इटारसी। लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण की अनेक लीलाओं में भक्ति ज्ञान समाहित है, इन्हीं में से एक है, महारास लीला जिसे देखने के लिए जीवन में निष्काम भावना होना चाहिए। उक्त उद्गार स्वामी विश्व स्वरूपानंद महाराज ने वृंदावन गार्डन इटारसी में व्यक्त किये। जगतगुरु आदि शंकराचार्य के अनुयाई ब्रह्मलीन महंत श्री सुंदर गिरी महाराज की पावन स्मृति में आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिवस में स्वामी जी ने कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के साथ ही महारास प्रसंग का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि श्री कृष्ण की महाराज लीला निष्काम है। इसलिए जब यह लीला हो रही थी, उसे वक्त उसमें संसार के वही जीव शामिल थे जिनके मन में किसी प्रकार की कामवासना नहीं थी।
भगवान भोलेनाथ भी इस महारास में गोपेश्वर रूप में सम्मिलित हुए। स्वामी जी ने बताया कि वृंदावन के तुलसी वन में आज भी संध्या काल के पश्चात के यह महारास होता है लेकिन उसे वक्त संसार का कोई जीव वहां नहीं होता क्योंकि वर्तमान में संसार के सभी जीवों में किसी न किसी प्रकार की काम वासना एवं अर्थ भावना समाहित है। इस विशेष प्रसंग के साथी स्वामी जी ने भक्ति में भजन भी प्रस्तुत किया जिसे श्रवण कर उपस्थित भक्तगण भक्ति में झूम उठे छठे दिवस की कथा के अंतिम पहर में भगवान श्री कृष्ण के रुक्मणी मंगल विवाह प्रसंग की कथा सचित्र झांकी के साथ श्रोताओं को श्रवण कराई गई। इसके साथ ही श्री कृष्ण-रुक्मणी विवाह भव्य समारोह पूर्वक मनाया गया। कथा समारोह के मुख्य यजवान रामगिरी एवं श्याम गिरी ने श्री कृष्ण और रुक्मणी के पैर पखारे एवं स्वामी जी का स्वागत किया।