झरोखा : विभिन्न यात्राओं के विभिन्न निहितार्थ

*पंकज पटेरिया :
यात्राएं विभिन्न प्रकार की होती है और इनके निहितार्थ भी विभिन्न होते है। भारत देश मे यात्राओं का पुराना इतिहास है। यू आदिकाल में भी किसी एक उद्देश्य को लेकर यात्राएं होती रही। हमारे पास इनकी सफलता असफलता का कोई पैमाना नही।
लेकिन वरिष्ठ कवि मित्र डॉक्टर विनोद निगम के काव्य संकलन जारी है लेकिन यात्राएं का यहां जिक्र करते हुए क्षमा सहित इस संदर्भ में यही कहना मौजू होगा कि जारी है यात्राएं अब भी कल भी थी और कल भी रहेंगी। आदि गुरु शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए यात्रा का शंखनाद किया था।

स्वामी विवेकानंद ने धर्म अध्यात्म के मूल्यों की पूर्ण स्थापना के लिए एकला चल यात्रा की थी। नर्मदा अंचल के सुविख्यात संत शिरोमणि बाबा कमल भारती फिर गौरी शंकर महाराज जी ने भी बड़ी जमात के साथ यात्राएं की, वह परंपरा आज भी जल जंगल जमीन को लेकर भी जारी है।

राजनीति में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने ऐतिहासिक यात्राएं की उनकी यात्रा के उद्देश साफ थे। फिरंगी हुकूमत से देश को आजाद कराने के लिए राष्ट्रभक्तों ने तन को दिया बनाया और प्राण की बाती बाल कठिन संघर्ष किया इस त्याग तपस्या बलिदान की बातें स्वर्ण अक्षरों में समय पट पर अंकित है।

होश संभालते और फिर पत्रकारिता करते हुए मैंने भी कई यात्राओं को खुली आंखों से देखा जिया है। इन सब का जिक्र यहां मुमकिन नहीं। अभी तो चर्चा यही है कि यात्राओं के उद्देश सचमुच सर्व हित होते हैं, राष्ट्रहित होते हैं, पीड़ित शोषित लोगों की बेहतरी के लिए होते हैं अथवा इनका मकसद कुछ और होता है।

यह सवाल थोड़ा भी कोई संवेदनशील होगा तो उसे जरूर परेशान करेगा। यात्राएं कोई करे, लेकिन जब तक है निहितार्थ स्पष्ट पवित्र और लोक कल्याणकारी नहीं होंगे और उनमें राष्ट्रहित नहीं होगा। तो वह केवल जारी हैं लेकिन यात्राएं ही रहेगी। हम उन्हें पूर्व उल्लेखित संत विभूतियों साहित्य मनीषी अज्ञेय जी यह बाबा नागाअर्जुन अथवा गुरुजी की तरह भोर होते स्मरण नहीं कर पाएंगे। नर्मदे हर

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया
पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
भोपाल
9340244352 ,9407505651

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