इटारसी। गांधी सभा भवन ट्रस्ट (Gandhi Sabha Bhavan Itarsi) के मामले में नित नये दावे सामने आ रहे हैं। अब इस मामले के एक से अधिक पक्ष बन गये हैं, जिनके अपने-अपने दावे हैं। कानून से जुड़े लोगों की अपनी कानूनी भाषा है तो दुकानदारों के अपनी दलीलें। आज दो पक्षों ने संयुक्त रूप से एक पत्रकार वार्ता का आयोजन कर गांधी सभा भवन ट्रस्ट मामले में दावे किये हैं, इनमें एक दुकानदारों का पक्ष रहा तो एक पूर्व सचिव का।
पूर्व में अपने एक कॉलम में हम कह चुके हैं कि यह मामला इतनी जल्दी शांत होने वाला नहीं है। इसमें कांग्रेस, गांधी सभा भवन ट्रस्ट, दुकानदार, पूर्व सचिव और शासन के अपने-अपने दावे हैं। एक पक्ष इस भवन का जर्जर बताकर तोडऩा चाहता है तो तीन पक्ष इसे तोडऩे के पक्ष में कतई दिखाई नहीं देते। कांग्रेस तो भवन का स्वामित्व चाह रही है, दुकानदारों को अपनी दुकान बचाना है, पीडब्ल्यूडी ने इसे कंडम घोषित किया है तो अधिकारियों को अपना काम करना है। हालांकि इसमें जब से राजनीति का प्रवेश हुआ है, फिलहाल टूटने जैसी प्रक्रिया तो थमती नजर आ रही है, अब तो जुबानी जंग और दावों का एक लंबा सा दौर चलने की उम्मीद है, जैसा आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावे किये गये हैं।
दुकानदारों ने रखी अपनी बात
श्री प्रेमशंकर दुबे स्मृति पत्रकार भवन में दुकानदारों ने कहा कि जयस्तंभ चौक स्थित गांधी सभा भवन ट्रस्ट जिसे कांग्रेस भवन ट्रस्ट भी कहा जाता रहा है, इसमें हम सभी 10 दुकानदार लगभग पिछले 40 वर्षों से अपना व्यवसाय संचालित कर अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं। हम पर लगभग 30-40 कर्मचारियों का परिवार भी आश्रित है। सभी दुकानदार ट्रस्ट के किरायेनामे की शर्तों का पालन निरंतर कर रहे हैं, लेकिन पूर्वाग्रह एवं दुर्भावना से ग्रस्त होकर ट्रस्ट हम पर किराया न जमा करने का कोर्ट केस करके हार भी चुका है, इसीलिए अधिकारियों से मिलीभगत करके भवन को कमजोर साबित करके भवन तोडक़र हमें बाहर निकालना चाहते हैं। इस संपूर्ण प्रकरण में नगर पालिका एवं पीडब्ल्यूडी विभाग के अधिकारियों की भूमिका भी एक पक्षीय एवं संदिग्ध दिख रही है। इतने मजबूत भवन को कंडम घोषित करना इसी साजिश की ओर इशारा करता है। इटारसी शहर में नगर पालिका की 10 से अधिक बिल्डिंग हैं जो अत्यंत खतरनाक एवं जर्जर की श्रेणी में आती है, उसे लेकर नगरपालिका द्वारा कोई कार्यवाही ना करना संदेह पैदा करता है।
गांधी सभा भवन बिल्डिंग की जांच अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कंपनी BEACON द्वारा हेमर टेस्टिंग तकनीक से की गई जिसमें भवन को अत्यधिक मजबूत बताया गया। हम चाहते हैं कि किसी स्वतंत्र जांच एजेंसी से भवन की मजबूती की निष्पक्ष जांच करवायी जाए एवं इसके पश्चात नगरपालिका एवं प्रशासन द्वारा निर्णय लिया जाए।
पूर्व सचिव शर्मा का दावा
