मदा जी जब नहीं बढ़ी, पंडित जी के बंधे कुर्ते के आगे

झरोखा: उफनती नर्मदा जी जब नहीं बढ़ी, पंडित जी के बंधे कुर्ते के आगे

पंकज पटेरिया: बात इन्हीं पानी वाले बारिश के मौसम की हैं, और अतीत की एक सिसकती याद के रूप में चस्पा हैं।
भले चार दशक गुजर गए, लेकिन बरसात आते ही नर्मदा जी की बाढ़ का वह रौद्र रूप याद आ जाता है। सिहर जाते नर्मदापुर के वे सब वाशिंदे जिन्होंने खो अपने घर बार। बरसों बीत जाने के बाद भी उस आपदा के जख्म अभी भी पूरे भर नहीं पाए हैं। बेहद दर्द भरी दास्तां है। भारी जन.धन की हानि हुई थी। इटारसी, हरदा, भोपाल, बैतूल, नागपुर, रायसेन के दानवीर लोग हम बाढ ग्रस्त लोगों की हर संभव मदद के लिए दौड़ा चला आया था। 30 अगस्त 1973 को सर्किट हाउस के बाजू की ब्रिटिश दौर की एक पिंचीन टूटना एेसा प्रलयंक कारी विप्लव की बजह बना और बाढ़ से उफनती नर्मदा जी की धारा सीधे शहर में दाखिल हो गई थी। तीन चौथाई शहर पानी से घिर गया था। हजारों के साथ श्री धूनी वाले दादाजी स्थित गटरू बाबू की आलीशान कोठी भी धराशाही हो गई थी, वहां रहने वाले मेरे बहनोई टीपी मिश्रा का परिवार बुरी तरह प्रभावित हुआ था। मैं स्वयं भी तब उनके साथ रहता था। हमने रेलवे स्टेशन पर एक संबंधी स्वण् एसआर द्विवेदी के घर जाकर शरण ली थी। तीन दिन शहर बाढ़ से घिरा रहा था। चार महीने तक नारकीय दुर्गंध से शहर उभर नही ंपाया था। मैं दैनिक भास्कर संवाददाता था, सप्ताह भर एक लुंगी, शर्ट धोकर सुखा कर रोज पहनकर क्षेत्र की रिर्पोटिग करता था। यही हालत सब की थी। खैर गटरू बाबू के उस घर में स्थित दादा जी धूनी वाले जी के मंदिर में दादा जी की पूजा सेवा करने वाले पंडित जी सिद्ध संत राम किशन महाराज जी भी रहते थे। उन्हें कृपा सिद्धि प्राप्त थी। हम सब उन्हें कभी पंडित जी, कभी दादाजी ही कहते थे। बाढ से घिरने से हम लोग सुरक्षित स्थान पर जा रहे थे, तो उनसे भी चलने की बहुत विनय की, लेकिन वे साथ नहीं चले। नर्मदा जी का जल स्तर जब चारों तरफ फैलता बढ़ने लगा तो पंडित जी रक्षा करो दादा जी का जय कारा लगाते हुए जोर से नर्मदा जी से गुहार लगाई, मैया बस अब जाके आगे नहीं बढ़ना, और अपना भगवा कुर्ता उतार कर मंदिर के दरवाजे के लोहे के सीखचों पर बांध दिया। मां अपने बेटों की पुकार कैसे टालती, जोर से बिजली चमकी और नर्मदाजी आकर वही ठहर गई। यह दृश्य देख अनेक परिचित मित्र दादाजी शिष्य जो उन्हें लेने आए थे, हक्के बक्के रह गए। मां की कृपा अथवा दादा जी की लीला बताते हैं दादा जी के सेवक परम शिष्य उपेंद्र सिंह मुन्नू भैया बहुत मुश्किल से रेस्क्यू आर्मी टीम दादाजी महाराज को राजी कर नाव से लेकर आ पाई थी। आज भी वह दृश्य आंखों में है। बाद में दादा जी महाराज कोरी घाट के पास विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंचेए और दादा जी के एक और अनुयाई वे भी बरसों मूल दादाजी आश्रम में रहे, सिद्ध संत श्री दुर्गा नंद जी महाराज के साथ अरणि मंथन से अग्नि प्रज्वलित कर धूनी जागृत कर एक और आश्रम बनाया। मूल स्थान पर दादाजी पंडितजी मिश्रा निवास पर आते जाते रहे, अन्त में उनकी जीवन लीला समाप्त हुई। धूनी वाले दादा जी और नर्मदा मैया की अदभुत लीला की कथाएं जनजीवन में व्याप्त है, जिन्हें सुनते सुनाते लोग पुलकित हो उठतें हैं। इसीलिए भक्ति भाव आस्था से नर्मदापुरम वासी कहते हैं, काल दूत यमदूतों का भय हरती रक्षा करती मां तेरे पद पंकज में रेवे सदा वंदना मेरी मां। नर्मदे हर।

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पंकज पटेरिया संपादक शब्द ध्वज
9340244352,9407505691

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