कलेक्टर किस्सागोई- जब जय अक्षर लगता था भय अक्षर

Post by: Poonam Soni

झरोखा/पंकज पटेरिया। होशंगाबाद मां नर्मदा जी के चरणों में पत्रकारिता करते तकरीबन 40-45 बरस बीत गए। छोटे बड़े अखबार पत्र-पत्रिका चैनल तक काम के अवसर मिले। पत्रकारिता महाविद्यालय में प्राचार्य रहकर पत्रकारिता का अध्यन भी कराया। इसी दौर में भारत सरकार साक्षरता मिशन का महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट आया। उसके मुख पत्र ढाई आखर का संपादक बनने का शुभ अवसर मिला। अखबार की अवधारणा साक्षरता पर केंद्रित थी। मैटर भी वही रखना था जो निरअक्षरों को प्रेरित करें, सब कुछ नया नया करने के लिए चैलेंज भी था पर आत्मविश्वास और नर्मदा जी की कृपा पर अटल आस्था जाहिर है। लिखने पढऩे से जो ईश्वर कृपा से नाम मान प्रसिद्धि मिली थी उसी का पुरस्कार यह था। जिला साक्षरता समिति के अध्यक्ष मिशन लीडर थे युवा नौजवान ऊर्जावान आईएएस कलेक्टर अनिल श्रीवास्तव तथा समिति के सचिव थे प्रखर लेखक और जनसंपर्क अधिकारी सुभाष मिश्रा।

मेरे संपादक बनाए जाने पर कुछ लोगों के मंसूबे जरूर डूबे थे, लिहाजा पहले दिन से ही उन्होंने अवरोध डालना शुरू कर दिया था। हालाकि स्वतंत्र काम करते हुए मेरे काम से मुझे सराहना मिल रही थी, और संपादकीय से लेकर छोटी मोटी खबरें साहित्य की विभिन्न विधाओं को साक्षरता मुखी बनाकर कविता लेख कथा परिचर्चा विविध स्तंभ लिखना शुरू किया। कुछ दिनों बाद लोग भी लिखने लगे ढ़ाई आखर को तात्कालिक प्रदेश और भारत सरकार ने सराहा। तभी मुलाकात हुई आईएस साहब बहादुर अनिल श्रीवास्तव जी से तेज तर्रार वक्त के पाबंद और कर्मठ कलेक्टर ने कहीं से प्रेरित अनुप्रेरित होकर साक्षरता को अधिक प्रचारित करने के नमस्कार अथवा फोन पर हेलो के लिए नया विश करने का नाम दिया। जय अक्षर सुबह शाम या रात अथवा फोन पर सभी को जय अक्षर बोलना अनिवार्य था।

जय अक्षर पूरी कलेक्ट्रेट और जिले भर के साक्षरता कर्मियों के दिलो-दिमाग में ऐसा चस्पा हो गया था की आपस में मिलने जुलने पर जय अक्षर ही कहा जाता था। यह अलग बात है की यह पांच अक्षर लोगों के दिलों दिमाग पर इस तरह हावी रहते कि वे सोते जागते अपनी पत्नी, बच्चों से भी जय अक्षर बोलते थे। यहां तक कि मैं भी इसमें निमग्न रहता था। सुनने बोलने का आदी हो गया था। साक्षरता अभियान ने यकीनन छोटे बड़े सभी कर्मियों की वजह से जिले में बेहतरीन आयाम स्थापित किए थे। मजे की बात यह हैं कि दफ्तर में यह भी जुमला खनकने लगा था की साहब बहादुर से जय अक्षर का प्रत्युत्तर जब जय अक्षर मिलता है तो उसकी रिदम भय अक्षर जैसी गूंजती थी और लगता जैसे भय अक्षर सिर पर पढ़ा हूं। कलेक्टर साहब वक्त के पाबंद थे सख्त मिजाज थे।

लिहाजा उनका प्रशासकीय तेवर अपने ढंग का था, जो कभी-कभी ऐसा धोनी अर्थ देता था। बहरहाल अपने कार्यकाल में रहते हुए उन्होंने किसी का बुरा नहीं किया। खूब दौड़ भाग करते थे। उन्होंने जिले की मीटिंग भी कभी आधी रात में ली। यह जरूर है जैसा जगजाहिर है की बेहतर काम करने वाले लोगों की राह में बदस्तूर बिला नागा कांटे बिछाने वाले सब जगह होते हैं। इसलिए गुलाब भी कांटों से घिरे होते हैं। मिश्रा जी की तात्कालिक मुख्यमंत्री से शिकायत की गई कि वह अपने विभाग जनसंपर्क को ज्यादा वक्त नहीं देते साक्षरता में लगे रहते हैं। जबकि सच्चाई यह थी कि वह दोनों जगह मुस्तैदी से काम करते थे। खैर तात्कालिक अपर संचालक जांच करने आए एक वर्ग ने उन्हें बरगलाया दूसरे ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया वे अपनी रिपोर्ट बना राजधानी चले गए और जो कुछ भी उन्होंने वहां कहा सुना फलस्वरूप मिश्रा जी का जगदलपुर तबादला हो गया। इसके विरोध में जिला में संस्कृत कर्मियों, नाटक कर्मियों, पत्रकारों ने आंदोलन भी किया कुछ पत्रकार भोपाल जाकर सीएम से मिले भी इसके बस में मिश्रा जी का तबादला जगदलपुर बदलकर रायपुर कर दिया।

