हमारे दयार-ए-ख़्वाब पर तुम्हारे इख्तियार हैं।
तुम्हारे ख़्वाबों से ये हर पल गुलज़ार हैं।।
हाल-ए-दिल ये हुआ है कि खुली आंखों में भी
तुम्हारे ही ख्याल बेशुमार हैं,
कोई और ख़्वाब कदम कैसे रखे कि
ये पलकें अब बन गईं पहरेदार हैं,
ख़्वाबों की गलियों के हर मोड़ पर
ये आंखें तुम्हें ही देखने को बेकरार हैं,
ख़्वाबों में रोज़ तुम्हारा दीदार हुआ करता है
अब रूबरू तुम्हें देखने को ये अश्क तलबगार हैं।
अदिति टंडन (Aditi Tandan)
आगरा