नर्मदापुरम : 40 वर्ष के प्रयास का सार्थक परिणाम
– पंकज पटेरिया :
मुख्यमंत्री श्री चौहान द्वारा की गई पुण्य सलिला मां नर्मदा के की गोद मे बसे पावन नगर का नाम नर्मदापुरम (NARMADAPURAM) किए जाने की घोषणा से सारा नगर मुदित मन झूम उठा। सुबह जैसे ही सूर्यदेव की पावन किरणों ने मोक्षदायिनी नर्मदा जी की अविरल बहती धारा को स्पर्श किया, नर्मदापुरम नाम की यह खबर रश्मि रथ से नगरवासियों के हर घर को उत्सवी, पर्व जैसी उमंग से भर गई।
नर्मदापुरम (NARMADAPURAM) नाम किए जाने की यह मांग बहुत पुरानी है। आज से करीब ४०, वर्ष पूर्व प्रख्यात लेखक कीर्ति शेष पुरातत्वविद डॉ धर्मेंद्र प्रसाद ने इस संबंध में नगर में अग्रवाल धर्मशाला में एक बैठक का बुलाई थी। जिसमें शिक्षाविद,अधिवक्ता पंडित रामलाल शर्मा के अलावा नगर के बुद्धिजीवी, साहित्यकारों, पत्रकारों, गणमान्य नागरिकों ने हिस्सा लिया था। मैं उन दिनों एक प्रमुख अखबार का पत्रकार था, लिहाजा मैं उसमे शामिल हुआ था। बैठक में शरीक हुए कुछ प्रमुख नाम याद आ रहे हैं जिनमें स्वाधीनता संग्राम सेनानी सुकुमार पगारे, आजाद कक्का डीपी जैसवाल, पंडित हरिहर व्यास आदि शामिल थे। सर्व समत्ति से नगर का नाम होशंगाबाद से बदलकर नर्मदापुरम किए जाने का प्रस्ताव पारित हुआ था। शासन को भेजने का प्रबंध भी किया गया था। सभी की सलाह पर नगर के प्रमुख स्थानों पर पांच रजिस्टर भी इस आशय के अनुरोध के साथ रखे गए थे कि लोग हस्ताक्षर करें। हस्ताक्षर अभियान में बड़े पैमाने पर नागरिकों ने समर्थन में हस्ताक्षर किए गए थे। बाद में यह सब सरकार को पोस्ट किए गए थे। लेकिन तात्कालिक सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। तब से बराबर पत्राचार चलता रहा।
डॉ प्रसाद की पुस्तक नर्मदा के पुरावशेष में उल्लेख है भारतीय वित्त विभाग के प्रथम निदेशक ने भोपाल से प्राप्त एकता में पत्र के आधार पर नर्मदापुरम नाम लिखा है। यह ताम्रपत्र परमार काल के राजा उदय वर्मा का है। परमार काल में यानी 8वी १४वी सदी तक नर्मदापुरम नाम प्रचलन में था। वक्त के साथ राजपाट बदलते रहे राजशाही भी तब्दील होते रहे।
संपूर्ण नर्मदांचल में 11 वीं सदी से सोलवीं सदी तक के अति प्राचीन पुरातात्विक महत्व की पूरा सामग्री मिलती रही है। उनसे भी यह पुष्टि होती है उसी दौर का प्राचीन खंडहर किला आज भी इस बात का साक्षी है। तब किले का शासन परमार वंश का था। रहवासी बस्ती किले के आसपास होती थी। उसी दौर का राजा मोहल्ला आज भी स्थित है। स्वर्गीय कवि मनीषी पंडित भवानी प्रसाद मिश्र की विश्व प्रसिद्ध कविता इसी खंडहर को केंद्र में रखकर लिखी गई है जिसका ताना-बाना एक राजकुमारी और उसके बांसुरी वादक पागल प्रेमी की प्रणय कथा को लेकर बुना गया है।
नर्मदापुरम आदिकाल से धर्म संप्रदाय के ऋषि, मुनि, दरवेश, सूफी, संत की साधना स्थली रही है। गुरु शंकराचार्य, मार्कंडेय ऋषि, जमाली ऋषि आदि के अलावा भारती बाबा, गोरी शंकर महाराज जी, रामजी बाबा, देवा माई, गुरु नानक साहब के पावन चरणों का पावन परस इस पावन भूमि को मिला, वही बाबा कमली शाह साहब, नौ गजा साहब की लीला से यह धन्य होती रही है। इन सभी संत विभूतियों की छतरी, समाधि, नर्मदापुरम में धर्म पुराणजनों की श्रद्धा, आस्था का केंद्र बनी। नगरी की सर्व धर्म समाधि की ध्वजा फहरा रही है।
विधायक डाक्टर सीतासरन शर्मा ने बहुत खोजबीन कर तत् संबंधी आवश्यक दस्तावेज भी एकत्र किए और संकल्प के साथ नर्मदापुरम नाम किए जाने के लिए सबको साथ लेकर विभिन्न स्तरों पर निरंतर प्रयास करते रहे। इसका परिणाम है, प्रदेश के मुख्यमंत्री नर्मदापुत्र शिवराज सिंह चौहान ने इसे मजबूती से उच्च स्तर तक रखा और फॉलोअप करते रहे और वह दिन आ गया जब उन्होंने सबसे पहले टि्वटर और बाद में अधिकृत रूप से पुण्य सलिला नर्मदा जी के जल मंच से नर्मदापुरम नाम की घोषणा की। हर नर्मदे हर नर्मदे के समवेद जय घोष से आकाश गूंज उठा था। नर्मदे हर
पंकज पटेरिया,
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