प्रेम दिवस : भावनाओं का बढ़ता व्यापार

प्रेम दिवस : भावनाओं का बढ़ता व्यापार

फिर से प्रेम दिवस का शोर है। अतिउत्साह इतना कि 7 फरवरी से ही कोई न कोई एक दिवस प्रेम के लिए बहाना ढूंढऩे के लिए होता है। एक दिन प्रेम का…। सोचकर आश्चर्य होता है कि भला प्रेम का कोई निर्धारित दिन कैसे हो सकता है? प्रेम कोई व्यापार तो नहीं है कि शुभ मुहूर्त देखकर किया जाए। मगर हां, आज का प्रेम भले ही व्यापार नहीं है। लेकिन, प्रेम को सामने रखकर भावनाओं का व्यापार अवश्य हो रहा है। मसलन, हर दिन कोई न कोई डे बताकर जमकर व्यापार किया जा रहा है। 7 फरवरी से कभी रोज़ डे, 8 को प्रपोज डे, 9 को चॉकलेट डे, 10 को टेडी डे, 11 को प्रॉमिस डे, 12 को हग डे, 13 को किस डे और 14 को वेलेंटाइन डे। करीब दो दशक से ही यह भावनाओं का व्यापार किया जा रहा है। पहले जब यह नया-नया शुरु हुआ था तो उस वक्त के युवा केवल वेलेंटाइन डे को जानते थे और उसके पीछे चल निकले थे। आज के युवाओं की नादानी का फायदा बड़ी-बड़ी कंपनियों ने उठाना शुरु किया और धीरे-धीरे अन्य डे प्रारंभ हुए। अब एक पूरा सप्ताह वेलेंटाइन डे वीक के नाम से जमकर चांदी काटी जा रही है। युवा पीढ़ी की इस नादानी से अगले कुछ बरस में वेलेंटाइन पखवाड़ा और फिर पूरा माह हो जाएगा। इन नादानों को समझ नहीं आता है कि साल के पूरे 365 दिन, हर घंटे, हर क्षण प्रेम का होता है। उसे किसी दिन, महीने, साल में बांधकर नहीं रखा जा सकता। प्रेम की इन्हीं भावनाओं से फिल्म अवतार का यह गीत लिखा गया था। ‘दिन, महीने साल गुजरते जाएंगे, हम प्यार में जीते, प्यार में मरते जाएंगे’। जाहिर है, हर पल प्रेम है।
किसी ने जीवन के विषय में लिखा है,
दिन, महीने, साल, हफ्ता,
गुज़र जाएंगे रफ्ता-रफ्ता,
काटेगा रोकर या चलेगा हंसता-हंसता।
युवा भी भेड़ चाल में बड़ी आसानी से आ जाते हैं। दरअसल, किशोर उम्र का प्रेम समझदार नहीं होकर भावुक होता है। कोमल मन को आसानी से बरगलाया जा सकता है। यही काम इन दिनों बड़ी-बड़ी कंपनियां कर रही हैं। भावनाओं का बाजार चल निकला है, तो ये कंपनियां भी चांदी काटने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। किशोरवय प्रेमी समझ ही नहीं पाते हैं कि प्रेम कोई क्षणिक भाव तो नहीं है, जिसे किसी एक दिन के लिए सहेज कर रखा जा सके। यह संभव ही नहीं है कि पूरे एक साल के लिए किसी एक दिन ही प्रेम की अभिव्यक्ति की जा सकती है। यदि ऐसा है, तो फिर हर पल, हर दिन अपने प्रेमी या प्रेयसी को देखने, मिलने के लिए ये प्रेमी क्यों बैचेन रहते हैं। प्रेम, केवल विपरीत लिंगी नहीं होता है। प्रेम में किसी युवक और युवती का ही वजूद जरूरी नहीं है। मां, पिता, भाई, बहन, मित्र, गुरु, शिष्य, और ऐसे ही अनेक रिश्ते प्रेम की बुनियाद पर ही टिके होते हैं। इसी बुनियाद पर भरोसे की मजबूत इमारत बनती है। इसे प्रेम के मसाले से जोड़कर सदियों-जन्म-जन्मांतर तक रखा जा सकता है।
कबीर कहते थे कि ‘ प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजो जेहि रुचै, शीष देय लै जाय ‘… अर्थात् प्रेम न घर की बाड़ी या खेत में होता है और ना ही किसी हाट-बाजार में बिकता है। राजा हो या प्रजा जिसे भी इसे पाने की इच्छा या चाहना हो वह शीश देकर अर्थात् झुककर या विनम्रता को जीवन में धारण करके पा सकता है।
