झरोखा : हंगामा क्यों बरपा… डाका तो नहीं डाला

पंकज पटेरिया :
मशहूर शायर गुलाम अली साहब की गजल का यह खास शेर आज के सियासी माहौल पर बहुत मौजू बैठता है। दरअसल मौजूदा सरकार के काम पर सूबे के 1 जिले के साहब बहादुर ने एक उद्गार क्या व्यक्त कर दिया, प्रदेश भर की राजनीति में साटर्मऑफ कप की यानी प्याले में तूफान की स्थिति बन गई। लोगों ने अपने अपने जर्जर तरकशो से जंग लगे तीर निकालकर निशाना लगाना शुरू कर दिया। अरे भाई, यह तो गजब हो गया किसी का आभामंडल यदि विस्तार पा रहा है तो आपको क्यों तकलीफ।
लाजमी है सत्ता जिसकी पत्ता उसका. उसमें क्या ऐतराज़ ! बल्कि यह नैसर्गिक निष्ठा है। निजी तौर पर भी भक्ति भाव हो सकता है। लेकिन इसे लेकर धमकी के जुमलेबाजी को बाजिव नही कहा जा सकता।आचार संहिता का यदि कहीं उल्लंघन हो रहा हो अथवा कोई कदाचरण की बात हो तो काबिल एतराज है। बहराल चुनावी माहौल में यह कवायत चलती रहती है। वरना चुनावी शिराओं में गर्माहट कैसे बहेगी। अपनी अपनी सीमाओं में रहकर तर्क के साथ तर्कशक्ति से तीरनिकाले जाएं और निशाने साधे जाए तो लोकतंत्र की गरिमा भी बढ़ेगी।
कहा जाता है कि काम बोलता है और वही मान दिलाता है, जनमानस में प्रतिष्ठा भी। इसी से लोकप्रियता का मापदंड तय होता है और यश कीर्ति के ध्वज चतुर्दिक फहराते ध्यान आकर्षित करते हैं।
यह सदा याद रखना चाहिए किसी की चार दिन की जिंदगी सौ काम करती है, किसी के सौ बरस की जिंदगी से कुछ नहीं होता। आदरणीय अटलजी को प्रणाम करते उनकी पंक्ति यहां उल्लेखनीय है छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता इति शुभम। सबसे ऊपर देश है और देश हित में हम आपसी राग द्वेष से ऊपर उठकर कार्य करें तो यह बहुत ही श्रेष्ठ कर्तव्य होगा इनका, उनका भी और सामान नागरिक का भी।

नर्मदे हर।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार
साहित्यकार
9340244352, 9407505651

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