: पंकज पटेरिया –
लोकतंत्र के महापर्व विधान सभा चुनाव संपन्न हुआ। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक बार अपने क्षेत्र बुधनी में मतदाताओ से मिल आए। यह बोल कर कि अब आपको देखना है। मुझे पूरे सूबे में जो मेरा परिवार है, जाना है, जहां मेरी आत्मा बसती है। और उसके साथ उन्होंने अपने आप को प्रदेश के दौरे में झोंक दिया। 1 दिन में 18 ,18 आम सभाएं करते देर रात घर लौटते, वे थकते नहीं। सुबह फिर तारो ताजा दिखते,और अगले पड़ाव के लिए निकल जाते।
पिछले दिनों एक वरिष्ठ पत्रकार और एक पत्र के संपादक से मिलने पहुंचे, पूछ लिया आप आधी आधी रात तक चुनावी दौरे से लौटते हैं, सुबह फिर तरोताजा दिखते एक भी लकीर थकान की नहीं। शिवराज जी का उत्तर था, प्यार दुलार और अपनेपन से मिलने वाले परिवार से मिलकर भी खुशी मिलती है। उसका आनंद ही अलग होता है।
दूसरी और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ जी धाय धाय दौरा कर रहे हैं दोनो और से जीत की दावे दारी है। राजनीतिक गोलाबारी भी एक दूसरे पर जारी रही। दृश्यम और अद्रश्यम के बीच से गुजरते हुए जो बचपन में बने तीन कांच की टेलिस्कोप दूरबीन देखते हुए में रंग बिरंगी चूड़ियों से जो मोहक रंग का जादू सामने छिटकता वैसा ही रंगो का तिलिस्म बनता मिटता बिखरता है। चुनाव की इस बेला में गली मोहल्लों के मुंह के छाले ठीक हो जाते। रोम रोम खिल जाते। बतरस बरसने लगता।
एक साहब हाथी नीचे से निकल गए, इस मान्यता के चलते की उनकी मुराद पूरी हो जाये, वह यह कि पत्नी जी चुनाव मे जीत का मुकुट पहन ले। अब और भी दुविधा की स्थिति मतदाता की हो जाती, जब एक परिवार से दो प्रत्याशी मत आकांक्षा से वार्ड में अपने तामझाम, लाव लश्कर के साथ जलवा बिखरते है। अब दुविधा यह कि वो किसे सलाम करे, किसे जुहार करे। वह सोचता भैया दोनो से राधे राधे कर लो हाथ जोड़ बाकी सब ठीक है। लेकिन सोचने की बात है कि अब बहुत परिपक्व हो गया चुतुर मतदाता के मन को समझ पाना मुश्किल हो गया। कुछ इस तरह कह सकते है जैसे सबकी सुन मन की गुण।
कुछ अजीबो गरीब भी घटित होता रहा। एक जगह एक प्रत्याशी घोड़े पर सवार होकर मतदाताओ से हाथ जोड़ कर मत की प्रार्थना करते दृष्टि गोचर हुए। इधर साहब बहादुरों को माननीय ब्रेक फास्ट या डिनर पर बुलाते रहे, साहब को मुश्किल होती रहे अपने तरीके से वे पार भी होते रहे। जाए तो मुश्किल न जाए तो मुश्किल। बहरहाल इस कुआ खाई के बीच से अपने कौशल से वे निकलते रहे।
बताते एक बार एक तेज तराट नेत्री की खिचड़ी पार्टी के वक्त भी ऐसी ही स्थिति बन गई थी। अंततः वह खिचड़ी नहीं पक पाई थी। चर्चा के छुटपुट पटाखे भी फूटते है, तो आवाज जाती तो है दूर तक। बताते हैं झंडा बैनर पोस्टर गमछे टोपी की खरीदी पर भी सोशलमीडिया ने जबरदस्त असर डाला है। प्रचार प्रसार की जगमग दीपावली इसी सोशल माध्यम पर ज्यादा छाई रही। टोपी गमछे, पोस्टर की खरीदी पर भी कम ज्यादा असर तो डला है। तरह तरह के दावे है।
आगे क्या होता है वह भविष्य बतायागा। लेकिन मौसम सर्द गर्म है। इसमें दो राय नहीं आज भारत की स्थिति का ध्वज विश्व मंच पर फहरा रहा है। प्रेम, त्याग, परोपकार ऐसे भारतीय गुण है जो हमारा आभूषण हैं। हमारी संस्कृति सर्वे भवंतु सुखिन सर्वे संतु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्वित दुख भाग भवेत् है और हम सदा यही प्रार्थना करते है। बहरहाल एक शेर यहां कहना मौज लगता है , एक चेहरे के पसे, कई चेहरे हैं आज इंसान की तस्वीर बनाना मुश्किल है।
जय भारत। इंतजार करिए ।
नर्मदे हर

पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
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