चुनावी चौपाल : अभी सब हैं निष्ठावान, टिकट की घोषणा के बाद दिखेंगे बगावती तेवर
नगर पालिका चुनावों की घोषणा के बाद पार्षद बनने का सपना पाले लोग अपने-अपने वार्डों में सक्रिय हो गये हैं। कुछ नेता दूसरे वार्डों में जाकर अपनी जमीन तलाशने लगे हैं, जिनके अपने वार्ड दूसरे वर्ग के लिए आरक्षित हो गये हैं। अभी सभी के सपने केवल मुंगेरीलाल के सपने कहे जा सकते हैं, क्योंकि दावेदारी करने में, टिकट मिलने और नाम वापसी तक कुछ भी सौ फीसद नहीं कहा जा सकता है। जो भी दावे किये जाएंगे वे केवल गुब्बारे की तरह होंगे, जिनकी हवा निकलते देर नहीं लगेगी। अभी सब पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता हैं, पार्टी का आदेश मानने को बेताब, लेकिन जैसे ही प्रत्याशी के नाम का ऐलान हुआ तो निष्ठा, आदेश जैसी भावना हवा में उड़ जाएंगी और फिर देखने को मिलेंगे बगावती तेवर और शुरु होगा मान-मनौव्वल का दौर।
असमंजस में कांग्रेसी
चुनावों की चासनी से पकवान बनाकर उसका लुत्फ उठाने का हसीन ख्वाब देखने वाले कांग्रेसियों को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने जोर का झटका धीरे से दिया है। कमलनाथ इन दिनों काफी मूडी स्वभाव में हैं। चुनावी समीकरण अपनी ही रणनीति से बिठाने में लगे हैं, जबकि अन्य नेताओं की सलाह भी सुन रहे हैं। कमलनाथ का यह आदेश कई कांग्रेसियों पर (कई अच्छे और अनुभवी भी) भारी पडऩे वाला है, और हो सकता है कि नगर पालिका परिषद में इसकी कमी महसूस हो। कमलनाथ ने एक ही शहर में लोगों को बाहरी का तमगा दे दिया, जबकि नगर पालिका और नगर परिषद वाले शहरों में ज्यादातर लोग एकदूसरे के काफी परिचित होते हैं। इस आदेश को मानें तो कोई अच्छा नेता, जो काबिलियत रखता हो परिषद में जाने की, वह आरक्षित हो चुके अपने वार्ड के पड़ोस वाले वार्ड से भी, जहां वह जीतने वाला उम्मीदवार हो सकता है, चुनाव नहीं लड़ सकता। क्योंकि आदेश यह है कि कोई भी कांग्रेसी केवल वहीं से उम्मीदवारी कर सकता है, जिस वार्ड का वह वोटर होगा। दूसरे वार्ड में वह बाहरी कहलायेगा। कांग्रेस में किसी भी ऊपरी आदेश का कितनी शिद्दत से पालन होता है, यह इतिहास सबको पता है, इस पत्र के नतीजे में क्या निकलकर आने वाला है, यह तब पता चलेगा जब कांग्रेस उम्मीदवारों की घोषणा करेगी।
भाजपा में भीतर सबकुछ ठीक नहीं
बाहर से भले ही भारतीय जनता पार्टी में सबकुछ ठीक दिखाई देता हो, मगर भीतर से सबकुछ ठीक नहीं है। एक गुट विशेष के भीतर भी नाराजी और मायूसी है, क्योंकि एक ही गुट में कई गुट दिखाई देने लगे हैं। इसके पीछे राजनीतिक जानकार अपने नेता के इर्दगिर्द कई नेता बना देने को बड़ा कारण मान रहे हैं। पार्टी जब बढ़ती है तो दावेदारों की संख्या भी बढ़ती है और टिकट एक को मिलने पर पर शेष असंतुष्ट हो जाते हैं। एक वक्त कांग्रेस की स्थिति ऐसी ही थी, अब जबकि भाजपा का कांग्रेसीकरण हो गया है तो विश्व की सबसे बड़ी पार्टी का तमगा चिपकाये भाजपा भी गुटबाजी, असंतोष जैसी चीजों से कैसे बची रह सकती है। यहां भी अध्यक्ष पद के आधा दर्जन से अधिक दावेदार हैं, कुछ ख्याली पुलाव पका रहे हैं तो कुछ को स्वघोषित हैं। कुछ तो ऐसे हैं जो अपने को विकल्प के तौर पर देख रहे हैं, कि यदि चलते नामों में कहीं खोट निकली तो उनकी निकल पड़ेगी। इन सबके बावजूद तीन नामों पर चर्चाएं आम हैं।
अध्यक्ष के लिए फिलवक्त ये नाम
