– पंकज पटेरिया :
नर्मदापुरम। नगर में एक बेहद ख्यातनाम डॉक्टर, उन्होंने बीएचयू से चिकित्सक की डिग्री ली थी। खासी प्रैक्टिस रही उनकी। उस जमाने में जिले सहित आस-पड़ोस के कई जिलों से मरीज दिखाने उनके पास आते थे। परिवहन की कमी थी, लिहाजा गांव देहात से लोग बैल गाड़ियों से आते थे। भीड़ का आलम यह था कि उनके निजी दवाखाने के सामने की जगह नहीं रहती तो गांव वाले अपनी बैलगाड़ी घर के पीछे के मैदान अथवा निकटवर्ती स्कूल यह दादाजी धूनी धाम खड़ी करके आते थे। बड़ा नाम और सफा था वे एलोपैथी केअलावा होम्योपैथ और आयुर्वेद के भी ज्ञाता थे। पढ़ना, संगीत सुनना, योगा, अध्यात्म आदि उनकी रुचि थी। वे एक ख्याति नाम सिद्ध संत के शिष्य थे। डॉक्टर साहब इत्र के बहुत शौकीन थे। चंपा, गुलाब, मोगरा, फिरदोस की महीन पहचान थी। कान में लगा इत्रफूहा सदा महकता रहता था।
मेरे लिखने,पढ़ने, कविता आदि को पसंद करते थे और मुझे क्लीनिक पर बुलाते रहते थे। मैं भी पत्रकारिता की भागदौड़ से थोड़ी बहुत फुर्सत मिलने पर उनकी सुविधा को देखकर क्लीनिक में बैठ जाया करता था।
घटना एक दिन 10, 11 बजे की है, डॉक्टर साहब के क्लीनिक पर बैठा था। गपशप चल रही थी, तभी बैलगाड़ी से एक कराहती महिला और एक सज्जन जो ग्रामीण प्रतीत हो रहे है, उतर कर आयें। उन्हें देखकर डॉक्टर साहब ने कहा परसों ही तो आये थे। अरे भाई, तुम तो 15 दिन की दवाई लेकर गए थे। उसने उत्तर देकर कहा साहब, इसका पेट का दर्द नहीं जा रहा है। कई रातें हो गई जगते। डॉक्टर ने कहा आओ बैठो। डॉक्टर कुछ सोचते हुए महिला के निकट पहुंचे और पूछा क्यों भाई क्या बात है आराम नहीं। महिला के हावभाव बदलने लगे, आंखें लाल हो गई, घुंघट में छिपा चेहरा पल्ला हटा घूर के देखने लगी। डॉक्टर साहब कोई विशेष मंत्र आदि भी जानते थे। उन्होंने इशारे से मुझे बुलाया और कहा उससे बोलो क्यों भाई कहां से हो और इधर कैसे ? उसको क्यों परेशान कर रहे हो, बेचारी गांव की औरत है।
तत्काल मर्दाना आवाज में वह बोली हम तो आराम से अपने ठिया पर थे। इसी ने आकर वहां निस्तार कर दिया हमें गुस्सा आ गई। हमने इस पर बैठकी कर दी। डॉक्टर साहब ने कहा अच्छा माफी दो। तुम्हें क्या चाहिए बताओ। हम तुम्हें इससे दिलवा देंगे उसे छोड़ दो। फिर कभी यह तुम्हारे स्थान नहीं जाएगी। डॉ साहब से उसने अपने ठिकाने पर एक मुर्गा और शराब रखने का कहा। मैं भी सुनकर ऐसा हैरान रह गया।
डॉक्टर साहब के निर्देश पर सिवनी मालवा के किसी गांव से आए उस ग्रामीण ने उस (जनाब ) जो भी रहे हो के स्थान पर बताई चीजें रख दी हिदायत थी. मुड़कर ना देखें। इसके बाद महिला पूरी तरह स्वस्थ हो गई। दो-चार दिन बाद वही आदमी खुशी खुशी डॉक्टर साहब के दवा खाने पर हाथ जोड़ खड़ा था। साहब तुमने बड़ी कृपा करी (बा ) तो पूरी के चंगी हो गई। जैसे कुछ हुआ ही नहीं। हो जो भी हो, लेकिन कहीं ना कहीं कोई ना कोई तो होता है। नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया (Pankaj Pateriya)
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
9893903003
9340244352
(नोट: झरोखा की इस सीरीज की किसी कड़ी का बगैर संपादक अथवा लेखक की इजाजत के बिना कोई भी उपयोग करना कानूनन दंडनीय है। सर्वाधिकार सुरक्षित हैं।)