इटारसी। श्रीकृष्ण को भक्तवत्सल भगवान ऐसे ही नहीं कहते। एक बार श्रीकृष्ण दुर्योधन के राज्य गए जहां उन्होंने दुर्योधन के महल न जाकर विदुर जी के घर जाना उचित समझा। घर पर विदुर जी नहीं मिले परन्तु उनकी पत्नी भगवान को देखकर इतनी मंत्रमुग्ध हो गयी कि केले छीलकर उन्हें छिलका खिलाती चली गयी और केले फेंकती गयी। भगवान भी अपने भक्त के भाव का मान रखते हुए छिलके खाकर आनंदित होते रहे। जब विदुर जी आये तो यह दृश्य देखकर पत्नी से बोले यह क्या खिला रही हमारे भगवान को। तब भगवान बोले कि आप दोनों के प्रेम और पवित्र भक्ति में केले से अधिक स्वाद छिलके में आ रहा है।
उक्त प्रसंग द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर परिसर में पुरुषोत्तम मास में जारी तृतीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में कथाव्यास पं दीपक मिश्रा ने व्यक्त किये। सावन के अधिक मास के अंतर्गत नर्मदांचल के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर तुलसी चौक में जारी श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यस पं दीपक मिश्रा ने कृष्ण विदुर प्रेम, कर्दम देवहूति का विवाह और पुत्र कपिल भगवान के जन्म सहित अन्य प्रसंग कथा सुनायी। कर्दम ऋषि और माता देवहूति की 9 कुल शिरोमणि कन्याओं के बाद दसवीं संतान के रूप में भगवान कपिल का जन्म हुआ था जो ईश्वर का ही अवतार थे।
उल्लेखनीय है कि अपने पूज्य माता पिता स्वर्गीय दयाराम कुशवाहा एवं स्वर्गीय कलाबाई कुशवाहा की स्मृति में कथा के यजमान धनराज कुशवाह, प्रमोद पगारे एवं श्रीमती अनुराधा कुशवाहा एवं अमित दरबार, ने श्रीमद्भागवत पूजन के साथ व्यास पीठ पर विराजे पंडित दीपक मिश्रा का पुष्पहार से स्वागत किया। गायन एवं सिंथेसाइजर पर नारायण तिवारी, तबले पर विवेक परसाई, ऑक्टोपेड पर ओम तिवारी संगत दे रहे है। श्रीमद्भागवत का प्रसिद्ध मूल पाठ एवं प्रात: काल की पूजा पंडित आकाश शर्मा द्वारा कराई जा रही है। कथा के आयोजन में मंदिर समिति के प्रबंधक दिनेश का महत्वपूर्ण सहयोग रहा है।