यहाँ माता महाकाली के विकराल रूप की होती है दशकों से पूजा-आराधना

यहाँ माता महाकाली के विकराल रूप की होती है दशकों से पूजा-आराधना

इटारसी। आज हम आपको पुरानी इटारसी की देवल मंदिर काली समिति द्वारा स्थापित की जाने वाली विशालकाय माँ काली की प्रतिमा की शुरूआत से लेकर आज तक की सफर की जानकारी देंगे।
श्री देवल मंदिर काली समिति (Shri Deval Mandir Kali Samiti) द्वारा स्थापित यह प्रतिमा शहर की सबसे बड़ी काली प्रतिमा होती है। देवल मंदिर और समिति की स्थापना कब और कैसे हुई है यह तो किसी को ठीक-ठीक जानकारी नहीं और न ही कहीं अभिलिखित है। परंतु सारे पुरानी इटारसी क्षेत्र के लगभग 300 परिवारों की तीसरी पीढ़ी समिति में शामिल है, जिनके पूर्वज प्रारंभिक वर्षों से ही समिति के सदस्य के रूप में अपना योगदान देते आ रहे हैं। शहर के जिस क्षेत्र को सभी पुरानी इटारसी के नाम से जानते हंै। पहले वही मुख्य इटारसी थी और उसी समय से काली समिति यहां माँ काली की स्थापना, आराधना करती आ रही है। काली समिति द्वारा मूर्ति स्थापना का सही प्रारंभिक वर्ष तो किसी को भी विदित नहीं परन्तु अंग्रेजों के ज़माने से ही लगभग सन् 1937 में यहां मूर्ति प्रथम बार स्थापित की गयी थी, ऐसा वर्षों पहले छपी देवल मंदिर काली समिति की एक पुस्तक में लिखा है। हालांकि समिति के वरिष्ठ सदस्य इस बात को भी मानते हंै कि यह प्रतिमा उससे पहले भी कई वर्षों से लगातार विराजित होती चली आ रही है।
समिति में शुरुआत से ही कोई अध्यक्ष, उपाध्यक्ष नहीं है। बल्कि लगभग तीन सौ से ज्यादा सदस्य समिति में प्रारंभिक वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे हैं और तन मन धन से माँ की सेवा करते आ रहे हैं। सिर्फ ये तीन सौ सदस्य ही नहीं अपितु इन सभी के परिवार भी माँ काली की भक्ति में कोई कसर नहीं छोड़ते। वही एक अन्य वरिष्ठ ने इसी प्रश्न का एक रोचक जवाब देते हुए कहा कि यहां भगवान राम समिति के अध्यक्ष हैं जो माँ काली के अनन्य भक्त हंै। हनुमान जी समिति के उपाध्यक्ष हंै जो अपने अध्यक्ष स्वामी और माँ की भक्ति में अपना सर्वस्व देकर पूर्ण सहयोग देते हैं।

शहर की सबसे बड़ी प्रतिमा
वर्तमान में माँ काली की प्रतिमा (Kali ki Pratima) राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थापित की जाती है परन्तु प्रारंभिक समय में मूर्ति की स्थापना देवल मंदिर में ही की जाती थी। वहीं आज शहर की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करने वाली काली समिति शुरुआती समय में अभी से आधी ऊंचाई की प्रतिमा की स्थापना करती थी। परंतु बीच के वर्षों में जब पहली पीढ़ी को अलविदा कहकर, दूसरी पीढ़ी ने समिति का कार्यभार संभाला था तब उन्होंने प्रतिमा को भव्य रूप में स्थापित करना शुरू किया। इस तरह शहर ही नहीं जिले की सबसे बड़ी और प्रदेश की सबसे विशाल प्रतिमाओं में यहां विराजित होने वाली माँ काली का जिक्र होने लगा।
यहां विराजित होने वाली माँ काली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जिस भव्य और साक्षात संहारक स्वरुप में माँ काली की प्रतिमा यहां विराजती है जिले भर में ऐसी प्रतिमा कहीं नहीं विराजती। माना जाता है कि जिले भर में कोई ऐसी समिति नहीं है जिसमें की तीन सौ सदस्य परिवार सहित मूर्ति स्थापना में सहयोग करते हों। यह केवल आज से नहीं अपितु पिछले लगभग आठ दशकों से होता चला आ रहा है।

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