कहीं ना कहीं कोई ना कोई होता है…
झरोखा/पंकज पटेरिया। आज के इंटरनेट युग में भूत, प्रेत, पिशाच बेताल को लोग कपोल कल्पना मानते हैं। किसी को फुर्सत भी नहीं ऐसी बातें सुनने की, लेकिन जिंदगी में कभी अपने आसपास कभी कोई ऐसी घटना घटती है तो एक बार सभी कहते हैं हां कहीं ना कहीं कोई न कोई होता है। ऐसे ही घटनाओं और प्रसंग पर आधारित है मेरी नई श्रंखला कहीं ना कहीं कोई ना कोई होता है। मेरे बाप दादा का शहर और रैली की रंगीन रानी इटारसी की पहचान शहर के बीचों बीच स्थित एक तालाब ईटा रस्सी मात्र थी। लेकिन शहर के प्रमुख द्वारकाधीश मंदिर की ख्याति देशभर में रही है। सिद्ध संत महात्मा मनीषियों का शुभ आगमन होता रहता था और उनकी अमृतवाणी से श्रद्धालुजन पुण्य लाभ अर्जन करते थे। संत शिरोमणि प्रख्यात पूज्य पाद करपात्री जी महाराज तो सदा यहां आते रहते थे और बड़े मंदिर के प्रांगण में उनके मुग्धकारी प्रवचन होते रहते थे। मैं बहुत छोटा था लेकिन पूज्य माता जी रानी मां और बड़े भाई साहब श्री केशव प्रसाद पटेरिया के साथ प्रवचन सुनने जाया करता था। बड़े मंदिर के ठीक बाजू में संस्कृत पाठशाला रही है जहां ब्राह्मण परिवार के किशोर बालक देश के विभिन्न स्थानों से अध्ययन करने आते थे पाठशाला में इन बालकों के निवास और भोजन की निशुल्क व्यवस्था थी।
इटारसी के पुरोहित पंडित कैलाश नारायण शास्त्री तब यहां एक विद्यार्थी के रूप में अध्ययन किया करते थे बाद में हमारे परिवार के विवाह आदि कार्यक्रम संपन्न करवाते थे। वह मेरे अग्रज के मित्र भी थे और यहां से धार्मिक आयोजन में कीर्ति शेष विधायक नर्मदा प्रसाद सोनी, लीला भैया आदि के साथ यहां होने वाले धार्मिक सभा समारोह में अहम भूमिका निभाते थे। पंडित जी कैलाश भैया ने यह घटना बताई थी जिसकी चर्चा आज भी लोग करते हैं। पाठशाला में तब एक बूढ़ा पीपल का पेड़ होता था और उसी पेड़ पर एक भूत निवास करता था। वह भूत आते-जाते भोजन पानी लाते विद्यार्थियों को परेशान करता था। कभी किसी के कांधे पर रखी पानी की गगरी गिर जाती थी तो कभी भोजन की थाली। विद्यार्थी रोजमर्रा की इस घटना से डरे सहमे सहमें रहते थे। पूज्य शास्त्री को यह घटना बताई गई तो उन के माध्यम से द्वारकाधीश मंदिर के तात्कालिक महंत जी जो स्वयं सिद्ध संत थे को बताई गई। उनकी पहचान शहर में एक और मजेदार रही है उन्हे बच्चे राधेश्याम कहकर छेड़ते थे।
वे जय सियाराम कहकर झूठ मूट बच्चों को मारने दौड़ते। उसी दौर में पूजपाद करपात्री जी महाराज मंदिर में पधारे उन्हें यह समस्या बताई बताई गई तो उन्होंने कहा चिंता नहीं करो कल सुबह उसका निदान कर देंगे। अल सुबह महाराज जी पाठशाला पहुंचे विद्यार्थियों को बाहर एक स्थान पर खड़ा करवा दिया। उन्होंने अपने हाथ में एक पिटारी ली जो सदा उनके पास रहती थी जिसमें नारियल में कैद रहते थे ऐसी अतृप्त मुक्ति के लिए छटपटाती आत्माएं। बहर हाल महाराज जी ने कच्चे सूत के गोले को लेकर ऊंचे पीपल पेड़ पर चढ़ाया और एक सिरा अपने हाथ में रख नारियल पर उसे बांध लिया उसके बाद शुरू हुआ हैरत कर देने वाला उनका भूत से संवाद।
महाराज जी ने पूछा क्यों भाई क्या कष्ट है क्यों इन विद्यार्थियों को परेशान करते हो बताते हैं तब उसने अपनी व्यथा जो भी रही हो महाराज जी करपात्री जी को बताई। करपात्री जी ने उसे आश्वस्त किया, तुम चिंता नहीं करो तुम्हारी पीड़ा मैं समझता हूं मैं तुम्हें मुक्त करता हूं और पावन गंगा जी में तुम्हें मुक्ति दूंगा उसके बाद महाराज जी ने कहा लो अपना आसन ग्रहण करो कच्चे सूत का एक सिरा महाराज ने नारियल में पहले से किए गए छेद में डालकर दबा दिया था उनके आदेश से उस पर से धीरे धीरे उस कच्चे सूत के सहारे भूत ने उतरना शुरू किया और महाराज जी उस कच्चे सूत के धागे को नारियल पर लपेट रहे अंतिम सिरा आने के बाद उससे भी मंत्रोच्चार के साथ नारियल के छेद में बंद कर दिया और पिटारी बंद करदी। विद्यार्थी भी धीरे धीरे पीपल के पेड़ से उतर आया विद्यार्थी और अनुपस्थित लोगों ने हैरत से दांत में उंगली दबा ली लेकिन इस परेशानी से स्थाई रूप से निदान हो जाने से फिर उन्हें कोई दिक्कत कभी नहीं हुई। बाद में सभी खूब हंसी खुशी और उमंग उत्साह से विद्यार्थी अध्ययन करते सूर्य नमस्कार करते रहे। उन दिनों यह घटना बहुत चर्चित हुई थी। नर्मदे हर।
पंकज पटेरिया वरिष्ठ पत्रकार
संपादक शब्दकोश होशंगाबाद।
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