कृषि विभाग केसला ने शुरु किया जागरुकता अभियान
इटारसी। अगले कुछ दिनों में रबी फसल की कटाई प्रारंभ हो जाएगी। बीते वर्षों में फसल कटाई के बाद नरवाई जलाने से करोड़ों का नुकसान और जनहानि की घटनाएं हो चुकी हैं। ऐसे में कृषि विभाग केसला ने जिले के किसानों से नरवाई न जलाने की अपील करके जागरुक करना शुरु कर दिया है। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह के निर्देशन और उपसंचालक कृषि जेआर हेडाऊ के मार्गदर्शन में कृषि विभाग केसला ने किसान खेत पाठशाला अंतर्गत किसानों को फसल काटने के बाद बचे हुए अवशेष (नरवाई) न जलाने का अनुरोध किया है।
केसला के कृषि विभाग ने राजेन्द्र सिंह राजपूत के नेतृत्व में ग्राम बेलावाड़ा सहित अन्य गांवों में ग्राम सेवक राधेश्याम राठौर के साथ किसानों को समझाईश दी। श्री राजपूत ने बताया कि केसला ब्लॉक के समस्त 51 पंचायतों में यह अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कह ाकि नरवाई जलाने से एक ओर जहां खेतों में अग्नि दुर्घटना की आशंका रहती है, वहीं मिट्टी की उर्वरकता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इसके साथ ही धुएं से कार्बन डायआक्साइड से तापमान बढ़ता है और वायु प्रदूषण भी होता है। मिट्टी की उर्वरा लगभग 6 इंच की ऊपरी सतह पर ही होती है। इसमें खेती के लिए लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं। नरवाई जलाने से यह नष्ट हो जाते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति को नुकसान होता है।
उन्होंने किसानों को सुझाव दिया है कि नरवाई जलाने के बजाए यदि फसल अवशेषों को एकत्र करके जैविक खाद बनाने में उपयोग किये जाये तो यह बहुत लाभदायक होगा। नाडेप तथा वर्मी विधि से नरवाई से जैविक खाद आसानी से बनाई जा सकती है। इस खाद में फसलों के लिए पर्याप्त पोषक तत्व रहते हैं। इसके आलावा खेत में रोटावेटर अथवा डिस्क हैरो चलाकर भी फसल के बचे हुए भाग को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है।
विभाग द्वारा किसानों को फसलों की नरवाई में आग न जलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए गांव और कस्बों में जाकर लोगों को जागरूक किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि फसलों के अवशेषों (नरवाई) में आग लगाने से कृषि भूमि का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। इससे फसलों के लिए लाभकारी 16 तरह के पोषक तत्व व कैंचुआ जैसे सूक्ष्म जीव भी नष्ट हो जाते हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने वाली कार्बन व नाइट्रोजन पूरी तरह से नष्ट होने से जमीन की उर्वरा शक्ति समाप्त होती जा रही है।
नरवाई का जैविक खेती के लिए करें इस्तेमाल
श्री राजपूत ने बताया कि पर्यावरण प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और रसायनिक खाद व कीटनाशकों से जनित बीमारियों को रोकने के लिए फसल की नरवाई (भूसा), गोबर, नीम के पत्ते व गुठली व अन्य घरेलू कचरे को जैविक खेती के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जैविक खेती के लिए देशी खाद के रूप में इसका उपयोग किया जा रहा है। इससे जलवायु परिवर्तन और बढ़ती हुई बीमारियों को काबू पाने में मदद मिल सकेगी।