झरोखा : मैं और तुम गर हम हो जाते…

झरोखा : मैं और तुम गर हम हो जाते…

पंकज पटेरिया :
मैं और तुम गर हम हो जाते, दर्द दिलों के कम हो जाते, कितने हंसी आलम हो जाते।आदि जाने क्या क्या ? कमाल का है यह बहुत मीठा और उतनी ही मीठी टीस लिए यह लोकप्रिय फिल्मी गाना। गजब का फलसफा हमारे सामने खोलता है। शुरू की दो पंक्ति में ही गीत की जाने अनजाने हो गई गुस्ताखी पर प्यार भरी थपकी देते बहुत सारी वे बातें उजागर हो जाती हैं, जो ना होती तो कितने हंसी प्यार भरे मस्ती भरे आलम हो जाते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मैं और तुम यानी वह और वो एक नहीं हुए अलग-अलग दिशा में हांकते रहे अपनी घोड़ा गाड़ी। नतीजतन यह हुआ जो एक माननीय ने दो पूर्व माननीयो की अलग-अलग कार्यशैली की चर्चा करते हुए एक प्रेस बयान में कही।
उनका मानना है कि बड़े वाले माननीय, इन दो माननीय को गले मिलवा गए, लेकिन पोस्टर में और कोई भी नहीं दिख रहा केवल अकेले उन माननीय के। तो यह तो यह हम कहां वह तो मैं हो गया ना। इसलिए वह करते हैं मैं की राजनीति और भाजपा करती है हम की राजनीति। सबका साथ सबका विकास। जाहिर है माननीय की बोल बयानी से सूबे की नई हलचल पैदा होने की चर्चा गली मोड़ चौराहा पर चल पड़ी है।

पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार
साहित्यकार
9340244352 ,9407505651

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