कहानी: मुलाकात

कहानी: मुलाकात

आरव समय से एयरपोर्ट पर पहुंच गया था। आज उसे ऑफिस के काम से मुंबई जाना था। फ्लाइट में अभी काफी समय था तो उसने सोचा एक कप कॉफ़ी पी ली जाए। ये सोच कर आरव कैफे की तरफ चल दिया। वहां देखा तो काफी लोग थे। उसने सबसे पीछे वाली कुर्सी पर बैठने का निश्चय किया। फिर उसने कॉफी का ऑर्डर दिया और अपना मोबाइल देखने में व्यस्त हो गया।

थोड़ी देर बाद जब उसने निगाह उठा कर देखा तो एक लड़की कैफे में दाखिल हो रही थी। उसे लगा कि वो अवंतिका है पर उसने सोचा कि वो यहां कैसे हो सकती है। उसकी शादी तो बैंगलोर में हुई थी।

उसका दिल नहीं माना तो एक बार फिर उसने लडकी को ध्यान से देखा तब निश्चित हो गया कि वो लड़की उसका पहला प्यार अवंतिका ही थी।

एक कश्मकश सी हुई कि वो अवंतिका से मिले या नहीं। दिल ने कहा मिलना चाहिए क्योंकि हो सकता है फिर मुलाकात न हो। ये सोच कर वो अवंतिका के पास गया और उसे पुकारा-

कैसी हो अवंतिका…?
यह सुनते ही अवंतिका समझ गई कि ये आरव ही है क्योंकि इस आवाज़ को वो कभी भूल नहीं सकती। उसने पीछे मुड़ कर देखा आरव मुस्कुरा रहा था। दोनों ने एक दूसरे को देखा एक आश्चर्य था आंखों में और थी कुछ नमी भी।

‘आज बहुत सालों बाद देखा तुम्हें। तुम तो ज़रा भी नहीं बदली। कैसी हो?

‘हां आरव। करीब 20 साल हो गए तुमसे दूर हुए। अच्छी हूं, तुम कैसे हो ?

‘पहले तुम बताओ अगर तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।

‘हां मैं खुश हूं। अब तुम बताओ। ‘अवंतिका ने पूछा’

‘मैं भी खुश हूं। मुंबई जा रहा हूं काम से। तुम यहां कैसे ? ‘आरव आश्चर्य में पड़ गया।

‘मैं यहां पापा से मिलने आई थी। अब वापस बैंगलोर जा रही हूं। विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम सामने हो। मिलने की उम्मीद ही छोड़ दी थी मैंने पर भुला नहीं पाई तुम्हें लेकिन मुझे विश्वास था कि एक बार तो मुलाकात ज़रूर होगी पर ऐसे होगी ये नहीं जानती थी। ‘अवंतिका मुस्कुराई’

‘एक बात कहूं अवंतिका। अगर तुम कुछ समय इंतज़ार करतीं तो आज हम दोनों साथ होते।’

‘जानती हूं। अगर मैं कहती तो तुम जल्दी ही कोई जॉब कर लेते और हम साथ होते लेकिन तब तुम्हारे वो सपने अधूरे रह जाते जो तुमने ख़ुद के लिए देखे थे और तुम्हारे परिवार की भी बहुत उम्मीदें थीं तुमसे। वो भी पूरी नहीं हो पातीं। हम अगर जल्दी शादी करते तो तुम उस मुकाम पर न होते जहां आज हो और बहुत लंबे समय तक मैं रुक नहीं सकती थी। ‘अवंतिका भावुक हो चली थी

‘तो तुमने मेरे परिवार की खुशी के लिए अपना प्यार छोड़ दिया? ‘
‘ आरव प्यार सिर्फ़ पाने का नाम तो नहीं। कभी – कभी अपनों के लिए त्याग भी करना पड़ता है। परिवार को दुखी करके हम भी तो खुश नहीं रह पाते। ‘

‘ हां, शायद तुम सही कह रही हो। क्या अब हम एक दोस्त की तरह बात कर सकते हैं? ‘

‘ हां आरव, यह मुमकिन है और ये दोस्ती तो उस अधूरे प्रेम से भी खूबसूरत होगी। ‘

‘ तो ठीक है। आज से आरव और अवंतिका दोस्त हुए। ‘आरव की आंखें चमक उठीं।

तभी बैंगलोर की फ्लाइट का अनाउंसमेंट होने लगा।

‘अब मुझे जाना होगा आरव लेकिन इस बार 20 साल का इंतजार नहीं होगा। अब हम एकदूसरे से बात कर सकते हैं। ‘

‘मैं शुक्रगुजार हूं रब का जिन्होंने तुम जैसी दोस्त मुझे दी है। ‘आरव ने आसमान की तरफ देखते हुए कहा।

‘हां इस बात के लिए तो मैं भी खुदा का शुक्रिया अदा करती हूं। अब चलती हूं। रब ने चाहा तो फिर मुलाकात होगी और इस बार हम मिलेंगे परिवार के साथ। अपना ध्यान रखना आरव।’

‘तुम भी पहुंच कर एमएसजी कर देना। मैं इंतजार करूंगा।’

ज़रूरी नहीं कि जिसे चाहें वो प्यार के रूप में ही साथ रहे। दोस्त बन कर भी साथ रहा जा सकता है। वो दोस्ती जो पाक हो। सादगी से भरी हो ।

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अदिति टंडन (Aditi Tandan) आगरा, उ प्र.

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