इटारसी। पर्यूषण पर्वाधिराज के तृतीय दिवस के अवसर पर श्री तारण तरण दिगंबर जैन चैत्यालय (Shri Taran Taran Digambar Jain Chaityalaya) में इंदौर (Indore) से आये पंडित डॉ. उदय जैन (Dr. Uday Jain) ने आज उत्तम आर्जव धर्म का विवेचन किया। उन्होंने कहा कि हमारा आत्मा अपने सरल स्वभाव से हटकर पर भाव में रमता है और कुटिलता के परिणाम करके तिर्यंच गति का बंध करता है।
मन, वचन और काय की कुटिलता को त्याग कर परिणाम सरल रखना, अर्थात कभी छल- कपट नहीं करना, जैसा मन में है वैसा ही वचनों से कहना और जैसा कहा है वैसा ही काया से करना व्यवहार उत्तम आर्जव धर्म कहलाता है। दूसरों की चुगली करना, उनके दोष उजागर करना, धोखा देना, झूठ बोलना, ठगी करना मायाचारी कहलाती है।
धन-संपत्ति की चाह एवं भोगों को भोगने की आशक्ति के कारण हम मायाचारी करते हैं। जब हम मायाचार से युक्त होते हैं, तब प्राय: हम ऊपर से हितमित वचन बोलते हैं और सौम्य आकृति बनाते हैं, अपने आचरण से लोगों में विश्वास उत्पन्न करते हैं।
अपने प्रयोजन साधने के लिये विपक्षी की हां में हां मिलाते हैं, किंतु अवसर पाते ही हम मनमानी करने से नहीं चूकते। उन्होंने कहा कि इसलिए मायाचारी से युक्त व्यक्ति का स्वभाव बगुले के समान कहा जाता है और जब दूसरों को हमारी यह प्रवृत्ति समझ आ जाती है तो हम लोगों का विश्वास खो देते हैं।