अनाथों के नाथ हैं काशी विश्वनाथ, ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक किया

Post by: Rohit Nage

इटारसी। श्री दुर्गा नवग्रह मंदिर में द्वादश पार्थिव ज्योर्तिलिंग का पूजन, अभिषेक एवं एक लाख रूद्री निर्माण चल रहा है। जिसके तहत रविवार को काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग का पूजन एवं अभिषेक मुख्य यजमान मीना डोनी, प्रियांशी डोनी, छवि डोनी, शिवराज डोनी, मनोज डोनी, मनीषा डोनी, आस्था डोनी, अकक्षिता डोनी, गोपाल नामदेव, प्रतिभा नामदेव, गौहरपाल नामदेव ने किया।

मुख्य आचार्य पं. विनोद दुबे बताया कि यह प्राचीन तीर्थ स्थान वाराणसी कहलाता है। क्योंकि यह वारूणी और अस्सी नदियों का संगम स्थल है, जो गंगाजी का मिलन केंद्र हैं। बनारस के अलावा इस नगरी का नाम काशी भी है। यहां पहले काश जाति के लोग रहते थे। काशी नगरी मोक्ष का प्रकाश और ज्ञान दात्री है। यहां के निवासी किसी भी तीर्थ स्थान की यात्रा किए बिना ही मुक्ति के हकदार हो जाते हैं। काशी में जिनके प्राण जाते हैं उन्हें मोक्ष मिलता ही है। यहां देवता भी मृत्यु की कामना करते हैं वैसे तो बनारस में करीब 1500 मंदिर है लेकिन काशी के मंदिर में विश्वनाथ मंदिर का शिखर 100 फिट ऊंचा है। हिंदू महारानी और होल्कर राजवंश की अद्वितीय प्रतिभा अहिल्यादेवी ने काशी विश्वनाथ मंदिर का कार्य पूर्ण कराया। काशी के बारे में कहा जाता है कि पूरी दुनिया प्रकृति विनाश में चली जावे लेकिन काशी बेची रहेगी।

काशी के संरक्षक का दायित्व काल भैरव और दंडपानी निरंतर निभा रहे है। मुस्लिम शासकों ने कई बार काशी को बर्बाद और तवाह करने का प्रयास किया उन्होंने कई धार्मिक स्थलों को हानि पहुंचाई लेकिन भक्तों ने काशी को फिर खड़ा कर दिया। काशी विश्वनाथ से प्रसन्न होकर महाराजा रंजीत सिंह ने मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित कराया। काशी वेदकाल से ही ओजस्वी चली आ रही है। अंग्रेजों और मराठों के शासनकाल में बनारस का वैभव निरंतर बढ़ा। जैन और बौद्ध धर्मियों ने इस तीर्थ स्थान के वैभव को चार चांद लगा दिए। काशी विश्वनाथ का ज्योर्तिलिंग दुनिया में अनूठा और अद्भुत है। काशी के समीप ही गंगा धनुष के आकार ही हुई है इसका वैभव वैदिक काल से चला आ रहा है। आयोजन में अभिषेक पूजन पं. सत्येन्द्र पांडेय एवं पं. पीयूष पांडये द्वारा प्रतिदिन कराया जा रहा है।

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