भगत सिंह के बलिदान पर आधारित ‘गगन दमामा बाज्यो’ का नाट्य मंचन आज

भगत सिंह के बलिदान पर आधारित ‘गगन दमामा बाज्यो’ का नाट्य मंचन आज

इटारसी। पीयूष मिश्रा (Piyush Mishra) के उपन्यास ‘गगन दमामा बाज्यो’ (‘Gagan Damama Bajyo’) पर आधारित नाट्य प्रस्तुति आज शाम 6 बजे पं.भवानी प्रसाद मिश्र ऑडिटोरियम (Pt. Bhavani Prasad Mishra Auditorium) में होगी। यह अमर शहीद सरदार भगत सिंह (Sardar Bhagat Singh) के बलिदान और उनकी वीरगाथा पर आधारित है।
पंजाबी साहित्य अकादमी (Punjabi Sahitya Akademi) मप्र शासन संस्कृति विभाग द्वारा गुरुद्वारा गुरुसिंघ सभा इटारसी (Gurdwara Gurusingh Sabha Itarsi) के सहयोग से आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत यह नाट्य मंचन करेगी। देव फौजदार के निर्देशन में होने वाले इस नाट्य मंचन की शुरुआत विधायक डॉ.सीतासरन शर्मा (MLA Dr. Sitasaran Sharma) के मुख्य आतिथ्य एवं नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पंकज चौरे (President of Municipal Council Pankaj Choure) की अध्यक्षता में होगा। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (Rashtriya Swayamsevak Sangh) के विभाग कार्यवाहक नर्मदापुरम (Narmadapuram) आनंद मुजुमदार विशेष अतिथि रहेंगे। इस नाट्य मंचन में मुंबई (Mumbai) के कलाकारों की टीम आज शाम 6 बजे से ऑडिटोरियम (Auditorium) में प्रस्तुति देगी।

  • इसी पुस्तक का अंश…

    भगत – जिस्म पर लगे घाव आदमी की ताक़त का सबूत नहीं होते जनाब। ताकत कहीं और से आती है। ख़ून बहना कोई बड़ी बात नहीं है, वो अपना हो या सामने वाले का। बड़ी बात ये है कि जिस्म से टपकी हुई एक बूंद आने वाली नस्ल के सारे के सारे खूऩ में आग लगा सकती है या नहीं। इनसानी जिंदगी बहुत कीमती होती है। हंसते-हंसते उसको फांसी के तख्ते पे चढ़ा देना हिम्मत का काम जरूर है, मगर समझदारी का नहीं। वक्त और मौका तय किए बगैर अपनी जान गंवाना बेवकूफी है। हिन्दुस्तान के स्वाधीनता संग्राम के सौ साल के इतिहास में शायद यही कमी रह गई। बाकी जहां तक आजादी का सवाल है, तो बतला दूं कि हिन्दुस्तान को सिर्फ आज़ादी की जरूरत नहीं है, और कहीं अगर ये हमें गलत तरीके से मिल गई तो मुझे कहने में हिचक नहीं कि आज से सत्तर साल बाद भी हालात ऐसे रहेंगे। गोरे चले जाएंगे, भूरे आ जाएंगे। कालाबाजारी का साम्राज्य होगा, घूसखोरी सर उठा के नाचेगी। अमीर और अमीर होते जाएंगे, गरीब और गरीब। और धर्म-जाति और जुबान के नाम पर इस मुल्क में तबाही का ऐसा नंगा नाच शुरू होगा, जिसको बुझाते-बुझाते आने वाली नस्लों और सरकारों की कमर टूट जाएगी।

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AUTHORRohit

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