कहानी: दर्द

Post by: Poonam Soni

यह सही है कि महिलाओं का आधा हिस्सा हमेशा शोषित रहा है और वह व्यथा की असीम गहराई में रही हैं। दर्द होता है लेकिन ईश्वर ने महिलाओं को दर्द सहने की अद्भुत क्षमता दी है लेकिन पुरुष, पुरुष का क्या ऐसा लगता है कि प्रकृति ने उनको कठोर बनाया है लेकिन उनको दर्द सहने की क्षमता औरतों से कम दी है। यानी कि मर्द को भी दर्द होता है लेकिन उनको बचपन से सिखाया जाता है कि उनको अपना दर्द कहना नहीं है क्योंकि कहावत है कि मर्द को दर्द नहीं होता| पर क्या वाकई यह सच है नहीं क्योंकि मर्द का दर्द उसके ह्रदयाघात, मानसिक तनाव के द्वारा बाहर आता है|

देवेश की शादी को 7 साल होने को आए यद्यपि शादी उसके माता-पिता ने अपनी मर्जी से कराई थी लेकिन नलिनी उसे भी बहुत पसंद थी| चंचल- शोख़ सी पहली नजर में वह देवेश को भा गई थी और उसने दूर तक खुशहाल भविष्य की कल्पनाएं कर डाली थीं। उसे क्या पता था कि शादी का लड्डू जो खाए वो पछताए और जो न खाए सो पछताए तो उसके भाग्य में भी बस पछताना ही लिखा था|

बहू, तैयार हो जा, अभी कम से कम कुछ दिन तक तो अच्छे से नई- नवेली बहू की तरह तैयार होकर रहा कर। अरे रिश्तेदार हैं, घर में लोगों का भी आना जाना लगा हुआ रहता है यह अभी से क्या तूने साड़ी पहनना भी बंद कर दी है और ठीक से तैयार भी नहीं होती है।

जी मां मैं अभी साड़ी पहन कर तैयार हो जाती हूँ।
देवेश को पसंद था नलिनी का सज सँवर कर रहना, जैसे सब उसको तारीफ की नजरों से देखते थे वह भी खुद में गर्व महसूस करता कि उसको इतनी खूबसूरत जीवनसंगिनी मिली है लेकिन नलिनी को भारी साड़ी और जेवर से उलझन होती थी। कुछ ही दिन में वह इन सब चीजों से बहुत चिढ़ने लगी थी। किसी के सामने वह कुछ नहीं बोलती लेकिन अकेले में

-सुनो देव, बस करो अब रोज-रोज का नाटक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है|
तो तुम माँ से क्यों नहीं बोल देती हो कि तुम्हें अब हल्की साड़ियां या फिर सलवार सूट पहन लेने दें।
नहीं अब मैं मां से कुछ नहीं बोल रही तुम्हारी छुट्टियां खत्म हो रही है और बस तुम्हारे साथ जा रही हूं और वहां पर अपने मन मुताबिक रहूंगी।

अभी इतनी जल्दी कैसे ? कुछ दिन यहीं पर तुम्हें रहना होगा|
यहां पर, यहां कौन रहेगा?
देवेश भी परेशान हो गया था बाहर माँ से कुछ बोलता अंदर नलिनी से कुछ बोलता दोनों के बीच सामंजस्य बैठा – बैठा कर वो भी थक गया था।

अंततः उसने मां से बोला – मां मुझे भी वहां अकेले में खाने की दिक्कत होगी मैं इसको वहां ले जाता हूं फिर जब आपका मन करे तो आप भी कुछ दिनों में वहीं आ जाना|

मां की इच्छा नहीं थी ऐसे अचानक से घर सूना हो जाए मेहमान घर में है उनको क्या जवाब देगी और फिर नजदीकी कम से कम साल भर के त्यौहार।
….पर बेटा कुछ दिन में राखी का त्यौहार आने वाला है। नलिनी की भी पहली राखी होगी उसको मायके जाना होगा फिर तेरी बहन भी यहीं पर आएगी। कैसे वापस से तुम लोग आओगे। फिर जाओगे। कितना ज्यादा आना जाना हो जाएगा। इससे अच्छा कुछ दिन उसको और यहीं रहने देता और तू भी राखी पर यहीं आ जाता|

हाँ माँ आपका कहना सही है लेकिन क्यों ना हम एक साथ इस बार वहीं जबलपुर में ही राखी मनाएंगे|

शायद माँ भी देवेश और नलिनी की आपसी बहस सुन चुकी थीं और फिर देवेश की जद्दोजहद आखिर उसे मां को भी नाराज नहीं करना था और नलिनी जो नई नवेली दुल्हन थी दूसरे घर से केवल इसलिए आई थी कि उसे अपने पति के साथ रहना है तो उसको भी निराश नहीं करना चाहता था |

मां- पिताजी दोनों सहमत हो गए कि – ठीक है बेटा जिसमें तुम दोनों खुश रहो आखिर जिंदगी तुम दोनों को साथ गुजारनी है हमें क्या हम तो आते-जाते बने रहा करेंगे|

