झरोखा : प्रो सुरेश मिश्र एक पुण्य स्मरण… 

Post by: Manju Thakur

*पंकज पटेरिया –
कीर्ति शेष सुप्रसिद्ध इतिहासकार और लेखक डा. सुरेश मिश्र को तो करीब साल भर पहले कोरोना ने हमसे छीन लिया। लिखना, पढ़ना उनके रोजाना की पूजा-पाठ प्रार्थना थी। यहां तक कि जब वे कोरोनाग्रस्त होकर जीवन मृत्यु के बीच अस्पताल में संघर्षरत थे तो भी कितनी जिजीविषा उनमें थी उन्होंने अपने एक मित्र से कहा था बहुत काम करना है। जल्दी ठीक होकर उसमें जुटना है। प्रोफेसर सुरेश मिश्र की स्मृति में भोपाल में सुरेश मिश्रा फाउंडेशन की स्थापना उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। प्रो. मिश्रा का होशंगाबाद नर्मदापुरम से आत्मीय रिश्ता रहा है। वे यहां शासकीय नर्मदामहाविद्यालय में इतिहास विभाग में अध्यक्ष थे उनकी धर्मपत्नी सौभाग्यवती शीला भाभी भी शासकीय गृह विज्ञान महाविद्यालय में अतिथि व्याख्याता थी। बहुत प्रतिभावान उनकी तीन बेटियां भी कुलदीपका रूप में प्रतिष्ठित हुई।
मिश्र जी और शीला भाभी दोनों बहुत सफल नाट्यकर्मी भी थे। नर्मदापुरम में रहते हुए उन्होंने यहां के सांस्कृतिक आकाश में बेहद मोहक, सुंदर इंद्रधनुष अंकित किए थे। सिंधी समाज के अपने छात्र युवकों को उन्होंने प्रेरित कर अखिल भारतीय साधु वासवानी व्याख्यानमाला का शुभारंभ किया था जिसमें व्याख्यान देने के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान, लेखक, पत्रकार, राजनेता को आमंत्रित किया जाता था।
वे पत्रकारिता करते थे। मुझे याद है नामी गिरामी व्यक्तियों ने पुण्य सलिला नर्मदा जी के पावन सेठानी घाट पर आयोजित व्याख्यानमाला में अपने व्याख्यान से शहर के प्रबुद्ध जनों को अभिभूत किया था। जिनमें तारकेश्वरी सिंहा, पासवान जी कविवर शिवमंगल सिंह सुमन, भवानी प्रसाद मिश्रा, महादेवी जी वर्मा बालकवि बैरागी सहित कई विधिवेत्ता, न्यायमूर्ति सहित विभिन्न क्षेत्रों की विभूतियों को नर्मदापुरम जैसे छोटे नगर में आमंत्रित कर संस्कृति आकाश में सुरेश मिश्र ने नगर में अपनी सबसे अलग सुनहरी पहचान कायम की थी।
इटारसी के साहित्यकार विनोद कुशवाह सहित अनेक छात्र छात्राएं आज भी भरे गले और नव नयन उन्हें याद करते हैं। बहुत निर्भीक व्यक्ति थे। अजनबी शहर में भी वे अनीति और अत्याचार के खिलाफ साहस से खड़े होकर सीधे बात करने का और विरोध करने का माद्दा रखते थे। मुझे स्मरण है एक ऐसे ही प्रकरण में जब एक सौम्य दंपत्ति को जब एक एक रोबदार परिवार अकारण दादागिरी दिखाने लगा था तो उन्होंने सीना तान कर उसके तेवर शिथिल कर दिए थे और खुद जाकर पुलिस अधीक्षक से शिकायत करी थी। मेरे उनसे आत्मीय संबंधथे। नर्मदापुरम में रहते हुए उन्होंने वन्य क्षेत्र पुरातत्व क्षेत्र में शोध पूर्ण लेखन किया। अपने समकालीन अनेक व्याख्याता बतौर उदाहरण डॉक्टर लोकेश अग्रवाल छात्र छात्राओं को लेखन के प्रति प्रेरित कर लिखने की सलाह दी। और एक नव लेखकों की खासी जमात तैयार की थी उनके लेख आदि में सुधार कर वे स्वयं उस जमाने के प्रतिष्ठित समाचार पत्र नई दुनिया में अनुशंसा कर प्रकाशन के लिए भेजते थे।
छोटे बड़े सब के मन में उनके प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान था। वे समान आत्मीयता से सबको स्नेह आदर देते थे। मेरी अंतिम मुलाकात उनसे मानस मर्मज्ञ प्रोफेसर पुरुषोत्तम दीक्षित के निधन के वक्त उनकी अंत्येष्टि में हुई थी। वे खंडवा से उनके अंतिम दर्शन करने और श्रद्धा सुमन अर्पित करने आए थे। मुझसे उसने कहा था जब कहीं आपके लिखे फीचर आदि पढ़ने को मिलते हैं तो मुझे गद्य पद्य दोनों का आनंद आ जाता है।अद्भुत गद्य में पद्य और पद्य में गद्य खोलने की अद्भुत कला नर्मदा जी ने आपको दी है खूब लिखिए। उनकी स्मृति को प्रणाम। उनकी कही अंतिम आशीष पंक्ति मुझे सदा ऊर्जा देती है प्रेरणा देती है। नर्मदे हर

pankaj pateriya
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9893903003
9340244352
(नोट: झरोखा की इस सीरीज की किसी कड़ी का बगैर संपादक अथवा लेखक की इजाजत के बिना कोई भी उपयोग करना कानूनन दंडनीय है। सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।)

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