सैंकड़ों आदिवासी बड़ादेव की पूजा करने पहुंचे तिलक सिंदूर

Post by: Rohit Nage

Bachpan AHPS Itarsi

इटारसी। आदिवासी परंपरा से आज भी पूजा होती है, आदिवासी भगवान भोलेनाथ को बड़ादेव के नाम से मानते हैं। तिलक सिंदूर में दूर-दूर से पूजा अर्चना करने आदिवासी समाज के लोग पहुंचे। तिलक सिंदूर समिति के मीडिया प्रभारी विनोद वारिवा ने बताया कि आदिवासी प्रकृति की पूजा करते हैं, जैसे कि पेड़, पौधे एवं शास्त्र महुआ का पेड़, साजड़, ककर के पत्ते में भोग लगाते हैं।

तिलक सिंदूर में प्रत्येक वर्ष, नवरात्रि में देव तीर्थ स्नान करने श्रद्धालु पहुंचते हैं, जहां पारंपरिक रूप से शाम को देव को शहनाई, ढोलक, टिमकी के साथ नाचते हैं और रात भर पूजा करते हैं। इसके बाद उगते सूरज पर देव को नहलाया जाता है। देव को बांस की बनी टोकरी में रखकर लाया जाता है, देव एक दूसरे से मिलान करते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर पूजा देने भी पहुंचते हैं।

नर्मदापुरम, बैतूल, सारणी, शाहपुर, चोपना, हरदा सहित अन्य जिलों से श्रद्धालु आज तिलक सिंदूर पहुंचे। श्री वारिवा ने कहा कि रात्रि के समय तिलक सिंदूर प्रांगण में किसी प्रकार से कोई भी लाइट की व्यवस्था नहीं है, लोग आग के भरोसे रात गुजारते हैं। समिति ने प्रशासन से मांग की है लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। रात के समय तेंदुआ, रीछ जैसे जानवर का भी आना-जाना लगा रहता है।

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