अज्ञान, अभिमान, अविद्या, विकार का नाश हो तभी सच्ची सुख शांति और आनंद मिलता

इटारसी। मधुर मिलन सेवा समिति के सहयोग से चल रही श्रीमद्भागवत कथा में आज संदलपुर खातेगांव के संतभक्त पं. भगवती प्रसाद तिवारी ने कहा कि महामुनि सतगुरु श्री शुकदेव जी महाराज ने सम्राट परीक्षित को समझाया, संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक प्राणी सुख, शांति, आनंद प्राप्ति के लिए रात दिन मेहनत, मजदूरी, नौकरी, धंधा, व्यापार करता है। लेकिन न चाहते हुए भी जीवन में दु:ख, अपमान, निंदा, हानि, बुराई, बीमारी का सामना करना पड़ता है। मनुष्य को जब तक सच्चा ज्ञान नहीं होता है,वह दु:खी ही रहता है।

किसी भी तरह से मनुष्य का अज्ञान, अभिमान, अविद्या, विकार का नाश होना चाहिए, तभी मनुष्य सच्ची सुख शांति और आनंद पाने में सफल हो सकता है। अपने अज्ञान को ,बुरी आदत को, मन के दोष मिटाने में कोई कसर नहीं छोडऩी चाहिए। चाहे स्नान से दान से, ध्यान से, यज्ञ से, तीर्थ यात्रा से, मंदिर से, देवी देवता से, कथा से तपस्या से जैसे भी बन पड़े अपने दोष, दुर्गुण, विकार, पाप से छुटकारा पाने का प्रयास करते रहो। संसार में जितने भी धार्मिक स्थल हैं, ये मानव को महामानव बनाने के लिए ही हैं। धर्म चाहे कोई सा भी हो अच्छे, सच्चे मनुष्य बनो। कुछ लोगों के जीवन में खूब पूजा पाठ, कीर्तन, तीर्थ ,व्रत, जप, त्याग करते हुए भी स्वभाव, व्यवहार में राग, द्वेष, घृणा,नफरत, अभिमान दिखाई देता है।

सत्संग से ही मनुष्य को समझ में आता है, कैसा जीवन जीना चाहिए। संसार की संपदा एक दिन विपदा बन जाती है। अज्ञानता से संपत्ति भी विपत्ति बन जाती है । कितना भी धन कमाओ अंत में निधन होना ही है। सत्संग में ऐसा धन कमाते जो लोक और परलोक में भी साथ रहता है। इस दुनिया में कोई भी सदा रहने वाला नहीं है इसलिए परमात्मा को हमेशा याद रखें। सद्ज्ञान के बाद ही सबसे प्रेम स्नेह का व्यवहार होगा।

CATEGORIES
Share This
error: Content is protected !!