गणगौर पूजा: रनुबाई-धनियर राजा की स्थापना कर खेली पाती

गणगौर पूजा: रनुबाई-धनियर राजा की स्थापना कर खेली पाती

होशंगाबाद। गणगौर त्योहार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। मुख्य रूप से इस पर्व को राजस्थान के लोग मनाते है। इसी के साथ उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में भी कुछ इलाकों में गणगौर व्रत (Gangaur fast) रखा जाता है। इस बार ये पूजा 15 अप्रैल यानि आज थी। इस व्रत को पति से गुप्त रखकर किया जाता है। गणगौर पूजा होली के दिन से शुरू होकर 18 दिनों तक चलती है। कमिश्नर कॉलोनी के पास खंडेलवाल निवास पर गणगौर माता की स्थापना की गई। कोरोना को ध्यान मे रखते हुए खंडेलवाल समाज की महिलाओं ने घर पर ही धनियर राजा और रनु बाई का पूजन अर्चन किया। साथ ही धनियाराजा और रनुबाई का श्रृगार कर महिलाओं ने पाती खेली।

gangour mata

गणगौर पूजा सामग्री
साफ पटरा, कलश, काली मिट्टी, होलिका की राख, गोबर या फिर मिट्टी के उपले, सुहाग की चीज़ें (मेहँदी, बिंदी, सिन्दूर, काजल, इत्र), शुद्ध घी, दीपक, गमले, कुमकुम, अक्षत, ताजे फूल, आम की पत्ती, नारियल, सुपारी, पानी से भरा हुआ कलश, गणगौर के कपड़े, गेंहू, बांस की टोकरी, चुनरी, हलवा, सुहाग का सामान, कौड़ी, सिक्के, घेवर, चांदी की अंगुठी, पूड़ी आदि।

गणगौर पूजा विधि
सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं। पूजा के समय शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र अर्पित करें। माता पार्वती को सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं चढ़ाएं। चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प का इस्तेमाल करते हुए पूजा-अर्चना करें। इस दिन गणगौर माता को फल, पूड़ी, गेहूं चढ़ाये जाते हैं। एक बड़ी सी थाली लें उसमें चांदी का छल्ला और सुपारी रखें और उसमें जल, दूध, दही, हल्दी, कुमकुम घोलकर सुहागजल तैयार कर लें। दोनों हाथों में दूब लेकर इस जल से पहले गणगौर पर छीटें लगाएं फिर महिलाएं उस जल को अपने ऊपर सुहाग के प्रतीक के तौर पर छिड़क लें। अंत में माता को भोग लगाकर गणगौर माता की कथा सुनें। गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है। जो सिन्दूर इस दिन माता पार्वती को चढ़ाया जाता है, उसे महिलाएं अपनी मांग में भरती हैं। पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है गणगौर व्रत, जानिए इसकी संपूर्ण व्रत कथा
इस दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर शोभायात्रा निकालते हुए विसर्जित किया जाता है।

मान्यता है कि गौरीजी की स्थापना जहां होती है वह उनका मायका हो जाता है और जहां विसर्जन होता है वह ससुराल। शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड में इनका विसर्जन किया जाता है। इस दिन अविवाहित लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा महिलाएं चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। गणगौर विसर्जित करने के बाद घर आकर पांच बधावे के गीत गाये जाते हैं।

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