कबीर मस्तमौला फक्कड़ संत शिरोमणि हैं। प्रेम का रहस्य बताते हुए कहते हैं – प्रेम को संकीर्ण न रखें। प्रेम को किसी बाड़े में उपजाया नहीं जा सकता अर्थात प्रेम को किसी एक विषय वस्तु में नहीं बांधा जा सकता। प्रेम तो निश्छल निर्मल और शुद्ध है। प्रेम में कुछ पाना नहीं है उलटा सबकुछ खो देना ही प्रेम है। प्रेम हाट बाज़ार में नहीं बिकता क्योंकि उसकी कीमत अनमोल है। आजतक इसे खरीदने वाला कोई नहीं मिला। लेकिन जिस किसी को इसे पाने या अनुभव करने की रुचि है फिर चाहे राजा या प्रजा जो कोई हो इसकी कीमत चुका कर ले जाए। और वह कीमत है अपना शीश देकर यानी अपना अहंकार की मैं सबसे बड़ा नेमी प्रेमी हूं त्याग कर सदा के लिए प्रेम में रम जाए। ये कीमत जो चुकाए वही बिरला प्रेमी है।
लेकिन अब प्रेम बाजारवाद की गिरफ़्त में बिकता है, वेलेंटाइन वीक के नाम से। बिक ही तो रहा है। बाज़ार प्रेम (वस्तुओं) से भरा हुआ है, जिसकी जितने प्रेम की औकात हो वह उतना प्रेम खरीद सकता है, और की अधिकांश प्रेमिका कीमती प्रेम की प्रतीक्षा में हंै।
व्यापारवाद के जमाने में कंपनियों ने प्रेमियों की ये हालत कर दी है कि कई प्रेमी उसी कीमत के दम पर ही प्रेम को खरीद लेने के लिए वेलेंटाइन डे का इंतजार करते हैं। सोचकर आपके कान खड़े हो जाएंगे और मन विचलित हो सकता है। प्रेमियों का एक बड़ा वर्ग इसे केवल और केवल वासना दिवस बना देता है। सोचने की जरूरत है कि ये युवा किस प्रेम की दिशा में बढ़ रहे हैं?
एक अप्रमाणिक कहानी के पीछे भागने की यह प्रवृति कोई बड़ा इतिहास अपने साथ नहीं समेटे है। इस प्रेम दिवस की शुरुआत कैसे हुई? इसका कोई प्रमाणिक तथ्य नहीं है। माना जाता है कि संत वेलेंटाइन की याद में इस दिवस की शुरुआत हुई थी। इसके पीछे भी कोई एक कहानी नहीं है। जिसने जैसा समझा, वैसी कहानी गढ़ दी। जो सबसे प्रचलित कहानी थी उसके अनुसार रोमन सम्राट क्लौडीयस द्वितीय ने अपने सैनिकों को विवाह नहीं करने देने की घोषणा की थी। उसका मानना था कि विवाह के बाद सैनिक का ध्यान और उसकी क्षमता कम हो जाता ह। वेलेंटाइन चुपके-चुपके सैनिकों का विवाह कराया करते थे और सम्राट को पता लगने पर उन्हें मार दिया गया। लेकिन कहानी के कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं हैं।

प्रेम की हमारी प्रमाणिक संस्कृति
वसंत उत्सव। प्रेम से लबरेज। इस भारतवर्ष की संस्कृति में ही प्रेम रचा-बसा है। वसंत ऋतु प्रेम का प्रतिनिधित्व करती है। होली, प्रेम का पर्व है। हम प्रेम से गुलाल लगाकर गले मिलते हैं। रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक पर्व है, भुजलिया पर एकदूसरे के प्रति पे्रम दिखता है। शिवरात्रि भगवान शिव और मां पार्वती के प्रेम का पर्व है। ऐसे अनेक पर्व और उत्सव हैं, जो हिन्दुस्तान को प्रेम का जन्मदाता बना सकते हैं। लेकिन, इस देश के युवा आज भी उन्हीं अंग्रेजों के मानसिक गुलाम हो रहे हंै, जिनसे बलिदान देकर हमारे पूर्वजों ने आजादी पायी थी।

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