साक्षरता तो बढ़ी लेकिन अंधविश्वास ने ले ली एक और जान
सर्पदंश के उपचार से परहेज, झाडफ़ूक में गंवाते हैं समय
इटारसी। केसला आदिवासी विकासखंड (Kesla Adivasi Vikaskhand) में सरकार ने प्रायमरी शिक्षा से लेकर कालेज तक की शिक्षा के इंतजाम किये हैं, सोशल मीडिया से मिलने वाला ज्ञान और हर हाथ में मोबाइल के बाद इंटरनेट पर हर चीज की वैज्ञानिक परख तक मौजूद है। बावजूद इसके लोग अंधविश्वास की बेडिय़ों में इस कदर जकड़े हैं कि जिंदगी का सौदा करने की गलतफहमी में मौत को गले लगा लेते हैं। यहां आज भी सर्पदंश का उपचार झाडफ़ूंक के जरिये ही होता है। पिछले माह तवानगर के चीचा गांव के एक युवक की सर्पदंश से मौत के बाद अब चीपखेड़ाबर्रा के एक ग्रामीण ने भी सर्पदंश से केवल झाडफ़ूक में समय बर्बाद करने से दम तोड़ दिया।
विशेषज्ञ बताते हैं कि तमाम शिक्षा और जागरुकता कार्यक्रम के बावजूद ग्रामीण अंचल के पुराने लोग झाडफ़ूक जैसे अंधविश्वास का सहारा लेते हैं। कुछ नयी पीढ़ी भी है, जो शिक्षा से दूर है या फिर ओझाओं और तांत्रिकों के झांसे में आ जाते हैं और जान गंवा बैठते हैं। केसला के उत्कृष्ट विद्यालय के विज्ञान शिक्षक राजेश पाराशर बताते हैं कि उन्होंने विज्ञान की कसौटी पर परखने वाले कई जागरुकता कार्यक्रम किये, अंधविश्वास से ग्रामीण अंचलों को बाहर लाने अपने खर्च पर कई कार्यक्रम किये। लेकिन, चूंकि वे शिक्षक हैं तो स्कूल में समय देना पड़ता है, इसलिए उनके कार्यक्रम निरंतर नहीं हो सके। प्रशासन भी इस तरह के जागरुकता कार्यक्रम को यदि सहयोग करने लगे तो आदिवासी अंचल से अंधविश्वास को हटाने में काफी मदद मिल सकेगी।
रात में सांप ने काटा, कुछ घंटे में मौत
केसला आदिवासी ब्लॉक के कैलाश कासदे, निवासी चीपखेड़ाबर्रा को रात करीब डेढ़ बजे उस वक्त सांप ने होंठ पर काट लिया जब वह अपने मक्के के खेत में पत्नी फूलवती के साथ रखवाली कर रहा था। दोनों खेत में लकड़ी की मचान बनाकर सो रहे थे। जैसे ही सांप ने काटा, उसने पत्नी फूलवती को बताया कि उसे सांप ने काट लिया है और उसने सांप को हाथ से झटका देकर दूर फैंक दिया। कैलाश पिता नंदकिशोर ने वहीं से अपने चाचा कमल कासदे को मोबाइल करके घटना बतायी और रोड तक मोटरसायकिल लेकर आने को कहा। वे लोग रोड तक पहुंचे और चाचा कमल कासदे के साथ ग्वाड़ी पहुंचे जहां रामनाथ यादव के पास झाडफ़ूंक कराके घर लौट आये।
झाडफ़ूंक की सायकोलॉजी
ग्रामीणों में झाडफ़ूंक का इतना भरोसा होता है कि वे खुद को ठीक होना मान लेते हैं। इस मामले में भी यही हुआ। पुलिस को दी जानकारी में कैलाश कासदे के चाचा कमल कासदे ने बताया कि झाडफ़ूंक के बाद कैलाश को थोड़ा आराम लग गया था। इसके बाद वे लौट आये और घर पहुंच गये। करीब एक घंटे बाद कैलाश को घबराहट होने लगी और वह उल्टियां करने लगा। थोड़ी देर में उसकी मौत हो गयी। दरअसल, झाड़$फूंक पर अंधा विश्वास कर लेने से इनके साथ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है, कैलाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। झाडफ़ूंक के बाद उसे अच्छा लगने लगा था, लगा कि आराम मिल गया है, यही अंधविश्वास उसकी मौत का कारण बन गया।
तवानगर वाली घटना भी कुछ ऐसी थी
तवानगर (TawaNagar) के चीचा में एक युवक मनोज मरकाम को 8 जुलाई को सुबह जहरीले सर्प ने काट लिया था। परिजनों ने झाडफ़ूंक में समय गंवाया और जब हालत बिगड़ी तो अस्पताल लेकर आये। चिकित्सकों के प्रयासों के बावजूद युवक को बचाया नहीं जा सका। युवक की मौके बाद परिजनों ने डाक्टर्स पर समय पर उपचार नहीं देने का आरोप लगाकर हंगामा किया, लेकिन वे यह कतई मानने को तैयार नहीं थे कि वे युवक को समय पर अस्पताल लेकर नहीं आये। डॉक्टर्स का कहना था कि युवक के परिजन उसे देरी से लेकर अस्पताल आए, तब तक जहर शरीर में फैल चुका था, जबकि मरीज के आते ही उपचार दिया था, जहर का असर उपचार से भी खत्म नहीं हो सका।
अब आगे क्या….
दरअसल, इतनी साक्षरता के बावजूद गांवों में आज भी झाडफ़ूंक करने वालों का इतना दबदबा है कि वे तरह-तरह से ग्रामीणों को डराते हैं, कुछ तो ऐसे हैं कि डॉक्टर के पास जाने को भी मना करते हैं। ऐसे में ग्रामीणों को अंधविश्वास से बाहर लाने जागरुकता कार्यक्रम निरंतर चलाने की जरूरत है। इस मामले में जब उत्कृष्ट विद्यालय केसला के विज्ञान शिक्षक राजेश पाराशर से बात की तो उन्होंने बताया कि वे ऐसे कार्यक्रम कर चुके हैं। लेकिन, शासकीय सेवा में होने से स्कूल में भी वक्त देना पड़ता है, यदि उन्हें प्रशासन की ओर से उन्हें अनुमति मिल जाए तो वे इसे निरंतर रखकर इस अंचल में विज्ञान के आधार पर अंधविश्वास को खत्म करने का प्रयास कर सकते हैं।