थियटर करना एक थेरेपी के समान है- ज्योति दुबे

सुनील सोन्हिया भोपाल की विशेष बातचीत

सुनील सोन्हिया भोपाल की विशेष बातचीत

यूँ तो ज्योति दुबे (थियेटर आर्टिस्ट एवं अभिनेत्री) स्कूल और कॉलेज के दिनों से ही एक्टिंग करती थी। उसके बाद ज्योति का जुड़ाव रंगमंच की और हुआ ओर कई वरिष्ठ रंगकर्मियों के निर्देशन में ज्योति ने अपनी बेहतरीन अदाकारी का जलवा कई नाटकों में बिखेर चुकी हैं।
ये शादी है सौदा सीरियल से मिला पहला ब्रेक ?
– ज्योति बताती है सीरियल में काम करने के लिए उन्हें मुम्बई से ऑफर आया। मुम्बई में ज्योति का सेलेक्शन हो गया। लंबे समय तक ज्योति ने सीरियल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई टीवी सीरियल के एपीसोड्स में भी काम किया। साथ ही कुछ बॉलीवुड फिल्म में भी एक्टिंग की जो रिलीज़ होने बाक़ी हैं।
किसे ज़्यादा पसंद करती हैं टीवी या रंगमंच?
– दोनों अलग अलग माध्यम है, दोनों में ही काम करना मुझे पसंद है। रंगमंच में रिटेक नहीं होता, रंगमंच करने से मुझे आत्म संतुष्टि मिलती और हमेशा रंगमंच से जुड़ी रहूँगी।

jyoti dubey

रंगमंच के बारे में बताइए ?
– रंगमंच थियेटर वह स्थान है जहां नृत्य नाटक खेल आदि हो। रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों से मिलकर बना है। रंग से अर्थ है कि दृश्यों को आकर्षक बनाने के लिए चित्रकारी वेशभूषा में विभिन्न रंगों का प्रयोग हो और मंच जहां नाटक खेला जाता है। पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ओपेरा कहा जाता है।
आपकी थियेटर की शुरुआत कैसे हुई ?
– कॉलेज के दिनों में मेरे कुछ मित्र थियेटर किया करते थे क्योंकि मैं बचपन से डांस और एक्टिंग किया करती थी। सोचा क्यों न थिएटर भी किया जाए। सन 2008 में इरफान सौरभ के निर्देशन में तात्या टोपे नामक पहला प्ले किया। बाद में नितीश दुबे के यंग ग्रुप के साथ जोड़कर कुछ प्ले किए। फिर मैं स्वतंत्र रूप से काम करने लगी। लगभग अभी तक 16 प्ले कर चुकी हूं जिनके विभिन्न शहरों में 100 से अधिक प्रस्तुतियां हो चुकी हैं।
दूरदर्शन से कैसे जुड़ाव हुआ ?
– सन 2010 में एक प्रोग्राम के लिए एंकर की आवश्यकता थी। मैंने आवेदन कर दिया और मेरा सलेक्शन हो गया। आज भी दूरदर्शन में प्रातः आने वाला गुड मॉर्निंग शो की एंकरिंग कर रही हूं। दूरदर्शन में आने वाले विज्ञापनों को भी किया है।
थियटर और फिल्म, आपको कहां संतुष्टि मिलती है ?
– मैं थिएटर से संतुष्ट हूं। वैसे मुझे फिल्मों एवं सीरियल में काम करना अच्छा लगता है पर थियटर करना एक थेरेपी के समान है। जो मुझे मानसिक रुप से स्ट्रांग करती है।
आप किस तरह के रोल करना चाहेंगी ?
मुझे इस हिस्टोरिकल रोल करना पसंद है जैसे पद्मावती, मस्तानी, पारो।
किस निर्देशक से प्रभावित हैं ?
– वर्तमान में अशोक मिश्रा जी के निर्देशन से बहुत प्रभावित हूं। इसके अलावा कारवां ग्रुप के नजीर कुरैशी एवं बालन सिंह बालूजी भी अच्छे निर्देशक हैं। जिनके साथ काम करना बड़ा अच्छा लगता है।
नए कलाकारों को इस क्षेत्र में जाने के लिए क्या करना चाहिए ?
– पहले सीखना चाहिए। कई लोग डायरेक्ट मुम्बई चले जाते हैं फिर वहाँ काम नही मिलता तो निराश हो जाते हैं। पहले जो भी करना चाहते उसके बारे में अच्छे से जान लें, सीख लें, प्रॉपर ट्रैनिंग लें। रंगमंच से जुड़ना भी अच्छा माध्यम होगा नए कलाकारों के लिए।

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