वहां उन्होंने खूब काम किया प्रमोशन लिए और अंत में संभवत गवर्नमेंट कमिश्नर बनकर, सेवानिवृत्त हुए और आज वे एक स्वयं का बढिय़ा अखबार चला रहे हैं। उनके जाते ही माहौल बदलने लगा कुछ लोग तेजी से अपने मिजाज के मुताबिक रोड़े बरसाने लगे, हालात गड़बड़ाने लगे। बहराल ढाई आखर में मैं और भी मेहनत से काम करता रहा। नतीजतन वह खासा लोकप्रिय बन गया। साहब बहादुर जब तुम मुझे याद करते मैं हाजिर होता संवाद होता, मैं अपने ढंग से विनम्रता से उत्तर देता। उसी दौरान कुछ स्थितियां बेहद प्रतिकूल बनने लगे जो मेरी ईमानदारी के आड़े आ रही थी और मेरे जमीर को कुबूल नहीं थे।

मुझे काम करने में दिक्कत थी इसके पहले कि यह बड़े और मेरी खुद्दारी पर आच आए, कबीर दास जी जिन की साखियां मैं ढाई आखर के हर पेज पर देता था उसी की तर्ज पर जस की तस, रख दीनी चदरिया साहब बहादुर को अपना इस्तीफा भेज दिया, कलेक्टर साहब को जैसे ही पता लगा उन्होंने तत्काल मुझे रात 8:00 बजे बंगले पर तलब किया। मेरे साथ दो साहित्यकार डॉक्टर आर पी सीठा, कीर्ति शेष सजीवन मयंक को भी बुलाया गया था। करीब 10:00 बजे साहब बहादुर से मुलाकात हुई। उन्होंने फरमाया आप मेरे दोस्त हो कि दुश्मन मैंने कहा सर ऐसा कोई रिश्ता हमारे बीच कभी नहीं हुआ मैं एक पत्रकार साहित्यकार हूं और कलेक्ट्रेट में साक्षरता मिशन के ढाई आखर पत्र के संपादक के रूप में काम करता था। अपरिहार्य कारण से मैंने इस्तीफा दे दिया।

उन्होंने हर अंदाज़ से मुझे इस्तीफा लेने के लिए मुझे कहा पर अब मैं निर्णय नहीं बदल सकता था। बाद में दो तथाकथित साहित्यकार भी मेरे घर आए और उन्होंने मुझे काम पर लौटने का कहां पर मैं वापस नहीं गया। दो लोग अंक निकालने के लिए बुलाए गए पर वे काम नहीं कर पाए और ढाई आखर बंद हो गया। कलेक्टर साहब का भी ट्रांसफर हो गया स्थानीय युवा पत्रकार संघ ने उनका विदाई और नवागत कलेक्टर के स्वागत का कार्यक्रम आयोजित किया।

मुझे मुख्य वक्ता के रूप में बुलाया गया साहब बहादुर से यह आखिरी मुलाकात थी। मुझे बोलना था बिंदास मैं बोला साहब के अधीनस्थ मैंने अपने ढंग और ईमानदारी मेहनत से काम किया। जो मिला खट्टा मीठा वह मेरे तजुर्बे की पूंजी है, साहब की उठती गिरती नजरों से बनने वाली इमारत को करीब से पढऩे समझने का अवसर मिला। अपने संबोधन में कलेक्टर बोले जैसा था, जैसा हूं, वैसा हूं अपने भाषण में मैंने कहा था कि कलेक्टर किस्सागोई नाम से मैं एक किताब भविष्य में तैयार करूंगा, जिसमें एक संस्मरण आप पर भी होगा। बहराल उसी को कोर्ट करते हुए श्रीवास्तव जी बोले आप तो एक किताब लिख डालिए मैंने कहा हुजूर इजाजत दे! भगवान की कृपा से किताब भी लिख दूंगा। कार्यक्रम समाप्त हुआ, वे रुखसत हुए लेकिन उनकी याद अभी भी लोगों की गुफ्तगू में खनकती तो है। नर्मदे हर

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पंकज पटेरिया
संपादक शब्द ध्वज, ज्योतिष
सलाहकार,989390300,9407505691

 

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