पूर्व सचिव अधिवक्ता राजेश शर्मा (Rajesh Sharma) ने कहा कि उक्त ट्रस्ट को मेरे पिता स्व. बालकृष्ण शर्मा (Balkrishna Sharma) पिता स्व. हरिराम शर्मा (Hariram Sharma) एवं स्व. हरिप्रसाद चतुर्वेदी (Hariprasad Chaturvedi) पिता स्व. नन्दलाल द्वारा वर्ष 1968 में व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए स्थायी पट्टा नियमानुसार प्रीमियम अदा कर प्राप्त किया था, जिस पर यह पट्टा कांग्रेस भवन ट्रस्ट के नाम से जारी कराया गया था। उस जमीन पर ट्रस्ट की शर्तों के अनुसार निर्माण के बाद उसे गांधी सभा भवन ट्रस्ट कहा जायेगा। इस पर मेरे पिताजी ने एवं हरिप्रसाद चतुर्वेदी ने अपनी स्वयं की आय एवं चंदा इकट्ठा कर एवं उक्त संपत्ति को बैंक में रहन रख बनाया था तथा बैंक को (PNB) को किराये पर दिया था। ऋण की राशि किराये में समायोजित करायी गयी थी।
उक्त ट्रस्ट में पिछले कुछ वर्षों से ट्रस्ट की उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो रही है, जिसके लिए इस ट्रस्ट का निर्माण हुआ था। इस ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उनके वारसानों, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, उनकी शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सहायता के लिए था एवं ट्रस्ट के स्थायी सदस्य एवं पदाधिकारी भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी या उनके प्रथम श्रेणी उत्तराधिकारी हो सकते हैं।
दुकानें भी बेच दी हैं
शर्मा ने कहा कि इन्होंने दुकान नं. 03 जो कि सदाशिव चौधरी को विक्रय कर दी जो ट्रस्ट के BY LAWS के हिसाब से यह गैर कानूनी है। अपने व्यक्तिगत हित को साधने के लिए संतोष गुरयानी एवं रितेश विश्वकर्मा को सचिव एवं सह-सचिव बनाया। पूर्व में कई बार ट्रस्ट की राशि को अपने भोपाल स्थित ट्रस्ट के सेंट्रल बैंक खाते में आंतरित किया। ट्रस्ट की प्रत्येक कार्य प्रणाली को देखते हुए मैंने प्रथम जिला न्यायधीश इटारसी के समक्ष वर्ष 2022 में एक दावा प्रस्तुत किया है जिसका क्रमांक RCSA/51/2022 है। यह दावा अभी न्यायालय में लंबित है।
मुझे विधि विरुद्ध हटाया
शर्मा ने कहा कि मैं इस ट्रस्ट में सचिव पद पर रहा हूं एवं मुझे बिना किसी सूचना के पद से हटाया जो कि विधि विरुद्ध है। मैं आज भी विधिक रूप से इस ट्रस्ट का सचिव हूं। मुझे इनके अनैतिक कार्यों का समर्थन न करने के कारण इनके द्वारा हटाने की गैरकानूनी प्रक्रिया की गयी थी।
इनका कहना है…
जो भी निर्णय ट्रस्ट के सदस्यों ने लिया वह प्रक्रिया के तहत लिया है, उसी के अनुसार हमें सचिव बनाया है। विधि विरुद्ध कुछ नहीं है। हम निजी ट्रस्ट हैं, शासकीय ट्रस्ट वाले नियम हम पर लागू नहीं होते।
संतोष गुरयानी, सचिव गांधी सभा भवन ट्रस्ट
आरोप लगाने दीजिए, इस विषय में मैं कुछ भी नहीं कहूंगा, हमारे सचिव और अधिवक्ता संतोष गुरयानी हैं, जो कुछ कहना है, वही कहेंगे।
राकेश चतुर्वेदी, अध्यक्ष गांधी सभा भवन ट्रस्ट