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झरोखा : गोष्ठी आमंत्रण…

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: पंकज पटेरिया –
मौसमी ग्रीष्म गोष्ठी का आमंत्रण पत्र पाकर मन बाग बाग हो गया। शिराओ में इन तपते दिनों में मानो मालवे की शीतल बयार बहने लगी। पढ़कर आनंद के सागर में अपने राम दो पुरुष उछल कूद कर गोता लगाने लगे। लिफाफे पर बहुत अच्छे से अपना नाम पता लिखा था। उसके नीचे लिखा था… सुप्रसिद्ध…यानी डेस डेस। अब अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना ही कहा जायेगा। लिहाजा तो अपन वह छोटापन दिखा ही नहीं रहे यह बता कर कि अपने नाम के नीचे सुप्रसिद्ध के बाद क्या लिखा। क्यों लोगों को कुछ कहने सुनने का मौका दो।
अब जो प्रतिभा अपन को मालिक ने दी है उसको क्या बखान करना। इसलिए उसका जिक्र ही में नहीं कर रहा। आमंत्रण पत्र मेंअध्यक्ष महोदय के पद के नीचे कृत अध्यक्ष, उन्ही भैया जी ने हस्ताक्षर किए थे। जो अध्यक्ष जी के यूं समझो एकदम राइट हैंड सूत्रधार कर्ता-धर्ता। हमने सोचा तुरंत फोन करके भैया जी को धन्यवाद तो देना चाहिए। लिहाजा मोबाइल लगाया भैया जी जय श्री कृष्ण करके धन्यवाद दिया और कहा आप कितना ध्यान रखते हैं। उन्होंने तुरंत लहजा बदल फरमाया और बोले ( मेरी आंखो में उसी पल गंभीर मुद्रा, आधी बंद आधी खुली, आखों बाली और दायां हाथ माथे से पूरे सिर पर पीछे घुमाने वाली छवि कौंध गई) आप अपने है, क्यों नहीं ध्यान रखेंगे। भाई आप साहित्य की सेवा कर रहे। गोष्ठी में आपको आना ही बनता है।
बहुत गर्मी चल रही है। अपना टाइम टेबल कभी बदलता नहीं। चाहे आसमान से आग बरसे या बादल फटे। साहित्य सेवा सर्वोपरि। लो अभी कल नहीं परसो की ही बात है, कूलर की मोटर पंप आदि दिखवाए। पुराना हो गया चल नहीं रहा था जैसे तैसे जुगाड़ कर अपने ऑफिस के पियुन है न वो जिसे हम लोग प्यार से मामू बुलाते, वो जुगाड़ बाजी में एक्सपर्ट नंबर वन है। उसने कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा की तर्ज पर हाल फिलहाल साउंड जरूर ज्यादा बढ़ गया, पर कूलर चला दिया।
उसने कहा भैया जी ज्यादा साथ नही देगा। कोई बता रहा था, उधर आपके शहर में तो असेंबल होने लगे है। अब कौन से आप बताओ बोलने जाओ। महंगाई भी तो देखो मैंने कहा हां भाई साहब यह तो है।
गर्मी भी नाक में दम करे दे रही है। क्या करो ? वेदर प्रूफ बनना पड़ता है। समाज सेवा के लिए। अब संडे को ही फुरसत हुई थोड़ी तो श्रीमतीजी ने ए.के. फोर्टीसेवन तान दी। … साहित्यकारो की खिदमत में लगे रहोगे। कभी, छोरा छोरी को पढा भी दिया करो। मैडम ने प्रमुख शहरों की प्रसिद्धि लिख कर लाने का कहा है लिखवा दो जरा। मैंने सोचा चलो छोरा छोरी को शहरो की प्रसिद्धि के बारे में लिखवा ही दूं। समझ गए न आप, जैसे कोसा के लिए चंपा छत्तीसगढ़, चंदेरी साड़ी के लिए, तो नमकीन के लिए। इतने में ही श्रीमती के स्वर में कोयल की कुहूकुहू मिठास उतर आई, चिहुक कर बोली, सौ फीसदी जग प्रसिद्धि इंदौर की वहां के सेव की वजह से है। उसके जायके की तो बात ही निराली है आदि आदि। हां यह तो है मैंने भी समर्थन किया। आपके क्षेत्र के सेव की तो दुनिया भर में शोहरत है। बहरहाल छोरा छोरी भी खुश हो गए। उनके चेहरों से श्रीमती जी के चेहरे पर मुंह में आए, पानी की तरल रंगत उतर आई। अपना सिक्का भी फैमली में खनक के साथ उछल गया। अपना भी (जी.