भारी मन से उन्होंने अपने बेटे और बहू को विदा किया |
नलिनी बहुत खुश थी अपना घर देखकर, अपने मन मुताबिक उसने रहना शुरू कर दिया अपने घर वालों से रोज बातें करती , वे लोग कभी आते तो ढेरों गपशप होती |

नलिनी आज दीदी का फोन आया था वह राखी पर आ रही है कुछ दिन के लिए । साथ में शायद बाबूजी भी हैं और हां दीदी के साथ उनका परिवार भी आ रहा है |

नलिनी का एकदम मूड़ खराब हो गया और वह चिल्ला कर बोली कि –
अभी कुछ दिन तो नहीं हुए हैं वहां से आए हुए अभी तो मिली थी दीदी । अब वापस से उनको इतनी कितनी याद आ रही है कि वह फिर से आ रही हैं |

अरे मैडम यदि घर में कोई आ रहा है तो क्या मैं मना कर दूं कि मेरी बीवी को पसंद नहीं है तुम लोग मत आओ |

नहीं मत मना करो उन लोगों को यहां आने दो और मैं मेरे मायके जा रही हूं । मेरे घर वालों ने भी मुझे पहली राखी के लिए बुलाया है |

हां तो माँ ने यही तो कहा था कि पहली राखी कर लो फिर तुम जाना । अब तुम वापस से वहीं जाओगी और वहां से वे लोग यहां आएंगे यह किस तरीके का फैसला हुआ ।

हां तो मुझे भी कहां मालूम था कि मैं आ जाऊंगी और पीछे से वह लोग भी मेरे सर पर चढ़ जाएंगे |

हे भगवान कहां मैंने तुम्हारी केवल सूरत देखकर शादी करी । कितना अच्छा होता अगर तुम में थोड़ी सीरत भी होती |

केवल रक्षाबंधन या किसी एक त्यौहार की बात नहीं थी जब भी देवेश के घर वाले आने की बोलते हैं या फिर देवेश अपने किसी दोस्त को घर में बुलाने की चर्चा भी करता तो नलिनी बिदक जाती और वह कभी तबियत खराब का बहाना करती या कभी किसी जरूरी काम का बहाना करती |

इस तरीके से सामंजस्य करते – करते देवेश ने सालों साल साथ बिता दिये , नलिनी खुश रहे इसके लिए अपने घर से लगभग लगभग वह कट गया |

अब उनका एक प्यारा – सा बेटा भी है लेकिन बेटा भी अपनी मां की तरह केवल और केवल घर में खुश रहता है उसको किसी रिश्तेदार से कोई मतलब नहीं रहता । आज सालों बाद फिर रक्षाबंधन आया है और दीदी का फोन आया उसको कि – भैया मैं सुबह आऊंगी और शाम को वापस आ जाऊंगी या फिर शायद एक दिन के लिए रुकूं |

अरे दीदी यह भी कोई कहने की बात है आप एक क्या एक हफ्ते रुकिए ?

लेकिन देवेश जानता था कि हमेशा की तरह नलिनी ना तो अपनी ननद का आदर करने वाली है और ना ही अपने पति के कहने से खुश रहने का नाटक करने वाली है । नाटक इसलिए क्योंकि असल मैं तो वह किसी के आने से कभी खुश होती ही नहीं थी |

दरवाजे पर घंटी बजी देवेश खुश होकर तुरंत दरवाजे खोलता है – दीदी कितने सालों में आप आई हैं आप तो जैसे हमें भूल ही गई
|
अरे कैसी बातें कर रहा है तू क्या ना मिलने से प्रेम कम हो जाता है ?

कहां है मेरा प्यारा भतीजा अनमोल ? बुला तो उसको उसके लिए मैं उसकी पसंद की गाड़ी का सेट लाई हूं |

गाड़ी का नाम सुनते ही अनमोल भाग कर आता है और अपनी बुआ से चिपक जाता है ।

बोलता है – बुआ मुझे आपके सारे गिफ्ट पसंद है लेकिन मां बोलती हैं कि आप बहुत हल्की क्वालिटी के और बहुत सस्ते गिफ्ट लाती हो पर उनके कहने से मुझे बिलकुल असर नहीं होता क्योंकि आप मेरी पसंद के गिफ्ट लाती हो |

नेहा जानती थी नलिनी की आदत इसके लिए वह कभी किसी बात का बुरा नहीं मानती बल्कि उसको ऐसा लगता कि अच्छा है वह अपने दिल में कोई बात नहीं रखती जो भी है बोल देती है |
अच्छा अनमोल ठीक है कोई बात नहीं तुम्हें पसंद है ना बस |

देव है कहां नलिनी दिखाई नहीं दे रही |

बस आती ही होगी बाजार तक गई है कह रही थी आपके लिए अपनी पसंद से गिफ्ट लाएगी |

देखा तू बेकार ही परेशान होता था शादी के कुछ सालों बाद धीरे-धीरे अपने आप सब सही होता जाता है और देखा वह भी धीरे-धीरे बदल रही है |

अनमोल – बुआ आज रुकोगी ना आप । हमको भी बहुत अच्छा लगेगा । हम एक साथ मिलकर मेरी पसंद का प्रोग्राम देखेंगे |
नेहा – हाँ – हाँ, अपन आज ढेर -सी मस्ती करेंगें |

इतने में नलिनी का आना –
अरे दीदी आ गये आप मुझे लगा कि शायद आप सुबह तक ही आएंगे । जीजा जी कह रहे थे कि आप यहां आती हैं तो उनको खाने की बहुत दिक्कत हो जाती हैं तो दीदी आप क्यों उनको अकेला छोड़ कर आती हैं ?

