इटारसी। श्री द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर में श्री रामजन्म महोत्सव अंतर्गत श्री रामकथा में श्री श्री 1008 युवराज स्वामी श्री रामकृष्णाचार्य ने रामकथा को विस्तार देते हुए कहा कि राजा दशरथ कीअयोध्या में सभी और सुख चैन था परंतु जंगलों में निवास करने वाले ऋषि-मुनियों को राक्षस तंग किया करते थे और उनके यज्ञ में विघ्न पैदा करते थे। आचार्य ने कहा कि विश्वामित्र मुनि को जब पता लगा कि तब मुनिबर मन कीन्ह विचारा। प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा।। पृथ्वी का भार उतारने के लिए प्रभु मनुष्य रूप में अवतार लिया।
विश्वामित्र जी अयोध्या पहुंचे और राजा दशरथ से उन्होंने कहा कि असुर समूह सतावन मोहि। में जाचन आयहु नृप तोहि।। आचार्य ने कहा कि ऋषि विश्वामित्र ने राजा दशरथ ने कहा कि असुर समूह उनको परेशान करते हैं उन्होंने राजा दशरथ से कहा कि अनुज समेत देहु रघुनाथा। निशिचर बध में होब सनाथा। अयोध्या पति राजा दशरथ ने पहले तो दोनों पुत्रों को देने से मना किया और विश्वामित्र से हाथ जोड़कर कहा कि इसके बदले कुछ और मांग ले। तब विश्वामित्र ने राजा के कर्तव्यों की याद दिलाई तब राजा दशरथ ने राम लक्ष्मण को विश्वामित्र को सोप दिया।
आचार्य ने विश्वामित्र और राजा दशरथ के प्रसंग को बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करते हुए कहा कि ऐसा कौन पिता होगा जो अपने कुल में वर्षों पश्चात आई हुई संतानों को युवा अवस्था में राक्षसों के अंत के लिए ऋषि-मुनियों को सौंप देगा परंतु राजा दशरथ का पुत्र मोह कुछ समय ही रहा और उनको जब वास्तविक ज्ञान हुआ कि राजा का यह कर्तव्य है, प्रजा सुखी रहे, तब उन्होंने राम और लक्ष्मण को विश्वामित्र मुनि को सौंप दिया। आचार्य ने कहा कि राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र के साथ जाकर उनके यज्ञ की रक्षा की और ताड़का नामक राक्षसी का वध किया।
व्यासपीठ पर विराजित महाराज जी का समिति के अध्यक्ष सतीश अग्रवाल सावरिया, कार्यकारी अध्यक्ष जसवीर सिंह छाबड़ा, सचिव अशोक शर्मा, कोषाध्यक्ष प्रकाश मिश्रा सहित रमेश चांडक, जयेश बांगड़ ,घनश्याम माहेश्वरी, श्रीमती मीना राठी, श्रीमती सुधा बिरला, अनिल दुबे ने पुष्पहार से स्वागत किया। सुनील साहू ने बांसुरी पर, तबले पर संजू अवस्थी, बैंजो पर मिथिलेश त्रिपाठी ने संगत दी भजनों की सुमधुर प्रस्तुति ललिता ठाकुर ने की। प्रवक्ता भूपेंद्र विश्वकर्मा ने बताया कि द्वारिकाधीश बड़ा मंदिर तुलसी चौक में सायंकाल 7 बजे से रामकथा का भरपूर आनंद लिया।