के.) में दम है। फिर भी इतना बिजी रहते हुए सारे इंतजाम कर लिये। आप सब के सहयोग से भोजन पानी का प्रबंध भी किया गया। रूखा सूखा जो भी हो पाया।
अब आपके मालवे की बात ओर है। क्या गजब टेस्ट है और कहीं का टिक्की नहीं पाता। इंटरनेशनल डिमांड है, दाल बाफले की। ऐसे ही वो वहां का मस्त मस्त लजीज श्रीखंड क्या कहने उसके, और वह क्या बोलते उसे भूल रहा हूं क्या बोलते? मैंने भी नहीं याद की मुद्रा में सिर हिलाया। तो उनके स्वर मे भी झुंझलाहट उतर आई ।
मैने थोड़े नर्मी से कहा भइया जी वह भी महंगा हो गया। तुरंत मेरी लाइन को पटकनी देते बोले क्यों नहीं हो? आखिर भाई स्टैंडर्ड की बात है। अच्छी चीज का सम्मान करना चाहिए खाते पीते रहना चाहिए ।
तभी तो ऐसी चीज बाजार में बची रहेगी, नहीं तो हर चीज का नकली प्रोडक्ट इतना आ गया है। अगर अपन लोग ही उसके दाम वाम पर नाक भौं सिकोड लेंगे, तो फिर उसकी इज्जत आबरू कौन बचाएगा? लिहाजा इस पर रोने डीपने का कोई मतलब ही नहीं।
असली को बचाना है तो लेना पड़ेगा खाना खिलाना पड़ेगा। खैर अरे याद आ गया जो भूल रहा था, आलू चिप्स है वो। अब तो सरकार ने वहां पर बहुत बड़ी फैक्ट्री डाल रखी है। चलो बंधु तारीख आप याद रखना आना जरूर। रखता हूं बहुत सारा काम है। आप लोगो के चेक भी तैयार कर साइन के लिये पुटअप करना है। अपुन बहुत ईमानदारी से सब काम करते और कोई टालमटोली या यह कुछ लेने देने की मंशा भी अपनी नहीं रहती।
प्रोग्राम के बाद चलो मेरे कमरे में रजिस्टर में दस्तखत करो। चेक झेलो बस ,जय श्री कृष्णा। यह कहकर उन्होंने फोन काट दिया। अपने राम के सामने विकट समस्या खड़ी हो गई। गहरी सोच मे पड़ने से बचे खुचे सिर के बाल खड़े होने लगे। मुझे यह बहुत पुराना गाना वहां पुरानी छावनी के पास की एक टॉकीज में देखा याद आ गया इशारे इशारे में दिल लेने वाले बता ये हुनर तूने सीखा कहां है।
अरे साहब बड़ा फलसफा है ईशारों का । क्या पता भैया जी ने भी कोई इशारा हल्के से इसी बातचीत में सरका दिया हो ! खैर देखा जायेगा। फिलहाल जाने की सेटिंग जमाई जाए। बासुदा साहब की दुकान से किराना विराना घर में भर चले। पत्नी को भी एडजस्ट किया जाए। सोचता हूं ऑफिस का कोई हेड ऑफिस वाला काम निकल आए और बड़े बाबू अपन को दे दे, काम पक्के में जम जायेगा। पर उसके लिए भी बड़े बाबू को भी जमाना होगा। देखते है कुछ न कुछ तो रास्ता निकलेगा। कोशिश करने वालो की हार नही होती है। अभी घर पर सब को शाम को न्यू मार्किट घुमाने का पहले प्रोग्राम बनाते है। फिकर नॉट कोई न कोई रास्ता निकलेगा।

नर्मदे हर

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9893903003
9340244352

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