उनको छुट्टी नहीं मिलती नलिनी ।

हां दीदी लेकिन जीजाजी को देखना जरूरी है या फिर यह राखी का त्यौहार, खैर मुझे क्या ?

देवेश केवल अपने सामने यह सब बातें देखता और सुनता रहता क्योंकि उसकी एक भी आवाज से घर में उपद्रव होने में कोई कमी नहीं बचती ।

ठीक है नलिनी तुम इतनी चिंता मत करो दीदी के लिए क्या लेकर आई हो गिफ्ट में वह बताओ ।

नलिनी ने साड़ी बताई । देवेश जानता था अपनी बहन की पसन्द ।

बहुत सुंदर है । अब कल दीदी को जाते समय विदाई में दे देना ।

जाते समय विदाई में क्यों ? यह तो मैं राखी का उपहार लेकर आई हूं । एक जरा सी राखी के ऐसे आप 1000 , दो हजार रुपये निकाल कर दे देते हैं यह मुझे
बिल्कुल पसंद नहीं
है |

देवेश जहां अपनी बेइज्जती पर मन मसोस रहा था वही नेहा नलिनी की बचकानी हरकत पर मुस्कुरा रही थी |

उसने देवेश को शांत रहने का इशारा करते हुए नलिनी को बोला-
एक बात बताओ क्या तुम जब अपने घर पर जाती हो तो केवल उपहार लेने जाती हो या फिर सब से मिलने जाती हो ?

मैं लालची हूं क्या रूपए पैसे कि मैं तो केवल अपने घर में मिलने ही जाती हूं सबसे |

तो मेरी प्यारी नलिनी जैसे तुम अपने घर में अपने भाई से, भाभी से ,बच्चों से, माता-पिता से मिलने जाती हो उनको देखकर तुम्हें खुशी होती है वैसे ही मैं भी केवल तुमको खुश देखने के लिए आती हूं ना कि इसलिए कि मेरे आने से तुम लोग आपस में ऐसे ही झगड़ने लगा करो|

… और वह देवेश की तरफ मुड़ कर बोली कि-
देवेश कसम खा आज से जब मैं कभी आऊं तो तू मुझे कभी भी कुछ नहीं देगा| यदि लेना – देना हमारे रिश्तों को खराब करने लगे तो बेहतर है कि हम आपस में मिला करें बस केवल मिलना ही बहुत है और हमेशा बोलती हूं। आज फिर समझाती हूं कि हमारी वजह से अपने घर में झगड़ा ना किया कर|

क्या बोलता देवेश। उसके पास ना दीदी से बोलने के लिए कुछ था और ना ही नलिनी से| उसके पास झगड़े के लिए कोई कारण नहीं था और कारण निकालकर झगड़ा करके वह कर भी क्या लेता|

लड़कियां मायके से इसलिए दूर होती हैं कि समाज में दस्तूर है कि शादी के बाद लड़की अपने ससुराल जाती है पर उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि लड़के किस बात की सजा
भुगतते हैं कि उनको भी उनके
घर से दूर कर दिया जाता है| फिर उसने तो कभी भी नलिनी के ऊपर कोई रोक-टोक नहीं करी उसके मायके को लेकर। फिर नलिनी हमेशा क्यों उसके घर वालों को लेकर रोक-टोक करती रहती है|

नलिनी की बार-बार उपेक्षा से परेशान होकर देवेश के घर वालों ने खुद ही घर में आना बंद कर दिया। यह बोलकर कि अब तुम्हें जिसके साथ रहना है उसके साथ ही खुश रहो। हमारी वजह से घर में यह झगड़ा हमें पसंद नहीं लेकिन देवेश , देवेश अपना दर्द किससे कहे कि वह शादी जरूर करना चाहता था लेकिन अपने घर वालों से दूरी की कीमत पर नहीं|

उसने तो सोचा भी नहीं था कि राखी के त्यौहार पर उसकी कलाई सूनी रह जाया करेगी और जिस बहन के लिए वह दुनिया भर की खुशियां लाने की सोचा करता था उसके लिए वह साल में एक बार वह कुछ उपहार भी ना दे सकेगा। कहाँ सोचा था उसने कि – वह अपने माता पिता को यह भी ना कह सकेगा कि आप बैठो आज हम मिलकर साथ खाना खाएंगे और देखो मां आपको रसोई में जाने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है|

फिर से उसने चेहरे पर निष्ठुरता की चादर ओढ़ ली। उसको यह तो बताना ही था कि मर्द को दर्द नहीं होता|

MINAKSHI

मीनाक्षी “निर्मल स्नेह”
खपोली (महाराष्ट्र)

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