तेज रोशनी, शोर शराबा, डीजे का कर्णभेदी विस्फोटक हो हल्ला, सस्ते फूहड़ गानों पर उछलते कूदते, लोटते लड़के लड़कियां, न्योछावर में लुटाते सैकड़ों रुपए, हर्ष फायर करते नव धनिक बिगड़े आज के सितारे और इस सब धमा चौकड़ी फिजूल के प्रदर्शन से व्यर्थ में महंगी होती जा रही हंै आजकल की शादियां। और इस पर तमगा यह कि तीन सितारा होटल, राजा महाराजाओं के महल या महंगे मैरिज गार्डन में केवल फोकट की रहीसी दिखाना।
फखत शो बाजी के लिए शादी विवाह का आयोजन दिखावा और फिजूलखर्ची ही है। उसके स्थान पर सादगी और पारंपरिक रूप से जामुन आम के पत्तों से, साज सज्जा कर वंदनवार लगा, चौक मांडवी, रंगोली से सजावट कर ज्यादा भव्य तरीके से शादी विवाह संपन्न किए जा सकते हैं। और बची धन राशि से वर वधु के हित में कुछ और किया जा सकता है। बल्कि गरीब निर्धन परिवार के बच्चों की पढ़ाई लिखाई अथवा गरीब कन्याओं के शादी विवाह करवाए जा सकते हैं। जो एक पुण्य दायक सराहनीय कार्य होगा।
लिहाजा शादियों में बढ़ते खर्च अपनी बुद्धिमता विवेक और आपसी समझदारी से एक हद तक कम किए जा सकते हैं। दोनों पक्ष सौहाद्र्र से रजिस्ट्रार के यहां शादी रजिस्टर करवा लें। फिर अपनी-अपनी धार्मिक परंपरानुसार परिचितों के साथ प्रेम सद्भाव के साथ स्नेह भोज अपने सामथ्र्य के अनुसार आयोजित कर इष्ट देव का आशीर्वाद लेकर कार्यक्रम संपन्न कर फालतू खर्च से बचा जा सकता है। अनावश्यक आतिशबाजी, शोर-शराबे, ढोल धमाके, शोर शराबा, डीजे आदि के प्रदर्शन से बड़े खर्चे से बचा जा सकता है। विवाह एक मंगलकार्य है, इसे मांगलिक वातावरण में ही संपन्न करना चाहिए और उस वैदिक शास्त्र सम्मत परंपरा विरासत का सम्मान करना होगा, जो हमें पूर्वजों से मिली है।
नर्मदे हर
पंकज पटेरिया
लेखक
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
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