परमात्मा पूजा पाठ से नहीं शुद्ध मन से प्रसन्न होते हैं : तिवारी
ग्राम मेहरागांव में श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन
इटारसी। श्रीमद्भागवत कथा में सतगुरू शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को समझाया, इस संपूर्ण संसार में प्रत्येक मनुष्य को इस बात पर भी विचार करते रहना चाहिए कि एक अवश्य घर संसार छोड़कर जाना ही पड़ेगा। आप हम सभी ने इस दुनिया से चलने की पूरी तैयारी रखनी चाहिए। हमारा कोई सा भी दिन आखिरी हो सकता है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि सत्कर्म, सेवा, सत्संग, सुमरण, परोपकार के लिए नहीं छोडऩा चाहिए। उक्त उद्गार मेहरागांव में चल रही भागवत कथा के छटवें दिवस में संत भक्त पंडित भगवती प्रसाद तिवारी ने व्यक्त किए।
श्री तिवारी ने कहा कि जितना अच्छा हो सकता है, अपने हाथ से ही कर डालो। दान, ध्यान, सत्कर्म, सेवा कल पर नहीं टालना चाहिए। प्रभु की भक्ति, सेवा, सुमरण चाहे थोड़ा करो, लेकिन परमात्मा पर भरोसा तो चौबीस घंटे करना चाहिए। मृत्यु याद दिलाती है, अमृत की खोज करो। जहां जाने पर रोग नहीं, बुढ़ापा नहीं, दुख नहीं, मृत्यु नहीं ऐसी जगह स्थान की खोज करना चाहिए। जहां पर सदा एक जैसा सुख, शांति, आनंद उस परम पिता परमेश्वर की चरण शरण प्राप्त करने का प्रयास किया करो। परमात्मा को केवल पूजा, पाठ, कथा, तीर्थ, मंत्र ही नहीं साफ शुद्ध मन भी चाहिए।
परमात्मा से लेन देन का व्यापार मत करो, निष्काम प्रेम का संबंध जोड़ो। प्रभु से मांगना बंद करो, वे अन्तर्यामी हैं, भिखारी को नहीं देते, अधिकारी को बिना मांगे देते हैं। सत्कर्म, मेहनत, पुरूषार्थ करके अधिकारी बने। भाग्य के भरोसे जो कर्महीन बैठा है, वह स्वयं अपना दुश्मन है। हर समस्या का समाधान युक्त बुद्धि ही समाधि का गुण है। सच्चा संत , सतगुरु, महापुरुष अपने आप में ही भरपूर, स्वभाव से ही संतुष्ट होते हैं। हम सभी को इस दुनिया से चलने की पूरी तैयारी रखनी चाहिए, कभी भी किसी का भी, बुलावा आ सकता है।
इस दुनिया में कोई भी सदा रहने वाला नहीं है। इसलिए परमात्मा की प्रतिदिन सच्ची श्रद्धा, भक्ति, सेवा,सुमरण करते रहो।आज कथा प्रसंग मे महारास लीला का वर्णन, कंस वध, गोपी उद्धव संवाद, जरासंध से युद्ध, द्वारकापुरी का निर्माण एवं रुक्मणी विवाह का प्रसंग आध्यात्मिकता से वर्णन सुनाया।