Editorial : नपा चुनाव में असंतुष्टों की चुप्पी क्या गुल खिलाएगी
Editorial: What will feed the silence of the dissidents in the Nagar palika election 2022.

Editorial : नपा चुनाव में असंतुष्टों की चुप्पी क्या गुल खिलाएगी

: रोहित नागे –
नगर पालिका परिषद (Nagar Palika Itarsi) के लिए होने वाले चुनावों में प्रचार अब शबाव पर पहुंच चुका है। टिकट वितरण से पूर्व भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से दर्जनों दावेदार थे। टिकट की घोषणा के बाद असंतोष का जो ज्वालामुखी फूटकर लावा बहना था, वह दिखाई नहीं दिया। सोशल मीडिया पर इशारेबाजी अवश्य देखने को मिली थी। लेकिन, सड़क पर आकर विरोध इस सोशल मीडिया के जमाने में बीते दिनों की बात हो गयी है। अपनी सारी भड़ास सोशल मीडिया पर निकाल ली जाती है, दिमाग में जो गुस्सा होता है, यहीं खत्म हो जाता है। फिर सड़क पर आकर गुस्सा करने की उर्जा बचती ही नहीं है। यही इस बार भी हुआ लगता है।
जो सोशल मीडिया पर गुस्सा (भड़ास) निकाल चुके हैं, वे अब शांत मन से निष्ठावान कार्यकर्ता की तरह उसी प्रत्याशी के लिए प्रचार करते फिर रहे हैं, जिनके खिलाफ टिकट नहीं मिलने पर आग उगली थी। ये प्रचार एक निष्ठावान कार्यकर्ता कर रहा है, या फिर निपटाने की रणनीति का हिस्सा है, यह तो वक्त आने पर पता चलेगा, लेकिन कई वार्डों में ऐसा महसूस तो होने लगा है कि गुस्से की आग दिखावे की राख के नीचे सुलग रही है और यह उस वार्ड की लंका जलाने में चिंगारी का काम कर सकती है। यह आलम थोड़ा कम-ज्यादा दोनों प्रमुख पार्टी भाजपा और कांग्रेस में बरकरार है। जिन्हें टिकट नहीं मिली, उनसे जिस तरह दबाव बनाकर नामांकन वापस कराया है, उस पीड़ा को कई लोग भूले नहीं हैं, हंसी चेहरे पर ओढ़कर भीतर जो पीड़ा दबी है, कहीं रिजल्ट के साथ बाहर आ जाए तो आश्चर्य नहीं।
कुछ वार्डों में नामांकन वापस हो गये, तो कहीं-कहीं बगावती तेवर बरकरार हैं। ये बगावती तेवर खुद को पार्षद बनाने के लिए नहीं बल्कि अपनी ही पार्टी को आईना दिखाने के लिए है। क्योंकि इनके मैदान में रहने से पार्टी के वोट कम होंगे और जब सामने वाली पार्टी का या अन्य कोई उम्मीदवार जीते तो पार्टी को यह अहसास कराया जा सके कि उनको टिकट मिलती तो वे वार्ड जीत सकते थे। इसे पांच वर्ष बाद के चुनाव के लिए इन्वेस्टमेंट भी माना जा सकता है, चाहे इसके लिए अभी निष्कासन की पुडिय़ा ही घोलकर क्यों न पीनी पड़े?
दरअसल, निष्कासन छह वर्ष के लिए होता है। लेकिन, ऐसा बहुत कम होता है कि पूरे छह वर्ष कोई निष्कासित रहे। जब अगले चुनाव आएंगे तो हो सकता है कि पार्टी बुलाकर टिकट दे दे। यह बात और है कि जीतने की स्थिति इनकी भी नहीं होती है। परंतु ऐसा कौन है जो ऐसा कहे कि वह जीत नहीं सकता। खुशफहमी ऐसी चीज होती है, जो लोगों को हमेशा अपने आप में गुमराह रखती है। बहरहाल, यह तो तय है कि असंतुष्टों से पार्टी प्रत्याशियों को नुकसान होगा? किस पार्टी का कितना होगा, यह वक्त आने पर पता चलेगा। फिलहाल चुनाव और फिर रिजल्ट की यात्रा पर नजर रखते हैं।

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