माह-ए-रमजान में नन्हें रोजेदार भी दे रहे इम्तिहान, रोजा रख कर इबादत में हैं मशगूल

Post by: Rohit Nage

इटारसी। मुस्लिम समाज का पवित्र महीना रमजान भी चल रहा है। माना जाता है कि रमजान के माह में अल्लाह हर एक नेकी के बदले कई गुणा नेकियों का सवाब अता फरमाते हैं। पाक मुकद्दस माह-ए-रमजान में बड़े ही नहीं बल्कि छोटे बच्चे भी रोजा रखकर इबादत में मशगूल हैं। करीब साढ़े 13 घंटे से अधिक रोजे से भूखे-प्यासे रहकर पांचों वक्त रब की बारगाह में सजदा कर दुआ मांग रहे हैं। बच्चों का जज्बा और सब्र देखकर बड़े भी उनके कायल हो रहे हैं।

माह-ए-रमजान इस्लाम में 12 महीनों में सबसे खास माना जाता है। इसमें हर बालिग के ऊपर रोजा रखना फर्ज है, लेकिन छोटे बच्चे भी रब को राजी करने के लिए पीछे नहीं हैं। वह भी पूरी कसरत के साथ इबादत में जुटे हैं और रोजे रख रहे हैं। 8 साल के अहिल- राहिल के 18 रोजे पूरे हो गये हैं। इटारसी अवाम नगर के दो मासूम राहिल राशिद खान और आहिल अनीश खान ने रमजान के पवित्र माह में रोजे रखे हैं। लगभग 35 डिग्री तापमान में रमजान के कठिन रोजे पूरे करने में ये बच्चे पीछे नहीं हैं। राहिल 9 वर्ष और अहिल 8 वर्ष ने रमजान में एक नहीं 18 रोजे रख कर रिकॉर्ड कायम किया है। घरों का माहौल दीनी हो तो बच्चे भी उसी राह पर चलते हैं। बच्चों के दादा अमीर अली ने अपने बेटों को दीन की राह सिखाई तो उनके बेटे अनीश अन्नू और राशिद वनरक्षक ने अपने बेटों अहिल, राहिल को भी वहीं तालीम दी। बच्चे हैं यह कहकर रोजे रखने से उन्हें रोका नहीं, रोजा रखने दबाव भी नहीं बनाया। घर में सब रोजा रख रहे, यह देख दोनों बच्चों ने भी रोजा रखना शुरू कर दिया।

बता दें अहिल, राहिल चचेरे भाई हैं। संयुक्त परिवार से बच्चे न सिर्फ संस्कारित होते हैं, बल्कि इंसानियत का सम्मान, भूख, प्यास क्या होती है यह विरासत भी उन्हें मिलती है। प्यास से जब गले और जुबान हर दस मिनट में सूख रही। इस हाल में इन बच्चों का करीब साढ़े 13 घंटे भूखे, प्यासे रह कर रोजा रखना। साबित करता है कि रोजे का संकल्प अल्लाह को हाजिर मानकर किया जाता है, तो ताकत भी वही देता है। दोनों बच्चों की मां नहीं हैं अहिल और राहिल दोनों की मां का दो साल पहले इंतकाल हो चुका है। होश भी नहीं सम्हाला और मासूम अपनी मां से बिछड़ गए। सब्र करना किसे कहते हैं, इन बच्चो ने नायब उदाहरण पेश किया है। बच्चे अपनी मां को अभी भी शिद्दत से याद करते हैं।

दोनों के दादा-दादी, पिता, छोटी बहनें, उन्हें बहलाती है, सम्हालती हैं। रोजे की शहरी तड़के 4 बजे होती है। अहिल, राहिल बिना उठाए जाग जाते हैं और सहरी (हल्का सा भोजन, नाश्ता) कर रोजे की नियत बांध लेते हैं। साढ़े 13 घंटे बाद शाम 6.37 पर रोजा इफ्तार करते हैं। रब उन्हें हिम्मत और सब्र दे रहा है। भूख-प्यास बिल्कुल नहीं सता रही है। दोनों बच्चे रोजा रखकर बहुत खुश हैं और अल्लाह की इबादत कर रहे हैं।

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