अहंकार मानव बुद्धि को नष्ट कर देता है : आचार्य विश्व स्वरूपानंद

Post by: Rohit Nage

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इटारसी। कलयुग में जन्म लेने वाले अनेक जन अपने पूर्व काल के सत्कर्मों के आधार पर धनवान बलवान एवं बुद्धिमान होते हैं लेकिन धैर्यवान नहीं होते। जो धीरज खो देता है, उसमें अहंकार समा जाता है और अहंकार के कारण मानव अपने आप को ईश्वर से बड़ा समझने लगता है। उक्त उद्गार हरिद्वार के संत आचार्यश्री विश्व स्वरूपानंद महाराज ने वृंदावन गार्डन इटारसी में व्यक्त किये।

आदि गुरु शंकराचार्य के अनुयाई ब्रह्मलीन महंत श्री सुंदर गिरी महाराज की पावन स्मृति में शंकराचार्य समुदाय द्वारा वृंदावन गार्डन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान सप्ताह के तृतीय दिवस में स्वामी श्री विश्वस्वरूपानंद ने कहा कि राजा बलि भी धनवान, बलवान, बुद्धिमान और दानवीर भी थे, लेकिन इन सब का उनमें गुमान भी था, अहंकार भी था। जिसके कारण वह अपने द्वार आए भगवान को भी पहचान नहीं पाए। भगवान श्री हरि विष्णु वामन अवतार धारण कर राजा बलि के राज दरबार में पहुंचे थे। जहां उन्होंने दान में तीन पैर जमीन मांगी और जब राजा ने कहा नाप लो तीन पैर जमीन तो भगवान वामन ने एक पैर से पृथ्वी दूसरे पैर से आसमान और तीसरे पैर राजा बलि के सिर पर रखकर उसके अहंकार को दूर कर उसका उद्धार किया।

इस वामन अवतार प्रसंग के साथ ही प्रवचनकर्ता स्वामी जी ने भक्त प्रहलाद एवं नरसिंह अवतार प्रसंग की कथा भी भक्ति भाव के साथ श्रोताओं को श्रवण कराई। अन्य प्रसंग का भी संगीतमय वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि मानव जीवन में भक्ति ही मुक्ति का मार्ग होती है, लेकिन भक्ति सामथ्र्यवान होनी चाहिए और व्यक्ति धैर्यवान होना चाहिए। कथा के प्रारंभ में मुख्य जवान रामगिरी श्याम गिरी एवं अन्य श्रोताओं ने स्वामी विश्व स्वरूपानंद एवं मुंबई के महामंडलेश्वर शिव शंकारानंद गिरी महाराज का स्वागत किया।

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