भाजपा से अध्यक्ष पद के लिए पहला नाम जगदीश मालवीय का प्रमुखता से सामने आया है, जिनको विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा ने विगत करीब एक वर्ष से फील्ड पर काम का जिम्मा सौंप रखा है। नगर पालिका में बतौर विधायक प्रतिनिधि उनका हर काम में खासा दखल रहा है। दूसरा नाम है, विधायक के ही खास सिपाहसालार जयकिशोर चौधरी और तीसरा नाम है, पंकज चौरे का जो छह माह नगर पालिका अध्यक्ष का अनुभव ले चुके हैं। पिछड़ा वर्ग से आने वाले भरत वर्मा भी दावेदारों में शुमार हो जाएं तो आश्चर्य नहीं, वे नगर पालिका अध्यक्ष का डायरेक्ट वाला चुनाव लड़ चुके हैं, और अब पुन: वे दावेदारी जता सकते हैं। बात करें, कांग्रेस की तो पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष रवि किशोर जैसवाल, उनके भतीजे मयूर जैसवाल, कांग्रेस में काफी वजनदारी रखने वाले नेता कम किंगमेकर शिवाकांत गुड्डन पांडेय के अभिन्न मित्र ओम सेन और नगर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पंकज राठौर अध्यक्ष पद की दावेदारी में हैं। इन सारे नामों की अध्यक्षीय दावेदारी तो है, लेकिन अप्रत्यक्ष प्रणाली के चुनावों में पहली शर्त है, इनका पार्षद बनना। इसके बाद ही किसी नाम को दावे से लिया जा सकता है।
पुरानी इटारसी से शुरुआत
पुराने शहर से विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा के घोर विरोधी शिवकिशोर रावत ने पहले दिन और एकमात्र नाम निर्देशन पत्र जमा कर दिया है। वे अपने ही वार्ड में खुश हैं, जहां रहते हैं, उसके इर्दगिर्द के वार्डों में उनका अच्छा वर्चस्व है और विश्वास है कि वे विजेता बनकर सामने आएंगे। पुरानी इटारसी ऐसा क्षेत्र है, जहां से कांग्रेस ने पिछली बार चार पार्षद परिषद में चुनकर भेजे थे, यानी यहां के कुल सात पार्षदों में से पचास फीसद से अधिक। कांग्रेस का पुरानी इटारसी में अच्छा प्रभाव होने से ही यहां उसका प्रदर्शन बेहतर रहा है। यही कारण है कि विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा ने विगत पांच वर्षों में इस क्षेत्र को अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा खासी तबज्जो दी। यहां काम भी बहुत कराये हैं और कार्यक्रम भी। पुरानी इटारसी को बस स्टैंड, सीएम राइजिंग स्कूल जैसे बड़े प्रोजेक्ट इस क्षेत्र के लिए अहम साबित हो सकते हैं। बाढ़ के दौरान अक्सर परेशान रहने वाले पुराने शहर के वाशिंदों को मुख्यमंत्री अधोसंरचना के अंतर्गत बनने वाले नालों से काफी राहत मिलेगी ऐसा अनुमान है। बहरहाल, काम तो यहां पहले भी हुए हैं, नगर पालिका चुनाव में पार्टी इनको भुना ले तो ही बात बने, क्योंकि कई बार काम के बाद भी जनता ऐसे चुनाव में चेहरे को चुनती है, पार्टी और काम दूसरे नंबर पर होते हैं।
15 नंबर रहेगा बहुचर्चित
इस बार वार्ड नंबर 15 काफी अहम माना जा रहा है, और यह बहुचर्चित रहने वाला है। कांग्रेस और भाजपा से अध्यक्ष पद के जो दावेदार हैं, उनमें ज्यादातर वार्ड क्रमांक 15 से ही टिकट मांग रहे हैं। भाजपा से जगदीश मालवीय इसी वार्ड से टिकट की दावेदारी कर रहे हैं, तो उनके सामने इसी वार्ड के निवासी और जिला भाजपा उपाध्यक्ष कल्पेश अग्रवाल ने भी टिकट मांगकर टिकट की प्रतिद्वंद्विता खड़ी कर दी है। यानी चुनाव में जाने से पहले टिकट के लिए अपनों से ही महाभारत करनी होगी। यही हाल कांग्रेस का भी है। यहां भी कमोवेश यही स्थिति है। वार्ड नंबर 15 से कांग्रेस के ओम सेन और नगर अध्यक्ष पंकज राठौर के बीच पहले टिकट के लिए मुकाबला होगा। यानी टिकट की जंग में जो जीता, वही सिकंदर साबित हो सकता है, क्योंकि अब तक तो यही माना जा रहा है कि यह वार्ड आगे चलकर शहर का प्रतिनिधित्व करने वाला है। फिलहाल टिकट तक ही चर्चा, कौन आगे, कौन पीछे यह आते वक्त के साथ पता चलता जाएगा।